Saturday, November 24, 2012

नया सफ़र

कई बार सोचती हूँ .. वो भ्रम की जिंदगी ही कितनी अच्छी है .. जो झूठ और फरेब से कोसो दूर है .. क्योंकि जब वो भ्रम या कहूँ आँखों पर बंधी हुई वो पट्टी उतरती है .. तो एकबारगी सही और गलत , झूठ और सच में अंतर करना बहुत मुश्किल हो जाता है ... मन ये मानने को ही तैयार नहीं होता की आँखों देखी घटना पर विश्वास करें .. या कानों सुनी उन बातों पर .. लेकिन कहते हैं ना की झूठी कहानियां मीठी चाशनी की तरह होती है .. जो हमेशा हमारा ध्यान आकर्षित करती है .. पर नुकसानदायक भी होती है .. वन्ही सच का स्वाद सदा नीम जैसा कसैला ही रहा है ..... कहानी , और बड़ी - बड़ी बातों में कुछ ज्यादा ही उलझा दिया मैंने .. मैं अब असली बात पर आती हूँ .. एक ऐसी घटना जिसने फिर इस बात सोचने पर मजबूर कर दिया की .. आज भी लोगों को लगता है की शादी करके वो घर में बहु , अपने बेटे की पत्नी तो ला ही रहे हैं साथ ही ला रहे हैं खुशियाँ ..और बेंक में खुलने वाला एक सेविंग account .. जिससे कभी भी पैसे निकलवाए जा सकते हैं .. वो भी बिना जमा करवाए.....अब मैं उस घटना की तरफ बढती हूँ , जिसने मुझे ये सब सोचने पर मजबूर किया .. अपने एक जानने वालों के यंहा त्यौहार के दिन जाना हुआ ..मन में उनकी नयी आई दुल्हन से मिलने की काफी उत्सुकता थी ... क्योंकि सभी रिश्तेदारों से उसकी तारीफ के काफी प्रसंग सुन चुकी थी .. जब मिलना हुआ तब लगा की अरे वाह अगर ऐसे ही परिवार , अपने घर आई बहु को बेटी की तरह अपना ले ..तो सास- बहु के झगडे एक पुरानी बात हो जाएगी .. घर का माहौल एकदम खुशनुमा .. कोई भी बाहर से आया व्यक्ति ये पहचानने में धोखा खा जायेगा की बहु कौन है और बेटी कौन .. देखकर ख़ुशी हुई और उनकी चर्चा करते- करते हम घर आ गए .. लेकिन थोड़े ही दिनों बाद सच्चाई से पर्दा उठा की ये वही लोग हैं जो उस अठारह - या उनीस साल की लड़की को हर वक्त उसके घर जाने की धमकी देते हैं .. और कई बार उसका सामान बाँध कर उसे घर से बाहर तक फैंक दिया जाता है .. और अगर इन सब बातों से उनका दिल नहीं भरता .. तो उसका पति अपनी मर्दानगी को साबित करने के लिए उस पर हाथ तक उठा देता है ... इस बात पर विश्वास करना थोडा मुश्किल लग रहा था और मन में हजारों सवाल थे की फिर उस दिन वो प्यार , दुलार , सब क्या था .. तो पता चला ये सब सासु - माँ का सिखाया हुआ छलावा था , जिससे समाज में उनकी छवि एक अच्छी और बेहतर सास की बन सके .. जिससे वो उस संभ्रात परिवार की महिलाओं में अपने यश का गुणगान कर सके .. की बहु तो दहेज़ में ना गाड़ी लायी ना ही कोई दुपहिया वहां पर फिर भी हम उसे इतना मान- सम्मान देते हैं .. अरे किस्मत देखिये जो माँ-बाप के दो कमरों के घर में रहती थी आज यंहा बड़ी कोठी में ठाट से रह रही है ..क्या हुआ अगर शादी के बाद हमने सभी महरियों को काम से हटा दिया .. अरे खाली बैठ कर करना भी क्या है ... ये उनकी कुछ दलीलें थी .. जिसमें सब हां से हाँ मिला रहे थे ..इनमें कुछ वो महिलाएं भी हैं जो अक्सर दूसरों के ये सलाहें देती हैं .. की बहु के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ... ऐसी बातें सुनकर अक्सर मन में एक प्रश्न कौंधता है.. और बचपन का एक वाक्य याद आने लगा जब माँ बेटी को ये कहकर समझाया करती थी की जो भी शौक पूरे करने हैं .. अपने घर जाकर करना .. उसका अपना घर आज भी एक पहेली है .. वो घर जन्हा उसने जन्म लिया ..बड़ी हुई .. सपनों की दुनिया को बसाया .. जब वही घर उसका अपना न हो सका तो ये घर कैसे .. जन्हा तो उसे हर बात में यही कह कर संबोधित किया जाता है की दुसरे घर से आई है .. और ये कहनी वाली ये बात खुद कैसे भूल जाती है .. की वो भी कभी किसी दूसरे घर से आई थी ... एक तरफ हम कहते हैं .. की बहु कभी बेटी नहीं बन सकती .. लेकिन क्या कभी सास माँ बन पायी .. ये एक ऐसी बहस एक ऐसा मुद्दा है जिसका कभी कोई अंत नहीं आया .. हाँ पर इस सोच को बदलने की एक पहल तो की जा ही सकती है .. जिससे हर साल दहेज़ की आग में जलने वाली लड़कियों की संख्या में कुछ कमी आ सके .. और लड़की भी बहु से बेटी का सफ़र तय करने की हिम्मत जुटा सके ..