Tuesday, November 30, 2010

ऊपर से नीचे

अगर सड़क टूटी दिखती है तो हम प्रशासन को दोष देते हैं और कर्मचारियों को कोसते हैं! लेकिन मुझे लगता है कि कहीं न कहीं गुनहगार हम भी है! याद आता है जब सड़क बनाने का कॉन्ट्रैक्ट निकलता है। सबसे पहले ठेकेदार सीमेंट में घटिया रेत और बजरी मिलाता है। नीचे से लेकर ऊपर तक हर कोई पैसे खाता है। जब जांच समिति बैठती है तो हर कोई भोलेपन से सिर हिलाता है और वही आज के समय में ईमानदार भी कहलाता है। लोग कहते हैं कि भ्रष्टाचार जड़ों को खोखला बनाता है। पहले यह तो बताइए की यह कहां से आता है! गरीब, जरूरतमंद को पेंशन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। गांव का नंबरदार आकर पहले अपना नाम लिखवाता है और हर महीने पेंशन का पैसा उसके बैंक खाते में जमा हो जाता है। गरीब बेचारा रोता रह जाता है। आखिर सरकार से यह स्थिति अनदेखा कैसे रह जाती है। जब बाढ़ या सूखे की वजह से हजारों लोग काल का ग्रास बन जाते हैं, एक पल में जिंदगियों के घरौंदे उजड़ जाते हैं, खाद्य सामग्री अफसर चट कर जाते हैं, राहत मद में गरीबों की मदद के लिए आए कंबल बाजारों में पहुंच जाते हैं, तो लोग भ्रष्ट नेताओं को गाली सुनाते हैं। लेकिन ऐसी स्थितियां भी देखने में आती हैं जब आपदाओं के वक्त लोग एकजुट होकर पीड़ितों की मदद करते हैं। उस मानवीयता और देश प्रेम के आगे भ्रष्टाचार हार जाता है।
लेकिन कई बार ऐसी खबरें भी देखने को मिलती हैं कि जिस इंसान के हाथ में लोगों की जान बचाने का जिम्मा होता है, वह उनकी जान और आबरू से खेल जाता है। अपनी लापरवाही से उसे मौत की नींद में सुला देता है या उसके शरीर के अंग बेच कर पैसे कमाता है। अगर कभी पकड़ा भी गया तो पैसे खर्च कर बाइज्जत बरी हो जाता है। कभी कोई विदेशी आ कर एक पल में हजारों लोगों की जिंदगी को अपाहिज बना डालता है और पच्चीस वर्ष के लंबे इंतजार के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ पाता है। हां, शिकार हुए लोगों के परिवार को मुआवजे के रूप में कुछ पैसे मिल जाने का भरोसा जरूर मिल जाता है। हमारे देश में एक तरफ रोज लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं और दूसरी ओर करोड़ों मन अनाज सड़ जाता है। ये बातें सोच कर किसी का कलेजा फटने लगता है है, लेकिन ज्यादातर लोग उसी व्यवस्था का अंग बन जाते हैं।
जब एक छोटा बच्चा स्कूल नहीं जा रहा होता है तो उसे टॉफी या चॉकलेट का लालच दिया जाता है। रिश्वत का पहला पाठ तो यहीं से शुरू हो जाता है। फिर हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार कहां से आता है। दरअसल, हम सब भी कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में लापरवाही बरतते हैं। भ्रष्टाचार हमारे लिए किसी भाषण प्रतियोगिता में लिखे जाने वाले लेख से ज्यादा कोई समस्या नहीं होता जिसे रट कर याद करना और भ्रष्टाचार के लिए जवाबदेह हालात से मुंह चुराना ही हमारा जीवन होता है।

