Tuesday, October 30, 2012

महंगाई की मार



सखी सैयां तो खूब ही कमात है ..महंगाई डायन खाय जात है ..ये गाना आज से दो साल पूर्व आई एक फिल्म ' पिपली लाइव " में गया गया था ! गाने के बोल बहुत ही कम समय में हर आमो ख़ास की जुबान पर गुनगुनाये जाने लगे थे ..क्योंकि कंही कंही उस समय इस गीत ने एक  माध्यम वर्गीय परिवार की पीड़ा को बयाँ किया था ! अगर आज के युग को हम महंगाई का युग कहें तो कुछ गलत नहीं होगा ! आज इस गाने को सुनकर लगता है की अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में इंसान महंगाई के खाने लायक भी ज़िंदा नहीं रहेगा ! एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक अगर देश में महंगाई को बढ़ने से रोका गया तो  आने वाले वक्त में करीबन तीन करोड़ लोग गरीबी   रेखा से नीचे चले जायेंगें ! एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि खाने-पीने की चीजों के दाम में अगर 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो ऐसा संभव है।
यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब योजना आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक 2004-2005 और 2009-2010 के बीच देश में गरीबों की तादाद घटी है।
योजना आयोग के अनुसार 2009-2010 में देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे लोगों की तादाद 35.5 करोड़ थी, जबकि 2004-2005 में इनकी तादाद 40.7 करोड़ थी। 2004-05 में देश में 37.2 फीसदी गरीब थे, जबकि पांच साल बाद 2009-10 में इनकी तादाद घटकर 29.8 फीसदी हो गई।
योजना आयोग के ये आंकड़े गरीबी रेखा के पैमाने में हुए बदलाव के बाद जारी किए गए हैं। इस बदलाव के तहत शहरों में 29 रुपये और गांवों में करीब 22 रुपये रोज से कम खर्च करने वाला आदमी ही गरीब माना जाएगा।
गौरतलब है कि इस साल फरवरी में फुटकर बिकने वाली जरूरी चीजों के दाम में 8.83 प्रतिशत की महंगाई थी।

अगर पिछले कुछ समय  के आंकड़ों पर एक नज़र डालें  तो साफ़ दिखाई देता है की महंगाई कितनी तेज़ी से बढ़ रही है .. जिसका  सीधा प्रभाव  घरेलू  खर्च  पर पड़ रहा है  ..वंही दूसरी और घरेलू आमदनी उतनी की उतनी ही है !

