Tuesday, October 20, 2009

याद

कभी दिल को रुला कर तड़पा कर जाती हैं ,
रेगिस्तान में तपती उस गर्म रेत की तरह ,
कभी बर्फ की तरह शरीर को अंदर तक ठंडक पहुंचाती ...................
तेरी याद
जो छुए -अनछुए पलों का एहसास कराती ,
तेरी याद को लगाकर सीने से सितम दुनिया के सहते हैं ,
आँखें रोती है , तेरी जुदाई में लेकिन लब कुछ न कहते हैं ,
तेरी यादों के झरोखों से निकलना हम न चाहेंगे ,
गाहे -बगाहे दोस्तों इन्ही लम्हों के सहारे जिन्दगी बिताएंगे !

जन्मी का धर्म

आज भी राखी बहुत उदास थी ! मोहल्ले के बच्चों को पार्क में खेलता देख यही सोच रही थी की ..... शायद उसकी औलाद होती तो वह भी इतनी ही बडी होती और ऐसे ही खेल रही होती ! लेकिन किस्मत को ये मंजूर नही था ! शादी के इतने सालों बाद भी वह संतान सुख से वंचित थी ! संदीप के घर आते ही वह कहने लगी की मैंने सुना है की शहर के बाहर वाले इलाके में जो मन्दिर है वंहा हर मुराद पूरी होती है ! संदीप के कहने पर की फ़िर कभी वंहा चलेंगे वह झट से तैयार हो गई की क्यों न आज ही चला जाए ! संदीप उसकी तड़प को समझता था इसलिए न - नुकुर करने के बाद वह जाने के लिए तैयार हो गया ! वह जानता था की राखी जाए बिना नही मानेगी ! मन्दिर जाकर फ़िर वही मन्नते - मुरादों का किस्सा शुरू हो गया की शायद इस बार भगवान् उसकी सुन ले ! मन्दिर के बाहर निकलने पर उन्हें एक बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी ! राखी भागकर वंहा गई की शायद उसकी प्राथना भगवान् ने सुन ली है ! उसने झट से बच्ची को उठा सिने से लगा लिया ! संदीप भी उसे प्यार करने लगा की सहसा उसकी नजर बच्चे के गले में पहनाये हुए लोकेट पर पड़ी ! उसने राखी के हाथ से बच्ची को लेकर जमीन पर रख दिया की वह हमारे धर्म की नही है ! राखी बहुत रोई , पर तब तक संदीप गाड़ी में बेठ चुका था ! वह बच्ची अभी भी रोते हुए अपने धर्म के लोगों का इंतजार कर रही थी !