Wednesday, September 15, 2010

छोटे आम की बड़ी सीख


आकाश में बादलों को उमड़ता देख नंदन वन के सभी पेड़ ख़ुशी व्यक्त  करने लगे ! भीषण गर्मी  से उनके पते  व शाखाएं झुलस चुकी थी ! बादलों को देख उन्हें कुछ राहत मिलती नजर आई !  मुझे तो मिटटी की भिन्नी -भिन्नी खुशबु बहुत अच्छी लगती ! सभी पेड़ हैरानी से इधर -उधर देखने लगे की यह आवाज कंहा से आ रही है , इतने में नीम काका की नजर एक छोटे से पौधे पर पड़ी ! अरे यह तो छुटकू आम का पौधा कह रहा है ! जी हाँ कल रात की बारिश व सुबह सूरज की रौशनी पड़ने से ही में अस्तित्व में आ पाया हूँ ! लेकिन मैंने धरती माँ के गर्भ से आपकी सभी बातें सुनी हैं ! यह तो बड़ी अची बात है , तुम्हारा नंदन वन में स्वागत है , बरगद दादा ने कहा , जी धन्यवाद् ! वह सभी पेड़ इस वार्ता से हसने लगे ! सभी पेड़ -पौधे अपने अनुभव एक -दुसरे के साथ बाँट रहे थे , व साथ ही ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे ! अचानक बाबुल चाचा ने कहा , सावधान लगता है कुछ मानव जाति के प्राणी इसी और आ रहे हैं ! नहीं , में अभी मरना नहीं चाहता  , शीशम  के पेड़ ने कहा ! बेटा मरना तो कोई नहीं चाहता , लेकिन यह मानव जाति हमें ख़तम कर अपना ही नुकसान करने पर आतुर है ! कभी पेड़ , पह्धों , नदियों की आराधना करने वाले ये लोग आज प्रक्रति से दूर हो गए हैं ! इनकी जीवन -शैली  इतनी बदल गयी है की आज यह जीवन की अवहेलना करने लगे हैं १ वे अपनी बात अभी पूरी भी नहीं कर पाए थे की एक जोरदार आवाज आई १ यह सरे पेड़ हमें आज ही काटने हैं , कंही बारिश आ गयी तो गिल्ली लकड़ी को संभालना तो मुश्किल होगा ही , इसके दाम भी कम हो जायेंगे १ जी सरकार कह वह तीनों अपने काम में जुट गए ! एक -एक करके पेड़ कटते चले गए और जंगल वीरान होता चला गया !  किसी पक्षी का घोसला गिरा तो कंही उसमें रखे हुए अंड्डे पक्षी बेघर हो गए , पक्षी दाना लेने गए थे और कोई मानवीय  भूकंप उनके आशियानों को तेहस -नहस कर गया था ! वंही दूसरी और छुटकू आम का पौधा `डरा सहमा संव्य को कोस रहा था की काश वह आज भी बाहर न आता ! लेकिन किस्मत का लेखा कोई बदल नहीं सकता ...तभी एक लकडहारे की नजर उस पर पड़ी वह जैसे ही हाथ बढाने के लिए आगे बड़ा तो छुटकू आम विनती करता हुआ कहने लगा , मुझे छोड़ दो , मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ! लकडहारा उतने ही तीव्र सवार में कहने लगा की बिगाड़ा तो उन पेड़ों ने भी कुछ नहीं था , वे तो कुछ नहीं बोले तो गीठ बार का ज्यादा उछल  रहा है ! वे अपनी जिन्दगी का एक हिस्सा गुजार  चुके हैं ! में आज ही प्रकाश में आया हूँ ! मेरे कुछ सपने हैं , में जीना चाहता हूँ , फलना चाहता हूँ , में भी चाहता हूँ की मेरी डालियों पर कोयल कूके , बच्चे मेरे मिट्ठे फल खाएं ! आम का वह एक पौधा एक सांस में सभी दलीले दिए जा रहा था ! पता नहीं केसे लकडहारे को उसकी भोली बातो पर दया आ गयी , वह उसे छोड़ते हुए बोला हाँ मैंने तो तुम्हे छोड़ दिया , पर तुम्हारा अस्तित्त्व तो तेज हवा तक मिटता देगी ! यह मेरी किस्मत , आम ने द्र्द्ता से कहा ! अब तक शाम हो चुकी थी चारोँ लोग लकड़ी इकट्ठी कर जा चुके थे ! वह अकेला खड़ा वंहा आंसू बहता रहा की कुछ पल पहले जन्हा जिन्दगी बस्ती थी अब खामोशियत का साया है ! सब सोचते -सोचते न जाने कब वह गहरी निन्द्रा में चला गया ! रात को एक भयानक तूफान आया और उसे एक नयी मंजिल की और ले गया ! सुबह जब वह उठा तो एक नदी के किनारे उसका बसेरा था ! सुबह हुई बारिश व बाद में निकली धुप ने उसे वंही जमा दिया , अब उसे अपना भविष्य साफ़ दिख रहा था ! उस छुकू आम ने जड़ों को फैलाना शुरू कर दिया वह उतनी ही कसावट से धरती को पकड़ना शुरू कर दिया ! धीरे- धीरे वह बढता गया और उसके सभी सपने सच होते चले गए ! एक दिन वही फलदार वर्कश अपने पेड़ पर बैठे सभी पक्षियों को अपना यात्रा वृतांत सुना रहा था ! अचानक उसे किसी की कर्हाने   की आवाज आई देखो तो जरा कौन है , आम दादा ने चिड़िया को कहा , जी हाँ में अभी पता लगाती हूँ ! वह उध कर वंहा गयी तो देखा की एक आदमी लू से पीड़ित वंहा गिरा पड़ा था ! उसने यह बात जाकर आम दादा को बताई ! वे कहने लगे घबराओ नहीं हम उसकी मदद करेंगे ! उसके ऊपर पानी की छींटे मरो व नदी तक ले आओ १ उन्होंने वेसे ही किया , वह आया और आकर पानी पिया ,हाथ-मुह धोये व पेड़ की घनी छाया में बैठ गया ! उसके बैठते ही आम काका ने अपने फल गिराने शुरू कर दिए ! जब उस आदमी ने ऊपर उठ कर देखा तो वही छुटकू आम धन्यवाद् कहने लगा ! वह आदमी बोला शुक्रिया तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए और तुम मेरा ...तब आम ने कहा तुम्हरी ही दया से आज में यंहा विशालकाय  रूप में खड़ा हूँ ! अगर उस दिन तुम मुझे नहीं छोड़ते तो में भी वंही विलीन हो जाता ! वह उसे याद करने के लिए सारी कहानी दोहराते हैं ! उस आदमी को बहुत गलानी महसूस होती है , की हमसे कितनी बड़ी भूल हुई है ! हम अपनी इस अनमोल धरोहर को समाप्त  करने पर आतुर हैं ! अगर यह न होगी , हम तो संव्य मिट जायेंगे , जीवन की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! अगर आज यह पेड़ न होता तो में धुप में पड़ा मर जाता ! छोटा आम जो अब बहुत बड़ा हो चूका था समझाने लगा की आक्सीजन , फल- सब्जियां , वर्ष , छाया , जलने के लिए लकड़ी सब तुम्हे पेड़ों से प्राप्त होती है ! तुम उन्हें ही काटे जा रहे हो ,! मुझे माफ़ कर दो , में समझ गया , अब में संव्य व्रक्षारोपण करूँगा ! वह दूसरों को भी इसका महत्व बता , प्रोत्साहित करूँगा ! आपने अब मेरी जिन्दगी को नयी दिशा प्रदान कर दी है ! आपका बहुत - बहुत धन्यवाद् कहकर वह चला गया ! उसकी बातें सुनकर , छोटा आम भी एक नए नंदन वन के सपने सजाने लगा !
 