एक वक़्त था जब कहा जाता था कि एक गरीबसामान्य  व्यक्ति दाल-रोटी खाकर तो अपना जीवन गुजर-बसर कर ही सकता है ..लेकिन बढती महंगाई ने इस बात को पूरी तरह से झुठला   दिया है ! धीरे-धीरे उसकी थाली से सब कुछ गायब होता जा रहा है ! दालों सब्जियों के बढ़ते भावों ने तो सोने-चाँदी को भी पीछे छोड़ दिया है ... क्योंकि एक मध्यम - वर्गीय परिवार को शेयर मार्केट में आता चढाव -उतराव या सोने कि कीमतें प्रभावित नहीं करती ..लेकिन अगर आलू , प्याज या टमाटर कि कीमत बढने लगे तो उसके चेहरे पर चिंता कि लकीरें ज़रूर उभर आती है ..क्योंकि ये बढ़ी कीमत सिर्फ उसके बजट को प्रभावित करती है बल्कि उसके परिवार को पौष्टिक भोजन से भी दूर करती चली जाती है ! दूधअनाज  , सब्जियां , दालें ... और मिठाई क़ी तरह कभी-कभार खाए जाने वाले फल वो चाह कर भी अपने बच्चों या परिवारजनों के भोजन में समिल्लित नहीं कर पाता !
25 साल पहले एक प्रमुख दैनिक में खबर प्रकाशित हुई थी  कि भारत में हर दिन करीब पांच हजार बच्चे मर जाते हैं। पिछले सप्ताह एक अखबार में छपी खबर में लिखा था कि भारत में 18.3 लाख बच्चे अपना पांचवां जन्मदिवस मनाने से पहले ही मर जाते हैं यानि  कि रोजाना 5013 बच्चे कुपोषण और भुखमरी का शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 के अनुसार भारत में पचास फीसदी बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से रोजाना पांच हजार बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। दुनिया भर में 14,600 बच्चे हर रोज मर जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि विश्व में कुल मरने वाले बच्चों के एक-तिहाई भारत में हैं।
विश्व के कुल 92.5 करोड़ भूखों में से 45.6 करोड़ भारत में रह रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 तक 17.2 करोड़ लोग भूख से मर चुके होंगे।  पिछले दिनों विश्व के नेता एमडीजी सम्मेलन में शामिल हुए तब तक करीब 12.8 करोड़ लोग भूख से मर चुके थे। 1996 से भूखों की संख्या घटने के बजाय लगातार बढ़ रही है। 2010 तक विश्व को कम से कम 30 करोड़ लोगों को भूखों की सूची से हटा देना चाहिए था। हालांकि 92.5 करोड़ भूखे लोगों की संख्या में अब तक 8.5 करोड़ की वृद्धि हो चुकी है। भूखों की संख्या कम दिखाकर भूख का विकराल रूप छुपाया जा रहा है। उदाहरण के लिए बताया जाता है कि भारत में 23.8 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं। यह संख्या निश्चित तौर पर गलत है। नए सरकारी आकलनों के अनुसार 37.2 फीसदी जनता गरीबी में रह रही है, जिसका मतलब है कि भारत में भुखमरी के शिकार लोगों की अधिकारिक संख्या 45.6 करोड़ है। यह आकलन भी कम है। भारत में शहरी क्षेत्र में मात्र 17 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन गरीबी रेखा निर्धारित की गई है। यह समझ से परे है कि इस वर्गीकरण के तहत एक व्यक्ति दो जून की रोटी कैसे खा सकता है।
दुःख क़ी बात ये है क़ी  भारत एक कृषि-प्रधान देश है ! यंहा हर वर्ष लाखों टन अनाज  गोदामों में सड जाता है .. और कई बार सही रख-रखाव ना होने  या लापरवाही के चलते वो गोदाम तक भी नहीं पहुँच  पाता .. कभी वो तेज़ बारिश क़ी भेंट चढ़ जाता है! या सही वक्त पर स्टोरेज होने के कारण चूहे , बिल्ली या कीड़े  उसे खराब कर देते हैं और जब तक सरकार को  अनाज क़ी सुध आती है तब तक वह खाने लायक नहीं रहता ... इसे प्रशासन क़ी लापरवाही कहें या उन लोगों का नसीब जो भरपूर उत्पादन के बाद भी भूखे पेट सोने को मजबूर हो जाते हैं !
ये हमारे भारत क़ी तस्वीर है .. जिसमें आजादी के 65 वर्षों बाद भी लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं ..! हमारी सरकार के पास इन सब बातों का कोई जवाब नहीं है .. क्योंकि हमारे पूज्य नेता कोयला घोटालों , 2g मसलों को सुलझाने में लगे हैं ..और उन सबके मुद्दों के आगे महंगाई कंही पीछे छूट जाती है ..क्योंकि उससे प्रभावित देश क़ी जनता है वो लोग नहीं जो देश को चलने के लिए सिहांसन पर बैठे हैं !
वही दूसरी और महंगाई से प्रभावित मध्यम- वर्गीय परिवार की बैचनी बढती ही जा रही है ! आमूमन एक परिवार में पति-पत्नी , बच्चे बुजुर्ग शामिल होते है ... लेकिन  बाज़ार में हो रहे रोज़ के उतार-चड़ाव ने उन सबको मुश्किल  में डाल दिया है ! बच्चों की पढाई , स्कूल में दाखिला , किताबें , यूनिफार्म , बस की फीस ये वो खर्चें  हैं जिन्हें तो टला जा सकता है और ही अनदेखा किया जा सकता है ! सभी माता-पिता चाहते हैं की उनके बच्चों की सबसे अच्छी शिक्षा बेहतर सुविधाएं मिले ..जिसे वो आज की गला-काट प्रतियोगिता में सबसे आगे निकल सके .. लेकिन  अभिभावकों की  यही इच्छा आज उनकी सबसे बड़ी सर -दर्द बन चुकी है ! जिसका अहम कारण है महंगाई .. जिसने उनकी  रसोई , घर , वाहन , बजट सबको हिला कर रख दिया है ..एक माँ की पीड़ा की वो छह कर भी अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन नहीं खिला पाती .. वो अपने बजट को संतुलित करने ली लितनी भी कोशिश करे लेकिन महंगाई उस पर हावी हो जाती है ! बढ़ते पेट्रोल और डीजल के दाम जिससे दुपहिया वाहन चलाना तो दुर्भर हो ही गया साथ में बढ़ते बसों के किरायों ने जीना और मुहाल कर दिया है ! ये  एक ऐसा दानव है जो सबको निगल रहा हैऔर अगर  इस   दानव को  सही समय पर रोका गया तो कंही ऐसा हो की इन्सान -इन्सान को भूलकर उसे ही अपनी पेट की आग शांत करने का जरिया बना ले