Saturday, September 5, 2009

अनजाने रिश्ते

ना खोने का , ना पाने का ...
जब कुछ पास ही नहीं तो डर कैसा ...
न जुदाई का .न मिलन का
कोई है ही नही तो सितम कैसा ...
इस कशमश में जिए जायेंगे ....
है इंतज़ार ,
किसी के आने का ...............
इसी उम्मीद में ख़ुद को जलाएंगे ....
पर न मेरे जले का होगा कोई असर ......
जब कोई असर ही नहीं तो दर्द कैसा ......
फ़िर भी बना रहेगा एक अनजाना रिश्ता ,
जिसका नाम ही नहीं वो रिश्ता कैसा ,
कुछ कहे -अनकहे पल । वो मीठी सी चुभन
एक चुभन ही तो है ,अब इंतज़ार कैसा

4 comments:

  1. इसी उम्मीद में ख़ुद को जलाएंगे ....
    पर न मेरे जले का होगा कोई असर ......
    जब कोई असर ही नहीं तो दर्द कैसा ......

    सुन्दर !

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