Tuesday, July 27, 2010

इंतज़ार





सावन के मास को अगर प्रेम का समय कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति  नहीं होगी होगी ! कोई भी प्रेमिका सावन के मौसम में अपने प्रेमी से दूर नहीं होना चाहेगी इन्ही भावों को शब्दों में पिरो कर काव्य रूप देने का एक प्रयास किया है !

आज फिर आसमान ने बादलों की चादर ओढ़ रखी है ,
चारों तरफ एक प्यार भरा एहसास है ,
मन ख़ुशी से रहा है  , मयूरों की तरह झूम,
इंतज़ार की घड़ियाँ मानो नहीं हो रही ख़तम ,
दिल फिर से उन लम्हों को चाहता है दोहराना,
वो फूलों  की महक , वो मिटटी की सोंधी खुशबु ,
वो चिड़ियों का बागों में जाकर चहकना , दिल का बहकना
यह कहकर धडकना की आयेंगे वो ........
तू हिम्मत न हार , तू करती रह प्यार से उनका इंतज़ार ,
में खड़ी हूँ वंहा जंहा आते थे वो , आकर पास बुलाते थे वो ,
में खड़ी हूँ आज इंतज़ार में , आयेंगे वो , आकर गले से लगायेंगे वो
जब आए तो बारिश रुक सी गयी , साँसे मेरी थम सी गयी ,
न दूँगी कंही अब जाने उन्हें , लगाने दो कितने बहाने उन्हें ,
 लंबे इंतज़ार के बाद आई घड़ियाँ हैं ये , न जाने फिर कब मुलाकात होगी ,
वो बोले तभी जब चाँद पूरा होगा , और ये मदमस्त बरसात होगी !
 

 
 
 


