Thursday, July 25, 2013

कलयुगी सत्कार

राजू अभी पूरी सीढियाँ चढ़ कर चौबारे तक भी  नहीं पहुंचा  था की वन्ही से चिल्लाने  लगा मम्मी जल्दी खाना बनाओ बहुत ज़ोरों की भूख लगी है ! उसकी आवाज़ सुन कर बबिता हंसती हुई रसोई घर में चली गयी और खाना बनाने लगी ..अरे  राजू जाओ जरा  फ्रिज से वो सब्जी वाला डोंगा तो उठाकर ले आओ ..और बिना  एक पल गंवाएं राजू ने डोंगा माँ के सामने हाज़िर कर दिया ..अरे ये नहीं पगले ये तो परसों रात की दाल है ..वो उठाकर ला  जो दूसरी तरफ  रखा है ..तो माँ इसे फैंक दूं ! अरे फैंकना क्यों है इससे अच्छा  तो  तेरे दादाजी को  परोस दूंगी ..रसोई के बाहर  खड़ा राजू कभी अपनी माँ तो कभी दादा जी की आँख से निकले आंसू देख रहा था