Tuesday, December 29, 2009
अधूरे सपने
चंचल मन ,
हर समय , या दिन के आठों पहर
करता है जुगत इन्हें हकीकत में बदलने की
चाहता है की इस दुनिया को अपने हिसाब से बदल दे,
पर मुमकिन नहीं ,
चाहता है की मरती इंसानियत को जिन्दा करदे
जो नहीं डरती एक बच्ची का जीवन खत्म करते
उसे नोचते ,वो भी बिना किसी कसूर के
सपना देखता है की नव वर्ष पर बहने वाले पैसे
से कोई किसी मासूम का पेट भर रहा है
अलमारी में लगे कपडे के ढेर को
किसी का तन ढकने के लिए बाँट रहा है ,
ढूँढती है आँखें रोज , सड़क के किनारे बेठे
की शायद कोई इस बार सर्दी से बचने का
कम्बल दे जाये ............
पर ये सपने -सपने ही रह जाते है , इतने में इक
सर्द रात में आँख खुल जाती है ........
आँख खुल जाती है !
Sunday, December 27, 2009
अधूरे सपने
सरहद के पार
हर आखिरी लम्हा क्यों बेशकीमती हो जाता है ,
इन आँखों को तो नसीब भी न हुई तेरे चेहरे की एक झलक ... फिर भी
अगली मुलाकात का इंतज़ार शुरू हो जाता है .....
रहे खैरियत से तू अपने उस मुल्क में यही दुआ करते हैं ,
करे दीदार तेरे चेहरे का यही फरियाद करते है ,
ये कुछ कदमो की दूरी है ..पर सरहद पार नहीं होती ( बाघा बॉर्डर).
देख उस सरहदी रेखा को ये आंखे बड़ा है रोती..
दिल के इतने करीब है पर मीलों की दूरी तय नहीं कर पाते ,
याद करते हैं तन्हाई में पर कह नहीं पाते ,
रहना -सहना ,बोली पर मुल्कों के नाम अलग है ...
रिश्ते हैं वही पर बुलाने के नाम अलग है ,
मेरी मजबूरी वंहा आने नहीं देती ..तेरी बेरुखी कहे
या कुछ ऐसे मसले जो तुझे यंहा आने नहीं देते ,
यादें साथ हैं और हमेशा रहेगी ..कभी ताज़ी तो कभी मुरझाई ..
बगिया के उन फूलों की तरह जो पतझड़ के बाद बसंत का इंतज़ार करते
फिर से खिल जाने के लिए !
बदलते रूप
कुछ दिन बाद उसे बिजनेस में बहुत बड़ा फायदा हुआ ! घर में जशन का माहौल था ! माँ -बाप रमेश की बलाएं लेते नहीं थक रहे थे ! बच्चे घुमने का प्रोग्राम बना रहे थे ! घर में खुले आम शराब चल रही थी पर किसी के मुख पर कोई शिकन का भाव नहीं था !
पत्नी कोने में खड़ी सबके बदलते रूप का तमाशा देख रही थी !
Sunday, November 22, 2009
ਸਿਆਣਪ
रिअलिटी की वास्तविकता
Monday, November 9, 2009
किसका दोष
Friday, November 6, 2009
सुनहरी परी
Thursday, November 5, 2009
सबक
Tuesday, October 20, 2009
याद
रेगिस्तान में तपती उस गर्म रेत की तरह ,
कभी बर्फ की तरह शरीर को अंदर तक ठंडक पहुंचाती ...................
तेरी याद
जो छुए -अनछुए पलों का एहसास कराती ,
तेरी याद को लगाकर सीने से सितम दुनिया के सहते हैं ,
आँखें रोती है , तेरी जुदाई में लेकिन लब कुछ न कहते हैं ,
तेरी यादों के झरोखों से निकलना हम न चाहेंगे ,
गाहे -बगाहे दोस्तों इन्ही लम्हों के सहारे जिन्दगी बिताएंगे !
जन्मी का धर्म
Saturday, September 5, 2009
अनजाने रिश्ते
जब कुछ पास ही नहीं तो डर कैसा ...
न जुदाई का .न मिलन का
कोई है ही नही तो सितम कैसा ...
इस कशमश में जिए जायेंगे ....
है इंतज़ार ,
किसी के आने का ...............
इसी उम्मीद में ख़ुद को जलाएंगे ....
पर न मेरे जले का होगा कोई असर ......
जब कोई असर ही नहीं तो दर्द कैसा ......