Monday, July 19, 2010

बाल कविता

ची- ची करती चिड़िया रानी,

बच्चों के संग रहती है,

खेल-कूद कर उनके संग,

दाना चुनकर लाती है,

कित्ती मेहनत करती देखो,

श्रम का पाठ पढ़ाती है,

शाम-सवेरे चिड़िया रानी,

नील गगन पर उड़ती है,

बच्चों, तुम भी ऐसे बन जाओ,

मेहनत करो, सफलता पाओ।।

सच्चा सपना

 बच्चों ! आज आपने कोई सपना देखा? जैसे कोई राजा बना हो या राजकुमार या कोई हवाई जहाज में उड़ा तो कोई चांद-सितारों पर पहुंचा। एक मजेदार सपना इन्होंने भी देखा। भीलपुरा नामक एक गांव में तीन चतुर और समझदार मित्र रहते थे। एक दिन उनमे से एक ने कहा कि क्यों न कुछ दिन के लिए देशाटन पर चलें। उसके दोनों मित्रों को सुझाव पसंद आया और एक दिन तीनों मित्र अपना सामान बांधकर देशाटन पर रवाना हो गए। रास्ते में एक हलवाई की दुकान पर विभिन्न मिठाईयां देखते ही उनके मुंह में पानी भर आया। एक मित्र दुकान पर गया और उसे पांच रूपए में चार बर्फियां मिलीं। एक-एक टुकड़ा तीनों दोस्तों ने खा लिया और बाकी बचा टुकड़ा एक दोस्त ने अपने पास रख लिया। इस एक टुकड़े पर भी तीनों मित्रों की नज़र थी। इसे हासिल करने के लिए तीनों ने अपनी बुद्धि लड़ाई। उनमें से एक कहने लगा की इस टुकड़े का निर्णय हम आराम से लेंगे और इसके लिए कोई शर्त रखेंगे। बाकी दोनों मित्र इसके लिए तैयार हो गए। रात गुजारने के लिए वे एक धर्मशाला में गए। खाना खाकर चौसर खेलने बैठ गए। अचानक एक मित्र ने कहा बर्फी का टुकड़ा तो खाना भूल ही गए? एक चतुर ने चाल चली कि तीनों मित्र सुबह उठकर अपना-अपना अनोखा सपना सुनाएंगे जिस पर हम सभी को विश्वास करना होगा। इसमें जो जीत जाएगा बर्फी का टुकड़ा भी उसी का होगा। सुबह उठकर एक ने अपना स्वप्न सुनाया कि मैं इस विशाल राज्य का राजा बन गया हूं और एक सुंदर राजकुमारी से मेरा विवाह हो गया है। मैं अपनी रानी के साथ भांति-भांति के व्यंजन खा ही रहा था कि तुमने उठा दिया। दूसरे ने सुनाया कि चांद से सोने की सीढ़ियां उतर रही हैं और मेरे देखते ही देखते एक देवदूत आकर मुझे चांद ले गया जहां सुंदर नर्तकियां नाच-गा रही थीं। मैं पूरी रात आनंद लेने के बाद चांद से सुंदर पोशाक और धन ले कर पृथ्वी पर आ गया। तीसरे ने सुनाया कि न तो मैं किसी देश का राजा बना और ना ही चांद पर गया। रात के मध्य पहर में मुझे बहुत तेज भूख लगी। तभी एक आवाज़ आई कि मुझे खा जाओ! मैंने देखा तो यह आवाज़ उस एक बर्फी के टुकड़े से आ रही थी और मैने वह टुकड़ा खा लिया। उसने कहा कि मेरा सपना बिल्कुल सच्चा है चाहो तो देख लो! दोनों मित्रों ने जाकर डिब्बा खोला तो वह खाली था। बाकी दोनों मित्र सपनों में ही रह गए और एक मित्र ने सपने को सच कर दिखाया। इसलिए बच्चों! किसी वस्तु को या किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए योजना और वाक चातुर्य की आवश्यकता होती है। इसी से आप सफलता प्राप्त करते हैं।

Monday, July 5, 2010

मकडजाल ( सत्य घटना पर आधारित कहानी )

