लेकिन कई बार ऐसी खबरें भी देखने को मिलती हैं कि जिस इंसान के हाथ में लोगों की जान बचाने का जिम्मा होता है, वह उनकी जान और आबरू से खेल जाता है। अपनी लापरवाही से उसे मौत की नींद में सुला देता है या उसके शरीर के अंग बेच कर पैसे कमाता है। अगर कभी पकड़ा भी गया तो पैसे खर्च कर बाइज्जत बरी हो जाता है। कभी कोई विदेशी आ कर एक पल में हजारों लोगों की जिंदगी को अपाहिज बना डालता है और पच्चीस वर्ष के लंबे इंतजार के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ पाता है। हां, शिकार हुए लोगों के परिवार को मुआवजे के रूप में कुछ पैसे मिल जाने का भरोसा जरूर मिल जाता है। हमारे देश में एक तरफ रोज लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं और दूसरी ओर करोड़ों मन अनाज सड़ जाता है। ये बातें सोच कर किसी का कलेजा फटने लगता है है, लेकिन ज्यादातर लोग उसी व्यवस्था का अंग बन जाते हैं।
जब एक छोटा बच्चा स्कूल नहीं जा रहा होता है तो उसे टॉफी या चॉकलेट का लालच दिया जाता है। रिश्वत का पहला पाठ तो यहीं से शुरू हो जाता है। फिर हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार कहां से आता है। दरअसल, हम सब भी कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में लापरवाही बरतते हैं। भ्रष्टाचार हमारे लिए किसी भाषण प्रतियोगिता में लिखे जाने वाले लेख से ज्यादा कोई समस्या नहीं होता जिसे रट कर याद करना और भ्रष्टाचार के लिए जवाबदेह हालात से मुंह चुराना ही हमारा जीवन होता है।