राजू अभी पूरी सीढियाँ चढ़ कर चौबारे तक भी नहीं पहुंचा था की वन्ही से चिल्लाने लगा मम्मी जल्दी खाना बनाओ बहुत ज़ोरों की भूख लगी है ! उसकी आवाज़ सुन कर बबिता हंसती हुई रसोई घर में चली गयी और खाना बनाने लगी ..अरे राजू जाओ जरा फ्रिज से वो सब्जी वाला डोंगा तो उठाकर ले आओ ..और बिना एक पल गंवाएं राजू ने डोंगा माँ के सामने हाज़िर कर दिया ..अरे ये नहीं पगले ये तो परसों रात की दाल है ..वो उठाकर ला जो दूसरी तरफ रखा है ..तो माँ इसे फैंक दूं ! अरे फैंकना क्यों है इससे अच्छा तो तेरे दादाजी को परोस दूंगी ..रसोई के बाहर खड़ा राजू कभी अपनी माँ तो कभी दादा जी की आँख से निकले आंसू देख रहा था !