आज अमित जैसे कितने ही छोटे शहर के नवयुक इन्टरनेट के मकडजाल में फसते जा रहे हैं ! इन्टरनेट उस मकड़ी की तरह जाल तैयार कर रहा है जिसका मकसद नित नए नवयुवक -नवयुवतियों को प्रलोभन देकर इस जाल में फ़साना है ! आज का नौजवान पीढ़ी जल्द से जल्द सब कुछ हासिल करना चाहती है ! अपनी जिन्दगी को ऐशो आराम से गुजरने के लिए वे कोई भी रास्ता अपना लेते हैं ! वे नित नए तरीके भी इजाद कर रहे हैं ! बेंको व घरों में चोरी , डकेती तो आम थी लेकिन जब कोई आपकी इ-मेल आई डी तक पहुँच आपके द्वारा प्राप्त जानकारी से ही संव्य को मालामाल व तुम्हे कंगाल कर दे तब तुम क्या करोगे ! ऐसी ही एक घटना अमित के साथ घटित हुई जो पूर्ण जानकारी न होने के कारण इन्टरनेट के मायाजाल में फस गया ! अमित एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का था ! बाहरवी के बाद उसने अपने शहर के एक कॉलेज में दाखिला ले लिया ! वह बी . सी. ए कर रहा था ! कॉलेज में उसने पहली बार कम्प्यूटर का प्रयोग किया था ! वह पढाई में होशियार था ! धीरे-धीरे उसकी रूचि कम्प्यूटर के क्षेत्र में बदने लगी ! प्रथम वर्ष के पेपर हो गए थे ! छुटियों में उसने कम्यूटर लेने की जिद्द की ! उसके पिता जी ने उसकी यह जिद्द पूरी कर साथ में इन्टरनेट कनेक्शन भी लगवा दिया ! अब वह सारा दिन उसी पर लगा रहता ! कभी इ-मेल , आई डी बनाना , चैटिंग या गूगल पर सर्च जिससे ज्ञानवर्धक जानकारी भी प्राप्त करता ! एक रात वह गेम्स सर्च कर रहा था की एक ऐसी वेबसाइट में पहुंचा जंहा कई तरह की आकर्षक लाटरियाँ थी ! वह उसे कोई खेल समझ खेलने लगा क्योंकि उसे इसकी कोई जानकारी नहीं थी ! उसने अपना रजिस्ट्रेशन कराया , नाम , ईमेल व खेलने में व्यस्त हो गया ! काफी देर खेलने के बाद व उकता गया व बंद कर सोने चला गया ! अगले दिन उसने जब अपना इ-मेल चेक किया तो उक्त कम्पनी का एक मेल था की कल रात अपने जो लाटरी खेले आप उसमें जीत गए हैं ! उसे कुछ समझ नहीं आया , उसने वह मेल आगे पढ़ा ! आपको ढेड लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम mila है ! उसने जल्दी से हिसाब लगाया भारत्या रकम के हिसाब से यह कुल सत्तर लाख रूपए थे ! उसकी ख़ुशी की सीमा नहीं रही ! उसे अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था ! उसमे एक फार्म दिया गया था जिसमे अपनी उम्र , शिक्षा, घर का पता इत्यादि लिख कर दे ! उसने उपरोक्त फार्म को जल्दी से भरकर भेज दिया ! वह बहुत खुश था लेकिन उसने इसकी जानकारी किसी को भी नहीं दी ! वह सबको चौंका देना चाहता था ! अब वह सारा दिन अपना इ-मेल चेक करता की उनका कोई जवाब आ जाये ! ऐसे ही दो दिन बाद उनका मेल आया की भेजी गयी जानकारी सही है ! इसके लिए हमे आपके प्रमाण-पात्र चाहिए ! आप हमे आपना पास-पोर्ट , आईडी प्रूफ , राशन कार्ड की कोपी इत्यादि भेज दे ! अमित के पिता ने सोच था की ग्रेजुअशन के बाद वे उसे बाहर पढने भेजंगे ! अत उसका पास पोर्ट तैयार था उसने सारे कागज स्कैन करा उन्हें मेल कर दिए ! उसी शाम को उनका जवाब आ गया की भेजी गयी जानकारी की हम जांच कर चुके हैं ! यह बिलकुल उचित है ! अब आप अपना पैसा वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रांसफर की किसी भी शाखा से ले सकते हैं ! उसके पैर धरती पर नहीं लग रहे थे की घर बैठे उसे इतना पैसा मिल रहा है ! पर साथ ही आपको कर राशी के रूप में कुल पैसे का .१० % पैसा हमार खाते में जमा करवाना होगा ! यह कुछ सात हजार रुपया था ! अब वह परेशान होने लगा इतना पैसा उसके पास नहीं था न ही व किसी को बता सकता था ! तभी उसे एक युक्ति सूझी और उसने अपना तेरह हजार का फोने अपने दोस्त को सात हजार में बेच दिया और कहा की में कुछ दिन में पैसे लौटा फोन वापिस ले लूँगा ! वह जल्दी से उनके खाते में पैसे जमा करवा कर आ गया ! उसके कथनानुसार अड़तालीस घंटे में सारा पैसा अमित के पास पहुँच जाना था लेकिन पैसा नहीं आता ! उसके सबर का बाँध टूट जाता है वह उन्हें कितने मेल करता है लेकिन कोई जवाब नहीं आता ! इस बात को एक सप्ताह बीज जाता है ! उसके पिता अमित से फोन के बारे में पूछते हैं व बहाना बना उन्हें ताल देता है की तकनिकी खराबी के कारण व ठीक होने के लिए गया है ! इतना उसका कॉलेज भी शुरू हो जाता है ! उसके पिता जी कॉलेज की फीस जमा करने के लिए उसे पैसे देते हैं ! अमित उन्ही पैसों से फोन वापिस ले आता है ! लगभग एक महीने बाद कॉलेज वालों का फीस जमा न करने के कारण घर पर लैटर आता है ! अमित के पिता को कुछ समझ नहीं आता वे अमित को बहुत डांटते हैं ! अंत में आमिर रोते हुए उन्हें सारी बता देता है ! वे समझ जाते हे की उनके बेटे को किसी ने धोखे से फसाया है ! वह उसे प्यार से समझाते हैं की अगले दिन उनके घर एक चेक आता है ! उस चेक में उतनी ही जीती राशि लिखी होती है ! अमित बड़े गर्व से अपने पिताजी को कहता है अब देखिये , और दोनों बाप बेटा बैंक जाते वंहा अधिकारी उस चेक को देख हँसते है की इस तरह का कोई बैंक नहीं है ! किसी ने आपके साथ गन्दा मजाक किया है ! अब अमित को समझ अत ही की यह कितनी बड़ी जालसाजी है जिसमे न जाने कितने लोगों को गुमराह कर उनका पैसा ऐंठा जा रहा है ! उसके पिताजी उसे कहते है की दी गयी जानकारी के आधार पर व गिरोह कोई भी गलत कार्य या जुर्म कर तुम्हे फंसा सकते है ! इतना पढ़-लिखने के बावजूद तुमने ऐसी गलती की ! वह बहुत शर्मिंदा हुआ उसका पूरा सेमस्टर खराब हो चूका था ! ऐसे ही न जाने रोज कितने अमित अपनी जिन्दगी व पैसा खराब कर रहे हैं ! इन घटनाओ की संख्या नित बदती जा रही है बस तरीके नए हैं ! सोशेल नेटवर्किंग साईट जंहा हमे एक दुसरे से जोडती है वन्ही गलत लोग इसका दुरपयोग कर ब्लेकमेलिंग करते हैं ! कभी -कभी इस तरह के मेल की अफगानिस्तान में हम फंस गए हैं या शिविर में हैं ! हमारा पैसा वंहा है या पिताजी की म्रत्यु हो गयी माता सौतेली हैं ! हमे मदद चाहिए ! किसी कम्पनी के नाम से भी कोई मेल हो जैसे हुंडई की आपने इनाम जीता है , आपको चुना गया , बेटे की दुर्घटना में आंखे चली गयी ! इन सबसे दूर रहे ! सिर्फ अपनी जान -पहचान के लोगों से ही बात करे ! इन्टरनेट के जितने फायदे हैं उतने ही नुक्सान भी ! अत सावधानी बरते ! आपकी सुरक्षा आपके हाथ में है !

