माँ यह दहेज़ क्या होता है ? नेहा ने हैरानी से पूछा ! क्या हुआ बेटा आपने कहा सुन लिया सुनीता ने पूछा, नहीं माँ वो श्रेया कह रही थी, उसकी मम्मी तो अभी से घर की हर चीज उसके दहेज़ के लिए जोड़ रही हैं ! आप बताओ ना , ओह मेरी बिटिया की शादी में अभी बहुत समय है ! आपके पापा तो वैसे ही दहेज़ के सख्त खिलाफ है ! परन्तु माँ ये होता क्या है ! यह वो राक्षस है जो रोज ना जाने कितनी ही लड़कियों को निगल रहा है ! बिना किसी कसूर के ! शादी के समय दी जाने वाली वो प्यारी सौगात जो आज इस समाज के कारण लोगों की परतिष्ठा व दिखावे का प्रतीक बन गयी है ! जो यह दिखावा नहीं कर पाते उसकी सजा उन मासूमों को अपनी जान देकर ...............! क्या मम्मी कैसे बातें कर रहे हो ! बेटा शादी के समय घर का सामान फ्रिज, टी;वी , इत्यादि जो दिया जाता है उसे ही दहेज़ कहते हैं ! ओके माँ ! आप इस बात को छोडो और जाकर पढाई करो ! कुछ दिन बाद अरे मिसेज शर्मा हद हो गयी ! अपने ही पड़ोस में ऐसी घटना , शर्म क्यों नहीं आती लोगों को ऐसा करते ! वे क्यों भूल जाते हैं की अगर उनकी बेटी के साथ कोई ऐसा करे ! अरे नेहा बेटा आप आ गए , कैसा रहा स्कूल में आपका दिन ! माँ एक बात कहू आप मानोगे हाँ बेटा बोलो , प्लीज़ आप मुझे मेरी शादी में दहेज़ जरुर देना लेकिन क्या हुआ ? मुझे आरती आंटी की तरह जल कर नहीं मरना ! गली में सब कह रहे थे की देखो कैसे पापी है , दहेज़ के लिए बहु को जला दिया ! सुनीता बिना कुछ कहे खाना लेने चली गयी !
Friday, January 29, 2010
जिद्द की सजा
समझदारी से मिली जीत
पुराने समय की बात है ! रामगढ नामक एक छोटा सा नगर था ! वंहा एक व्यवसायी रहता था ! उसका नाम रामलाल था ! वह बहुत ही ईमानदार व मेहनती था ! उसका व्यापर दूर-दराज के इलाकों में भी फैला हुआ था !वह हमेशा जरुरतमंदो की मदद करता व सबसे शालीनता पूर्वक व्यवहार करता ! सभी नगरवासी उसका बहुत आदर , सम्मान करते थे ! रामलाल के चार पुत्र थे ! वे चारों बहुत ही आलसी थे ! पिता के पैसों पर ऐश करते ! उनकी ये हालत देख रामलाल को बहुत चिंता होती ! रामलाल को यही डर सताए रहता की वे उसकी खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर देंगे ! इसी समस्या के बारे में सोचते रहने के कारण रामलाल बीमार रहने लगा था ! उसका छोटा बेटा पदाई -लिखाई में थोडा होशियार था पर बाकि तीनो कोई काम न करते ! एक दिन रामलाल के मन में आया की उसे अपनी जायदाद का बटवारा कर देना चाहिए ! अगर वह मर भी जाये तो उसके बेटो में कोई लडाई - झगडा न हो ! यही सोच कर एक दिन वह अपने चारो बेटो को अपने पास बुलाता है ! वह अपने मुंशी से सबको १००-१०० रूपए देने को कहता है ! वे चारों इस रहस्य को समझ नहीं पते ! उन्हें लगता है की ये पैसे भी पिताजी ने उन्हें खर्चने के लिए दिए हैं ! रामलाल उनके हाव -भाव को देखकर समझाता है की वह जमीन -जायदाद का हक किसी एक को देना चाहता है ! इसके लिए मेरी एक छोटी सी परीक्षा है जो उसे पास कर अपने आपको को सबसे बुद्धिमान साबित कर देगा ! सब कुछ उसका हो जायेगा ! चारों ने हाँ में सिर हिलाया और परीक्षा पूछने लगे ! रामलाल ने कहा की तुमें इन १०० रुपयों से कोई ऐसी चीज खरीद कर लानी है जिससे एक पूरा कमरा भर जाये ! तुमें एक दिन की मोहलत दी जाती है ! छोटे पुत्र को छोड़ बाकि सभी रामलाल का परिहास करने लगे की कितना आसन काम है !