Tuesday, December 29, 2009

अधूरे सपने

ना जाने क्यों इन बाँवरे सपनो के पीछे भागता हे ये
चंचल मन ,
हर समय , या दिन के आठों पहर
करता है जुगत इन्हें हकीकत में बदलने की
चाहता है की इस दुनिया को अपने हिसाब से बदल दे,
पर मुमकिन नहीं ,
चाहता है की मरती इंसानियत को जिन्दा करदे
जो नहीं डरती एक बच्ची का जीवन खत्म करते
उसे नोचते ,वो भी बिना किसी कसूर के
सपना देखता है की नव वर्ष पर बहने वाले पैसे
से कोई किसी मासूम का पेट भर रहा है
अलमारी में लगे कपडे के ढेर को
किसी का तन ढकने के लिए बाँट रहा है ,
ढूँढती है आँखें रोज , सड़क के किनारे बेठे
की शायद कोई इस बार सर्दी से बचने का
कम्बल दे जाये ............
पर ये सपने -सपने ही रह जाते है , इतने में इक
सर्द रात में आँख खुल जाती है ........
आँख खुल जाती है !

Sunday, December 27, 2009

अधूरे सपने

माँ लो मिठाई खाओ , क्यों क्या हुआ बेटा ! अपनी छुटकी का एडमिशन दिल्ली यूनिवर्सिटी में हो गया है ! अरे ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है लेकिन बेटा वो इतनी दूर अकेली कैसे आया करेगी ! माँ आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट है वो सब मेनेज कर लेते है ! हाँ शायद तुम सही कह रहे हो और उसका एक क्लास- मेट भी है आ जाया करेंगे बच्चे साथ में ! हाँ बेटा सही कह रहा है बोल में अपने कमरे में आ गयी ! पता नहीं क्यों ये बातें मुझे २५ साल पीछे खींच लायी और मुझे अपनी सुमन के आंसू सुनाई देने लगे ! जब उसके इसी भाई ने सुमन की सारी किताबों को आग लगा दी क्योंकि वो आगे पढना चाहती वो भी लडको वाले कॉलेज में ! छुटकी दिल्ली चली गयी और माँ -बाप ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे ! कुछ दिन बाद अचानक आवाज आई देखा मेरी बेटी सुमन आई थी ! मिलने मेरे कमरे में आई बहुत दुःख - सुख सांझे किये मैंने छुटकी के बारे में बताया बहुत खुश हुई जाने लगी तो बाहर सुनील मिठाई का डिब्बा लेकर खड़ा था ! सुमन ने बधाई दी की बहुत ख़ुशी हुई अगर तब किसी ने मेरे सपनो के बारे में भी सोचा होता तो और चली गयी ! सुनील अब भी डिब्बा हाथ में लिए खड़ा था ! माँ खुश थी की एक बेटी के न सही लेकिन दूसरी के अधूरे सपने तो पूरे हुए !

सरहद के पार

ज़ाने से पहले क्यों सलाम जरुरी हो जाता है
हर आखिरी लम्हा क्यों बेशकीमती हो जाता है ,
इन आँखों को तो नसीब भी न हुई तेरे चेहरे की एक झलक ... फिर भी
अगली मुलाकात का इंतज़ार शुरू हो जाता है .....
रहे खैरियत से तू अपने उस मुल्क में यही दुआ करते हैं ,
करे दीदार तेरे चेहरे का यही फरियाद करते है ,
ये कुछ कदमो की दूरी है ..पर सरहद पार नहीं होती ( बाघा बॉर्डर).
देख उस सरहदी रेखा को ये आंखे बड़ा है रोती..
दिल के इतने करीब है पर मीलों की दूरी तय नहीं कर पाते ,
याद करते हैं तन्हाई में पर कह नहीं पाते ,
रहना -सहना ,बोली पर मुल्कों के नाम अलग है ...
रिश्ते हैं वही पर बुलाने के नाम अलग है ,
मेरी मजबूरी वंहा आने नहीं देती ..तेरी बेरुखी कहे
या कुछ ऐसे मसले जो तुझे यंहा आने नहीं देते ,
यादें साथ हैं और हमेशा रहेगी ..कभी ताज़ी तो कभी मुरझाई ..
बगिया के उन फूलों की तरह जो पतझड़ के बाद बसंत का इंतज़ार करते
फिर से खिल जाने के लिए !

बदलते रूप

रमेश फिर बहुत शराब पीकर आया था ! इसका कारण वही पुराना था ! दोस्तों के घर पार्टी थी या सहयोगियों व अफसरों के साथ मेलजोल बढाने का सबसे सरल उपाय ! घर आते ही कलेश शुरू हो गया ! वह किसी को कुछ नहीं कहता था ! परन्तु उसकी ये हालत परिवार वालों से देखी न जाती ! बूढ़े माँ -बाप उसे कोस रहे थे की उम्र का कुछ ख्याल कर ! इतनी शराब पीकर वाहन चलाने का भय हमें खाता रहता है ! बच्चे कसमे दे रहे थे की आप आगे से कभी शराब को हाथ नहीं लगायेंगे !पत्नी रो -रोकर सबको चुप करा रही थी ! काफी हो - हल्ला करने के बाद सब सो गए ! उस दिन के बाद पत्नी को छोड़ बाकि परिवार वालों ने उससे बात करनी बंद कर दी !
कुछ दिन बाद उसे बिजनेस में बहुत बड़ा फायदा हुआ ! घर में जशन का माहौल था ! माँ -बाप रमेश की बलाएं लेते नहीं थक रहे थे ! बच्चे घुमने का प्रोग्राम बना रहे थे ! घर में खुले आम शराब चल रही थी पर किसी के मुख पर कोई शिकन का भाव नहीं था !
पत्नी कोने में खड़ी सबके बदलते रूप का तमाशा देख रही थी !