Sunday, June 27, 2010

छोटी राजकुमारी


न्दन  नगर  एक खुबसूरत  राज्य था !वंहा के राजा का नाम वीरभद्र था ! राजा की तीन बेटियां छोटी राजकुमारी थी ! वह तीनों राजकुमारियों को बहुत स्नेह करता था ! राजा वीरभद्र दयालु थे अत: प्रजा को अपने बच्चों की तरह ही प्यार करते ! इसी कारण प्रजा भी उनका पूरा सम्मान करती थी ! राजा ने अपनी राजकुमारियों को पिता के साथ माँ का भी प्यार दिया था ! जब छोटी राजकुमारी का जन्म हुआ था उससे कुछ दिनों बाद ही रानी काल का ग्रास बन गयी थी ! अत : छोटी होने के कारण राजा उससे थोडा अधिक स्नेह करते ! उसमें कुछ अस्वभाविक शक्तियां भी थी ! जो उसे प्रक्रति ने उपहार स्वरूप दी थी ! वह बहुत सुंदर थी ऐसा लगता की रूप की देवी ने फुर्सत से तराशा है , जब वह हंसती तो फूल खिलने लगते ! वह पशु-पक्षियों की भाषा भी समझ लेती थी ! इसी कारण बड़ी दोनों राजकुमारियां उससे जलन महसूस  करती थी ! वह मन ही मन उसे नीचा दिखाने का कारण तलाशती रहती ! लेकिन उसे किसी से कोई शिकायत नहीं थी ! वह हमेशा खुश रहती , उसे प्रक्रति से बहुत प्रेम था ! एक दिन छोटी राजकुमारी अपने कमरे में सो रही थी ! दोनों राजकुमारियां आई और उस पर अभिमंत्रित राख गिरा कर चली गयी !  छोटी रानी इस बात से अनजान अपने शयन -कक्ष में उसी प्रकार सोती रही ! सुबह हो गयी सब अपने कार्य  में लग गए ! राजा जब दरबार से लौटे तो उन्होंने ने सेवक से कहा  की तीनों राजकुमारियों को बुला लाये ! थोड़ी देर बाद बड़ी व मंझली राजा के पास पहुँच गयी ! राजा छोटी के बारे में पूछने  लगे ! तभी बड़ी रानी ने कहा की वह अब तक सो रही है ! रात  को हमने उसे किसी से बातें करते भी सुना था ! राजा ने हँसते हुए कहा की हाँ होगा कोई उसका परिंदा , व उसके कमरे की और बदने लगे ! जब वे वंहा पहुंचे तो देखा की राजकुमारी का आकर बहुत  छोटा हो गया था ! वे बहुत हैरान हुए और राजकुमारी से पूछने  लगे की ये सब क्या हुआ ! उसने जब घबराकर खुद को आइने में देखा तो डर कर रोने लगी ! उसी समय बड़ी राजकुमारी कहने लगी की बंद करो यह रोना -धोना यह सब छलावा है , इसकी असलियत तो जादू -टोना करना है , यह पक्षियों से बातें सब नाटक है ! उन्ही का उल्टा असर है यह की छोटी अब वास्तविक में बौने जितनी छोटी हो गयी है ! वे दोनों बहने हंसने लगी ! राजा की कुछ समझ में नहीं आ रहा था ! उसने अपने ज्योतिष , आचार्यों को बुलावा भेजा ताकि स्थिति  का कुछ पता चल सके ! दोनों राजकुमारियां अपनी सफलता से बहुत प्रसन्न थी ! राजा द्वारा बुलाये गए सभी विद्वानों ने कहा , की राजकुमारी  को राज्य से बाहर भेज देना चाहिए  ! इनका यंहा रहने प्रजा के लिए घातक है ! आखिरकार सबके प्रभाव में आकर राजा ने राजकुमारी को दूर एक जंगल में भेज दिया ! छोटी राजकुमारी इससे अपना किस्मत का लिखा समझ संतोष से वंहा रहने लगी ! वह  नन्ही परियों की तरह पक्षियों के साथ खेलती  , बातें करती १ वे सब भी उससे अत्यधिक स्नेह करते , उसे मीठे खुबसूरत फल-फुल  ला कर देते ! एक दिन छोटी राजकुमारी  चिड़ियों के झुण्ड  के पास बैठी बातें कर रही थी की उसे घोड़ों के टापों की आवाज सुनाई दी ! वह इधर उधर देखने लगी ! उसके चेहरे पर प्रसन्नता की एक लहर उत्पन्न हुई की शायद उसके पिताजी उसे वापिस लेने आये हैं ! लेकिन तभी एक सजीला जवान घोड़े से उतरा वह