ये तो हम चुटकियों में पूरा कर देंगे !बाकि तीनों सामान लेने बाजार चले गए ! सबसे छोटा बैठ कर पूरी शर्त के बारें में गहराई से सोचने लगा ! अगले दिन का समय का भी आ जाता है ! रामलाल सबसे पहले बड़े -पुत्र के पास जाता है ! उसने सारा कमरा घास फूस से भरा होता है ! लेकिन कमरे में अभी भी बहुत सी जगह ख़ाली होती है ! वह बहुत निराश होकर दुखी मन से दुसरे पुत्र के कमरे में जाता है !वंहा का हाल इससे भी बुरा होता है ! सारा कमरा कागज व रद्दी के ढेर से भरा होता है ! कमरा अभी भी ख़ाली ! अब वह मंझले के कमरे में जाता है ! उसने सारा कमरा रुई से भरा होता है ! रामलाल दुखी ह्रदय से वही बैठ जाता है ! अब क्या होगा तभी चौथा पुत्र आवाज लगता है पिताजी यंहा आईये ! जब रामलाल कमरे में जाता है कमरा में घना अँधेरा होता है ! वह कहता है बेटा तुमने शर्त नहीं सुनी थी यह तो पूरा ख़ाली है ! वह कहता है रुकिए और जेब से मोमबती निकल माचिस से उसे जला देता है १ सारा कमरा प्रकाश से भर जाता है !रामलाल की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ जाते है ! वह अपने बेटे को गले से लगा लेता है ! तभी वह कहता है इस प्रकाश की कीमत सिर्फ एक रुपया है ये रहे बाकि के पैसे ! रामलाल को बहुत ख़ुशी होती की यह बेटा उसके कारोबार को नुक्सान नहीं पहुंचाएगा बल्कि और बदयेगा ! वह सारा कुछ चौथे बेटे के नाम कर देता ! बाकि अपनी गलती पर शर्मिंदा हो चले जाते हैं ! इस प्रकार वह अपनी समझदारी से सब कुछ प्राप्त कर लेता है !
Thursday, January 21, 2010
खंडर का दर्द
कभी में भी आबाद हुआ करता था ......
डालते थे झूले , कभी मेरी मजबूत शाखाओं में ,
आज एक पत्ते को भी तरस जाता हूँ ...
लगते थे मेले , मनाते थे जश्न आज अपनी ही पहचान ..
दूंदते फिरता हूँ ....
अगर सवांरा होता तो कोई अजूबा बन जाता ,
या किसी खोजी का विषय ...
पर अब संवय को पल - पल गिरता देख ,
अपने अस्तित्व के पतन पर अश्रु बहाता हूँ ..
अश्रु बहाता हूँ .!!
Thursday, January 14, 2010
मकर सक्रांति की बधाई
शुभ कामनायों सहित
वृंदा गाँधी
Monday, January 4, 2010
सरहदी रिश्तों का खून
उन्हें हमारे ख्याल आया ........हम तो उन्हें भुलाये बैठे थे,
अपनी यादों के...
झरोखों में .........
ना जाने कैसे आज सरहद पार,
उनका पैगाम आया ,
पैगाम उनका वही मजबूरियों की...
कहानी कह रहा था ....
कह रहा था की दिल तुम्हे बहुत याद करता है
तुम्हारी सलामती की हर दम दुआ करता है ..
चाहता है मिलना पर ..
दूरियां बहुत है ..या यूँ कहो
दुनिया ने बनाई मजबूरियां बहुत है .
यह एक सरहदी रेखा पार नहीं होती
अब तो दिल के दर्द में साथ देना आँखों ने भी
छोड़ दिया है ..
और हमेशा उसके पैगाम ने दिल मेरा तोड़ दिया है
काश में कोई परिंदा होती ..
तो उड़ कर उसके पास चली जाती ..या हवा
होती तो उसकी साँसों में घुल जाती..
पर में तो एक मजबूर इंसान हूँ , जो हालातों और सरहदों का
मोहताज है , जिसके लिए इंसानी रिश्तों से बढ़ कर
ये इमारतें , और जमीन जायदाद है .
खून के रिश्तों का ही खून करने पर
आमदा है ....
या खुदा क्यों?
कब इन्हें इस गलती का एहसास हो पायेगा
शायद तब तक बेगुनाहों के लहू से ये संसार
लाल हो जायेगा ! लाल हो जायेगा
Friday, January 1, 2010
नव वर्ष की बधाई
वृंदा गाँधी