Saturday, September 5, 2009

अनजाने रिश्ते

ना खोने का , ना पाने का ...
जब कुछ पास ही नहीं तो डर कैसा ...
न जुदाई का .न मिलन का
कोई है ही नही तो सितम कैसा ...
इस कशमश में जिए जायेंगे ....
है इंतज़ार ,
किसी के आने का ...............
इसी उम्मीद में ख़ुद को जलाएंगे ....
पर न मेरे जले का होगा कोई असर ......
जब कोई असर ही नहीं तो दर्द कैसा ......
फ़िर भी बना रहेगा एक अनजाना रिश्ता ,
जिसका नाम ही नहीं वो रिश्ता कैसा ,
कुछ कहे -अनकहे पल । वो मीठी सी चुभन
एक चुभन ही तो है ,अब इंतज़ार कैसा

Friday, September 4, 2009

प्राथना

बाबा फसल पकने वाली है ! कितना मजा आयेगा न ? बाबा आप हमें नए कपडे लाकर दोगे न ! तभी मुन्नी बोली , और मुझे नयी गुडिया भी चाहिए ! बाबा मुस्कुराने लगे - की हाँ भगवान् की कृपा रही तो सब कुछ आ जायेगा ! बस तुम प्राथना करो की एक हलकी सी फुहार आ जाये ताकि खडी फसल पूरी तरह तैयार पक होकर जाये ! राजू तुंरत बोला ,'में प्राथना करता हूँ वह मेरी सुनता है "! माँ की आवाज आई , चलो अब सो जाओ , बहुत देर हो गयी है ! मुन्नी क्या अब हमें अच्छे - अच्छे पकवान भी मिलेंगे ! पता नहीं और दोनों भाई - बहन बाते करते सो गए ! सुबह का सूरज कुछ और ही लेकर आया था ! फसले पानी में तैर रही थी ! पानी , फसलों के साथ - साथ सपनो को भी ले गया था ! राजू अब भी पूछ रहा था की भगवान् को और क्या कहना है !