देखने में राजकुमारी के आकर का था ! वह राजकुमारी को देख उसकी सुन्दरता पर मंत्र्मुघ्द हो गया ! उसने छोटी राजकुमारी से पीने का पानी माँगा ! वह स्तब्ध खड़ा उसे निहारता रहा ! जब वह पानी लेकर आई तो वह कहने लगा , में पाताल लोक निवासी , हीरानगर का राजकुमार विक्रम हूँ ! में तुम्हसे विवाह करने का इच्छुक हूँ ! राजकुमारी ने भी थोडा संकुचाते हुए हाँ कर दी ! सभी पशु- पक्षियों को जल्दी मिलने का वायदा  कर वह चली गयी ! वंहा राजा व रानी इतनी प्यारी बहू पाकर बहुत प्रसन्न हुए ! वंहा धूम -धाम से उनका विवाह कर दिया गया ! राजकुमार को हीरा नगर का राजा व राजकुमारी रानी बन गयी ! वन्ही दूसरी और राजकुमारी के जाने के बाद राजा बहुत उदास रहने लगा ! प्रक्रति भी मानो रुष्ट हो गयी थी ! एक दिन रानी उदास हो रोने लगी , पत्ते झड़ने लग गए ! राजा विक्रम जब कमरे में आये तो रानी की हालत देख परेशां हो पूछने लगे की क्या हुआ है ! रानी कहने लगी मुझे यंहा किसी तरह की कोई परेशानी नहीं बस पिताजी की बहुत याद आ रही ही ! राजा ने कहा मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं पूछा  लेकिन आज बताओ ! रानी ने अपनी सारी आप बीती कह सुनाई ! राजा को अत्यंत दुःख हुआ वह सोचने लगा की किस प्रकार रानी को उसके पिताजी से मिलवाया जाये ! अभी इस बात को कुछ ही दिन बीते होंगे  की चन्दन वन की हालात ख़राब होने की सोचना आई ! गुप्तचरों  से पता चला की पडोसी राजा युद्ध की तयारी कर रहा है ! राजा वीरभद्र को और चिंता सताने लगी, मंत्रीगण कहें लगे की सिपाहियों की संख्या भी कम है !
 राजा ने कहा की अब क्या किया जाये , वजीर कहने लगा इस लडाई में हमें सिर्फ बौने ही जीता सकते हैं ! वे युद्ध में तेज हैं न ही किसी के हाथ आते ! क्यों न हीरानगर के राजा के आगे सहायता की गुहार लगाई जाये ! राजा को भी सुझाव पसंद आया और उन्होंने दूत को राजा के पास भेज दिया ! जब दूत ने यह बात राजा विकर्म को बताई तो उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी ! उन्हें यकीन नहीं था की उनकी खवाइश इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी ! युद्ध हुआ बौनों ने राजा वीरभद्र को जीतवा दिया ! इसी ख़ुशी में राजा का आभार प्रकट करने  के लिए राजा वीरभद्र ने राजा विकर्म को सपरिवार  खाने पर आमंत्रित किया ! उन्होंने रानी को कुछ नहीं बताया व घुमने का बहाना कर , और आँखों पर पट्टी बांध उसे महल में ले आये ! जब आँखों की पट्टी हटाई गयी तो रानी की ख़ुशी का पारावार न रहा ! अपने पिताजी को सामने खड़ा देख उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली ! राजा ने बेटी को गले से लगा लिया ! उसके बाद राजा विकर्म ने सारी कहानी कह सुने! इतने समय में वे दोनों राजकुमारियां भी बदल चुकी थी ! उन्होंने अपनी छोटी बहिन से माफ़ी मांगी , और कहा हम तुम्हे तुम्हारा पुराना रूप , आकर लौटा देंगे ! छोटी रानी ने तुरंत मन कर दिया ! वो कहने लगी की वे लोग आकर में छोटे हैं , पर दिल से बहुत बड़े व साफ़ है ! मुझे यंहा सिर्फ पिताजी से मिलना था ! राजा ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन वह नहीं मणि ! रानी कहने लगी अब वही मेरा घर हैं में आपसे मिलने आती रहूंगी ! राजा ने रानी को धूम-धाम से अनेकोनेक उपहार दे विदा किया व सब सुख से रहने लगे !

