Thursday, September 20, 2012

आत्मशक्ति

कभी लगता है , टूट के बिखर जाऊंगी 
माला के मनको की तरह , जो गले का हार नहीं बन पाते 
उन पत्तों की तरह जो तेज़ हवा के झोकों से ..
टूट कर हैं गिर जाते ..
बारिश की नन्ही बूंदों की तरह ..
जो फुहार बन हैं रह जाती ..
नदी की छोटी.... धारा की तरह ...
जो सागर से हैं मिलना चाहती ...
लेकिन तभी मन के एक कोमल हिस्से से ..एक मज़बूत आवाज़ है आती..
कभी धीमे तो कभी होकर तेज़ ..फिज़ाओं में है खो जाती 
वो आवाज़ प्रतीक है ..उन इच्छाओं का ..........
जो पूरी न होने के डर से हो गयी है शांत ..
वो आवाज़ देती है हिम्मत ..गिर कर उठ जाने का ...
और कहती है तुझे करना है सपनों को साकार ....
उस आवाज़ की बात मानने को जी चाहता है ..
अपने अस्तित्व की लडाई लड़ने को जी चाहता है 
आँखों में सजाएं उन सपनों के पीछे भागने को जी चाहता है ...
क्योंकि ये आवाज़ कहती है ..की खुली आँखों से देखे सपने ..
अक्सर सच हो जाते हैं ..
क्योंकि उन सपनों को हकीकत बनाने ..हम हर गम भूल जुट जाते हैं ...