Wednesday, February 23, 2011

लकड़ी की सास


एक गाँव में एक माँ -बेटा रहता था ! बेटा जब जवान हुआ तो माँ को उसके ब्याह की चिंता हुई ! उसने आसपास के दस गाँव में तलाश कर एक अच्छी  सी लड़की से विवाह किया ! बहु बहुत ही अच्छी थी ! कोई भी काम सास की सलाह के बिना नहीं करती ! यंहा तक की खाना बनाने के समय भी सास से पूछती , कितना और कैसे खाना बनाये ! कुछ वर्ष इसी  प्रकार सुख से बीत गए ! एक दिन सास बीमार पड़ी और स्वर्ग  सिधार गयी ! सास के न रहने से बहु को बहुत कष्ट होने लगा ! उसे तो हर बात सास से पूछने की आदत जो पड चुकी थी !  वह बहुत उदास रहने लगी अंत में उसने अपना दुःख अपने पति को बताया ! पति ने काफी  विचार किया अंत में उसे एक उपाय सुझा ! वह अपने बढई मित्र से एक लकड़ी की गुडिया बनवाकर ले आया ! घर आकर अपनी पत्नी से कहने लगा की वह इस गुडिया को सास मानकर सब कुछ पूछकर किया करे ! अब तो वह हरदम खुश रहती ! पहले की भांति सब कार्यों के लिए सलाह लेती ! चावल पकाऊ या रोटी ? रोटी के साथ सुखी सब्जी या रसेवाली ! इसी तरह गुदिये से सबकुछ पूछकर अपने दिमाग से कार्य कर लेती ! एक बार गाँव वह गाँव में पैंठ का बाजार करने चली ! जाने से पहले उसने अपनी गुडिया सास से पूछा माजी बाजार चलेगी ! गुडिया भला क्या उत्तर देती ! फिर कहने लगी क्यों चला नहीं जाता ? फिर वह पुन : बोली अगर चलना है तो टोकरी में बताकर ले चलती हूँ ! यह कहकर उसने गुडिया को टोकरे में रखा और बाजार चल पड़ी ! टोकरे में गुडिया रखकर सामान खरीदना मुश्किल था ! अत पास ही के हनुमान जी के मंदिर में टोकरे को रखकर वह सामान लेने चली गयी ! हनुमान मंदिर आने वाले भक्तों ने जब टोकरे में रखी गुडिया को देखा तो भक्ति से उसे भी थोडा चढ़ावा चदा दिया ! शाम को जब बहुत बाजार से सामान लेकर लौटी  तो देखा की सास के सामने भी काफी सरे दाल -चावल और पैसे पड़े हैं ! वह कहने लगी माँ जी आप भी पैंठ से सामान ले आई चलिए और सारा सामान समेट कर गुडिया को टोकरी में डाल घर आ गयी ! दुसरे दिन बात पुरे गाँव में फ़ैल गयी की मरी हुई सास की गुडिया पैंठ से बहु के लिए दाळ- चावल खरीद कर लायी है ! दूसरी बार पैंठ जाते समय बहुत ने फिर से सास रूपी गुडिया साथ ले ली ! उस दिन की तरह टोकरे को मंदिर में रख वह चली गयी ! उस दिन सामान खरीदने में देर हो गयी ! रात हो चली थी इसलिए बहु ने सोचा , रात वंही हनुमान के मंदिर में बिताकर अगले सुबह गाँव चली जाएगी ! गुडिया को वंहा रख कर वह लेट गयी ! आधी रात के समय वंहा चोर चोरी करके माल का बटवारा करने आये ! उनके पाँव की आह्ट से बहु की आँख खुल गयी ! वह दर के मारे हाय माँ जी कह चली गयी ! चोरों को लगा यह कोई शिकायती गुडिया है  और उसे खुश करने के चकार में उन्होंने अपने -अपने हिस्से  से रूपए निकल गुडिया को चढे ! इधर थोड़ी दूर भागने के बाद जब बहु को ख्याल आया वह दुबारा मंदिर आई ! सास की गुडिया के सामने रूपए का ढेर लगा था ! वह सारा सामान लेकर घर आ गयी ! गाँव में यह बात सबको पता चल गयी की गुडिया के कारण ही यह लोग अमीर बने हैं ! सबने आ आकर पूछना शुरू कर दिया ! बहु ने सारी घटना कह सुनाई ! यह सुनकर उस बहु की पड़ोसन भी अपने पति के पीछे एक गुडिया लाने के लिए पड गयी ! तंग आकर उसके पति को गुडिया बनवाकर लानी पड़ी ! उस पड़ोसिन भी बहु की नक़ल कर हर काम पूछ कर  करने लगी ! अंत में गुडिया को लेकर पड़ोस के गाँव की पैंठ में गयी ! पैंठ में कोई काम नहीं था उसे तो रात वंही बितानी पड़ी ! वह एक पेड़ के नीचे बैठ गयी ! ठीक आधी रात को वही चोर आये ! वे चोर उसी पेड़ के नीचे बैठ कर अपना माल बाटने लगे ! इस तरह चोरों को देख कर पड़ोसिन बहु के हाथ - पैर डर से कांपने लगे ! उसके हाथ से गुडिया छूटकर नीचे गिर पड़ी ! गुडिया ठीक चोरों के सामने गिरी ! तब उन्हें याद आया की पिछली बार भी उन्हें ऐसी ही गुडिया ने डराया था ! आखिर यह गुडिया  उनके पीछे  क्यों पड़ी है ! यह सोचकर उन्होंने गुडिया को उठा लिया और  देखने लगे की गुडिया कंहा से आई ! उनमें से एक की नजर ऊपर पड़ी तो उसे पड़ोसिन नजर आई ! उन्होंने उसे चुपचाप नीचे उतरने को कहा ! वह डरती  हुई नीचे आई ! चोरों ने उससे सारी चीजें और जेवर छीन लिए व थपड मरकर जाने को कहा ! पड़ोसिन ने अपने किये पर पश्यताप किया की वह फिर कभी नक़ल नहीं करेगी ! वह चुपचाप घर लौट आई और किसी के सामने मुह नहीं खोला ! उसे अपने किये की अच्छी सजा मिल चुकी थी !  

Tuesday, February 8, 2011

वैलेंटाइन डे

आज सुबह ही मेरे घर एक छोटा सा बच्चा आया की मुझे एक गुलाब का फूल दे दो  ! मुझे लगा की उसकी माँ ने लाने को कहा होगा पर मुझे हैरान होते देर न लगी जब उसने बताया की वो उसे अपनी गर्ल फ्रेंड को देना हे क्योंकि कल की छुट्टी है वाह  रे पश्चिमी सभ्यता आज सात साल का बच्चा भी वैलेंटाइन मना रहा है क्या प्यार के लिए भी हम किसी दिन के मोहताज है बाजारों की रोनक देखकर लग रहा हे की जेसे कोई बहुत बडा त्यौहार आने वाला हे काश इतना पैसा जो वैलेंटाइन डे पर खर्चा किया जाता हे उसका आधा भी किसी गरीब को दिया होता तो वो शायद पेटभर कर सो जाता पर  प्यार की अंधी दोड़ के आगे किसका बस चला है ! चलो प्यार करने वाले इसे मनाये पर अपनी सभ्यता को भी याद रखे नही तो शिव सेना वाले भी स्वागत को तैयार है पर अगर इसी  तरह हमने अपने राष्ट्रीय पर्वो को सिर्फ़ छुटी का दिन ना समझकर मनाया होता तो आज इतना दुःख ना होता.!