फ़िर भी बना रहेगा एक अनजाना रिश्ता ,
जिसका नाम ही नहीं वो रिश्ता कैसा ,
कुछ कहे -अनकहे पल । वो मीठी सी चुभन
एक चुभन ही तो है ,अब इंतज़ार कैसा
Friday, September 4, 2009
प्राथना
बाबा फसल पकने वाली है ! कितना मजा आयेगा न ? बाबा आप हमें नए कपडे लाकर दोगे न ! तभी मुन्नी बोली , और मुझे नयी गुडिया भी चाहिए ! बाबा मुस्कुराने लगे - की हाँ भगवान् की कृपा रही तो सब कुछ आ जायेगा ! बस तुम प्राथना करो की एक हलकी सी फुहार आ जाये ताकि खडी फसल पूरी तरह तैयार पक होकर जाये ! राजू तुंरत बोला ,'में प्राथना करता हूँ वह मेरी सुनता है "! माँ की आवाज आई , चलो अब सो जाओ , बहुत देर हो गयी है ! मुन्नी क्या अब हमें अच्छे - अच्छे पकवान भी मिलेंगे ! पता नहीं और दोनों भाई - बहन बाते करते सो गए ! सुबह का सूरज कुछ और ही लेकर आया था ! फसले पानी में तैर रही थी ! पानी , फसलों के साथ - साथ सपनो को भी ले गया था ! राजू अब भी पूछ रहा था की भगवान् को और क्या कहना है !
Friday, August 21, 2009
सुनहरी चिठ्ठी
में भी सोचते - सोचते यादों के सफर में चली गई ! यद् आने लगा वह बचपन में पिताजी की बॉर्डर से आती चिट्ठी और माँ का दिल घबराना , पड़ने से पहले भगवन को याद करना , खैरियत की खबर को देख कर कभी रोना तो कभी मुस्कुराना , बार -बार पड़ते रहना , उसे अपने दिल से लगाना , हर समय उनकी लम्बी दुआओं की कामना करना ! किसी अमूल्य अनमोल खजाना उनके अपने पास संजो के रखना आज भी उनका ये अनमोल खजाना आज भी उनके पास वेसे ही सुरक्षित है ! कभी कबूतरों , कभी डाकिये अब ये नेटवर्क कनेक्शन ,सन्देश भेजने का सरल और तुरंत तरीका है ! चिट्ठी जब देर से पहुँचती या एक जेसे नाम होने के कर्ण गलत घर में जाती तो वह हास्यपद स्थिति का अलग ही मजा होता ! शादी के बाद बेटी की पहली चिठ्ठी जिसका माँ को बेसब्री से इंतज़ार होता , जिसमे वह ससुराल का पूरा हाल लिखती ! वह इंतज़ार के पल , जो गर्मी के मौसम में पहली बारिश सा आनंद भर देते थे ! लैटर बॉक्स झाँकने पर कुछ मिला ! मेरी बेटी का कम्पनी में सिलेक्शन हो गया था उसका काल लैटर था ! उसका दिन -रात मेहनत करता चेहरा आँखों के सामने आना लगा ! चिट्ठी की ख़ुशी में बय्याँ नहीं कर सकती थी ! वह अपने ख्वाबों के आसमान में मंजिल को छूने के लिए तैयार थी ! मेरे दिल से निकल पडा की मेरी जिन्दगी की चिट्ठियों में इ खुशियाँ लेकर आने वाली सुनहरी चिट्ठी तेरा स्वागत है ! शायद आज भी तेरा असितत्व और गौरव कायम है , तेरी जगह कोई नहीं ले पाया है !
जुदाई का एहसास
उसका एहसास नहीं कर सकते .......
गम तुझे ज्यादा है ,हमारी जुदाई का .....
पर ब्यान नहीं कर सकते ......
तू दूर जाकर हमसे हमे भूलना है चाहता ,
पर ..........................
ये यादें तेरा साथ नहीं छोड़ती , जितना जाते हैं
दूर ये उतनी ही पास चली आती हैं .......
तेरी साँसे भी दिल का हाल बया कर जाती है ,
आवाज तेरी उन्ही यादों के झरोंखो में लाकर ,
ठहरा देती है , जहाँ से निकलना तो है नामुमकीन ,
और रहना मेरे गम का सबब बनता जा रहा है .........
जितना चाहते हैं भूलना , तू हमें उतना ही याद आ रहा है
जानते हुए की कभी ..........
मिल न पाएंगे ,
तेरी नज़रों को जाम हम कब अपनी नज़रों के पिलायंगे ,
फिर भी ये बाजी खेलना चाहते हैं ,
सब जानकर भी हारना चाहते हैं .....क्योंकि
मजबूर हैं , तुझसे दूर हैं ......
किनारा एक जितना दुसरे किनारे से हैं ,
न वो किनारे कभी मिल पाएंगे ....ऐसे ही हम
तेरी यादों के सहारे जिन्दगी बिताना चाहेंगे !
