Thursday, November 14, 2013

सपने बिकते हैं

सपने बिकते हैं भरे बाज़ार में ,
लगाओ बोली देकर कीमत 
टांग लो आकर , घर की दीवार में 
सपने बिकते हैं भरे बाज़ार में .
जमीन से लेकर इज्ज़त दांव पर लगती है ..
जब  चौखट पर खड़ी बारात , गाडी की मांग करती है 
सबके सामने बाप का सर झुक जाता है ..
आँखों के आंसू रोक वो अपनी  पगड़ी को संभालता है 
पर जब  नाजों से पली बेटी का चेहरा सामने आता  है 
अपनी इज्जत भूल वो फिर कोशिश में लग जाता है 
तभी एक सपना उसी पल  बिक जाता है 
बेटा  अच्छे नम्बर ले दौड़ के घर आता है 
बाप का सीना , गर्व से फूल जाता है 
टूटी छत निहार कर माँ बलैया  लेती है ..
 बहन उतार के आरती, नौकरी की दुआएं देती  है 
 इंटरव्यू में बाबु साहिब मोटी  कीमत मांगता है 
 जेबें  खाली देख  धक्के मार  निकालता   है 
 पूरे  परिवार  का चेहरा जब सामने आता है 
तभी एक सपना उसी पल  बिक जाता है 
माँ में  पर बोझ  नहीं साबित करुँगी 
पढूंगी , लिखूंगी , नाम करूंगी रोशन , आगे बढूंगी 
लेकिन एक काला साया , ये सपने बर्दाश्त नहीं कर पाता 
करके जार-जार उसकी आबरू ,रूह को तड़पाता है 
सडक पर पड़ी बेटी को देख , माँ का कलेजा फट जाता है 
तभी एक सपना उसी पल  बिक जाता है 
 फसल लहराएगी , नयी क्रांति आएगी .
 पढेंगे लिखेंगे बच्चे हमारे ,होगा चारों और विकास , 
तभी ज़मीनों का अधिग्रहण हो, बुलडोजर चल जाता है 
एक पल में सब कुछ मिटटी हो जाता है 
तभी एक सपना उसी पल  बिक जाता है ..
बस इतनी सी कीमत है इन सपनों की , एक पल में बिखर जाते हैं 
मिलता है जब खरीददार , बिना बेचे ही बिक जाते हैं ...