
गिरते उठते -क़दमों ने , संभलकर चलना सिखाया मुझको ...
खामोश लबों पर मुस्कराहट की पहचान मिली है मुझको ...
खूबसूरत सपनों का एक संसार मिला है मुझको ..
इस दुनिया में कुछ करना है . अपने नाम को सार्थक करना है ..कुछ ख्वाब सजाये थे ..
लेकिन गुज़रते वक़्त ने सपनों की तस्वीर बदलनी चाही ..
कैसे अपने सपनों को भूल चली थी मैं ..
अपनी ख्वाहिशों का गला घोट .. किस और चली थी मैं ..
आज इन एहसासों ने उम्मीद की किरण दिखाई है मुझे ..
अपने भरोसे आसमान का सफ़र मुझे तय करना है ..
जिंदगी में आगे बढ़ ..सपनों को साकार करना है ...
sundar prastuti
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