Thursday, August 13, 2009
बाढ़ से फायदा
नजारे
नजारों का क्या है ,नजारे तो नजारे थे !
कंही प्रक्रति की मनमोहक छटा ,तो कंही बाढ़ से पीड़ित लोग थे
कंही मासूम मुस्कान ....................तो कंही ........
भूख से बिलबिलाता बच्चा था !
नजारों का क्या है ,नज़ारे तो नज़ारे थे ......
कंही सात फेरे लेता नवविवाहित जोड़ा ....
कंही पति का शोक मनाती ....या दहेज़ की
आग में झुलसी दुल्हन ......
किसी की आँख में खुशी के मोत्ती .....
कंही दर्द की पुकार है ..........
कोई लड़ता हक़ की लड़ाई ......
तो कोई बेबस और लाचार है .....
नज़ारे तो नजारे ...कंही प्यारे ,
कंही अन्धकार है !
Saturday, July 25, 2009
छिपा हुआ चाँद
क्योंकि ....चाँद में उनका दीदार है आया
जब उस चाँद को देखने हम छत पर आये ,
तो देखा की चाँद को भी है बादलों ने छुपाया ..........
एक तो उनकी याद में , पहले ही उदास थे हम ,
ऊपर से चाँद ने भी कर दिए , हम पर कितने सितम ....
की एक चाँद को देखने , चाँद के पास आये थे ...
सोचा की तेरी यादों के खजाने को लेंगे बाँट ........
लेकिन ये चाँद तो खुद अपने चकोर से मिलने को रहा ,था तरस .....................
जिसे बादलों ने खुद में छुपाया था।,
तब चाँद ने भी हवा को अपना संदेश सुनाया था ।
की जाकर छु ले मेरे दोस्त को तू सरहद के पार
और कह दे उसे की तेरा दोस्त कर रहा .........है तेरा इंतज़ार !
Friday, July 17, 2009
कैसा होगा इनका भविष्य

अपनी हैरानी में छिपा नही पाई , जब उस सात -आठ साल की बच्ची ने मुझे बताया की उसका सपना है की उसे पेट भर खाना खाने को मिले ! इस तरह की घटनाएँ यह सोचने पर मजबूर करती है की आज भी भारत में न जाने कितने बच्चे ऐसे हैं , जो भुखमरी और अशिक्षा के शिकार हैं ! ये बच्चे भारत का भविष्य हैं और निश्चित तौर पर स्वयं इनका भविष्य उज्जवल नही है ! उनके भविष्य को सवारने वाला कोई नही है !
पन्द्र्वी लोकसभा का चुनाव , और बजट कुछ दिन पहले ही सब ख़त्म हुआ है ! सभी राजनितिक दलों और नेताओं ने बडी-बडी बातें की ,पर किसी का ध्यान ऐसे बच्चों और उनकी जरूरतों की और नही गया ! किसी ने इस तरह के मुद्दे को एक बार भी अपने भाषण में शामिल नही किया ! जगह -जगह महिलाएं छोटे -छोटे दुधमुहे बच्चों को गोद में लेकर भीख मांगती हुई आसानी से नजर आ जाती हैं ! कभी इन बच्चों पर दया आती है , तो कभी घृणा भी होती है की अगर इन्हे अच्छी परवरिश नही दे सकते थे , फिर इन्हे पैदा ही क्यों किया !
सरकार को भीख मांगने पर पुरी तरह से पाबंदी लगनी चाहिए और भीख मांगकर अपना गुजरा करने वालों के लिए रोजगार योजनायें लागू करनी चाहियें ! खासतौर पर बच्चों के द्वारा भीख मांगने पर पूरी तरह से पाबंदी लगनी चाहिए !यही बच्चे बडे होकर चोरी , नशाखोरी व् ग़लत काम करते हैं !क्यों न बच्चपन में ही इतनी शिक्षा दी जाए की इन बच्चों को एक बेहतर भविष्य मिल सके !देश का सारा भार इनके कंधो पर हैं , अगर इन्हे मजबूत न किया गया तो देश का भविष्य कैसा होगा ?
Thursday, July 16, 2009
नसीहत
विदाई का समय हो गया है ! अनीता को भेजो ! बस उसे कुछ समझा कर आई ! बेटी ससुरालवालों के आगे झुकना नही और गौरव को तो शुरुआत से ही अपने बस में कर लेना ! हमने सब सामान दिया है और तेरे साथ है , किसी भी बात की कोई चिंता करने की जरूरत नही है ! समझ गई ?
बेटी हाँ कहकर रोतीरोती चली गई ! आज जब बड़े चाव से अपनी बहु को लेकर आ रही थी तो मन में सोचने लगी की अब सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जांउगी ! तभी मेरी समधन की आवाज मेरे कानों में पड़ी , बेटी सास को हमेशा माँ समझना , जैसे में कुछ कह देती हूँ अगर व भी कह दे तो दिल से न लगाना ! उनकी सेवा में ही स्वर्ग है !
सहसा मुझे अपनी बेटी को दी हुई नसीहते याद आने लगी की अगर आज इन्होने भी अपनी बेटी को वही समझाया होता तो उसका घर भी बनने से पहले उजड़ जाता और हम सबका क्या हाल होता !
Tuesday, July 14, 2009
यादें

आज क्यों बार -बार हमें
तुम्हारी याद आ रही है ,
यह यादें ही हैं जो हमें इतना सता रही हैं ,
कैसे कोई दिल के
करीब आया है
साथ में जुदाई का गम भी लाया है
न चाहते ,या चाहते ,तुम्हारी यादों में खो जाते हैं ,
उन हसीं लम्हों को याद कर चेहरे पर ,
मुस्कुराहट लाते हैं ,
देखते है सपने ,बंद ही नही
खुली आंखों से भी ...............की
तुम्हारे करीब है हम , पर न जाने क्यों ......
ये सपने डरा जाते हैं ...कितनी दूर हो तुम ,
यह एहसास करवा जाते हैं .......
यह सोच ख़ुद को तसल्ली बख्शते हैं ॥
की चाँद के बहाने रोज मिलने तो हो आते ॥
कभी हवा के झोंके तो कभी सूरज की किरण
बन छूकर हो जाते ..........................
वंहा रहकर भी तुम .......यंहा हो .....
यंहा होकर भी .......में वंहा हूँ ,
फिर भी न जाने क्यों ,एक बेचेनी की वजह हो ,
यह बेचेनी बदती जाती है ....तुम्हारा
अक्स सामने लती है ......
उस अक्स को देख कर मेरी ॥
जान तुम्हे मिलने को हर दम निकलती जाती है ......
Saturday, July 11, 2009
ओ मां...

ऐ खुदा,
तूने मां के रूप में एक फ़रिश्ता है दिया
जिसने कभी अपने बच्चों से कुछ न लिया
कितनी ही गलती करे वह या करे नादानियां
तेरी ममता की झोली भुला दे सारी परेशानियां
जब पास होती हैं तो तुझे जान नहीं पाते
क्या है कीमत तेरी पहचान नहीं पाते
तुझसे दूर होकर जाना
आज तू बड़ी याद आ रही है
क्यों करती है इतना प्यार अपने बच्चों से
कि तेरी दूरी इस कमी का एहसास करवा रही है
ये ममता का आंचल
हमेशा खुशियां ही निछावर करता है
जब करते है गुस्ताखी तो मां
तुझसे ये दिल डरता है
आ मां मेरे पास
तेरी यादें सता रही हैं
तेरी बातें आज बहुत रुला रही हैं...
Friday, July 10, 2009
इंतज़ार है चांद को भी...

बादलों में छिपे ऐ धुंधले चांद
तेरी भी अपनी ही है एक कहानी
किसी को दिखता है तुझमें
रोटी का टुकड़ा तो किसी को खोई जवानी
किसी का सपना है चांद को छूना
तो कोई देखे इसमें महल चौबारे
न जाने कोई इस चांद की व्यथा
जाने इसे बस अंबर के तारे
दुनिया का साथी चांद
किसी का महबूब
तो किसी की लंबी जुदाई का सबब बन जाता है
खुद कितना अकेला है ये
बस अपनी आधी पूरी जिंदगी में ही बंट जाता है
एक बच्चा जब पूछे मां से कि
इसकी भी क्या है कहानी
कभी यह पूरा ख़ुशी में गोल
कभी गायब जैसे आंख से बहता पानी
मां बोलती ये ही है जिंदगानी
जिनके पास है एशो-आराम
उनकी रोज है ईद-दिवाली
चांद भी यह सुन कर हैरां परेशां है
क्यों निकलती हमेशा इन गरीबों की जान है
कभी-कभी वह भी देख तंग हो उठता है
कि क्या हो रहा है संसार में
पर खुद को मान अपाहिज
वह भी चुप हो जाता है
अपना दर्द वह भी कभी किसी को नहीं बतलाता है
काम अपना कर रहा है
दुनिया को देख-सुन रहा है
उम्मीद करता है वह उस दिन की
जब वह बच्चा भी चांद में अपने सपने को देख सकेगा
अब लगता है
उस दिन का चांद भी बेसब्री से इंतजार करेगा...