Saturday, June 26, 2010

माँ की लोरी (बिटिया के लिए)

प्यारी बिटिया रानी ,

जिस दिन से तू आई ,

अपनी माँ के जीवन में एक नया उजाला लायी ,

ना चाहता था कोई ,

की तू इस दुनिया में आये ,

लेकिन चाहती थी में ,

आ इस परिवार का वंश बढाये,

मेरे सारे सपनो को ,

साकार तुझे अब करना है ,

हिम्मत और शक्ति से , नित तुझे आगे बदना है

बेटी नहीं है बोझ , बदलेगी यह सोच ,

अब मुझको विश्वास है , नाम करे

परिवार का रोशन , यह एक माँ की आस है !!

Monday, June 21, 2010

सकरात्मक सोच

एक अस्पताल में बड़ा सा वार्ड था ! जंहा कई मरीज दाखिल थे ! उनमें एक मरीज का स्थान खिड़की के पास था ! हर रोज कई बार डॉक्टर व नर्से मरीजों की परिचर्या करते ! उनमें एक मरीज हर वक़्त उदास रहता ! वह जिन्दगी से लगभग हार मान चूका था ! वह सदा डॉक्टर से मायूसी भरी बातें करता ! खिड़की के पास बैठा मरीज भी उसकी बातें सुनता व समझाने का भरसक प्रयत्न करता ! डॉक्टर जब भी उसे देखने आते उसे समझाते की तुम्हारा रोग इतना गंभीर नहीं है ! हिम्मत से काम लो अगर तुम ही जीने की आशा छोड़ दोगे तो दवाइयां क्या कर लेंगी ! लेकिन उसकी समझ में कुछ न आता ! खिड़की वाला मरीज भी उससे बातें करता ! उनके बेड़ एक -दुसरे से बहुत दूर थे ! दूसरा मरीज अक्सर खिड़की वाले मरीज को पूछता की दूसरी और क्या है ! वह मरीज कहता यंहा से प्रक्रति की मनमोहक छटा दिखती है ! बाहर एक बहुत बड़ा पार्क है जंहा बच्चे खेल रहे हैं ! दूसरा मरीज भी यह सब बातें सुन ईर्ष्या महसूस करता की काश में यह सब देख पता ! दूसरा मरीज अक्सर कोई न कोई रोना रोता रहता की की परिवार वाले ज्यादा सम्मान नहीं देते ! पैसे की कमी है ! वंही दूसरी और खिड़की वाला मरीज कहता की पास ही बहती एक नदी में बतखे तैर रही हैं ! गुब्बारे वाले रंग- बिरंगे गुब्बारे बेच रहे हैं ! बच्चे झूले- झूल रहे हैं ! अब धीरे- धीरे दूसरा मरीज भी सकरात्मक सोचने लगा ! खिड़की वाला मरीज उसे समझाता जिन्दगी बहुत खुबसूरत है बस हम ही उसके रंग तलाश नहीं पते ! उत्तार -चदाव तो जीवन में आते ही रहते है ! इसका मतलब यह नहीं की हम जीवन से हार जाये ! अब यह बातें उस पर असर करती थी ! वह भी एक खुशहाल जिन्दगी व परिवार जोड़ने का सवप्न सजाने लगा ! एक दिन जब वह सुबह उठा तो देखा वह बिस्तर खाली था ! वार्ड बाय ने आकर उसे खिड़की वाली सीट पर जाने को कहा ! वह अंतर्मन बहुत प्रसन्न हुआ की वह दुनिया के रंगों को देखेगा ! उसके सवप्न चूर हो गए जब उसने देखा वंहा खिड़की के साथ एक दिवार थी ! जब डॉक्टर आये और उसे कहा की अब उसकी सेहत पहले से बहुत बेहतर है ! उसने अपने मित्र और खिड़की के पुराने मरीज के बारे में पूछा डॉक्टर ने बताना शुरू किया तो उसके होश उड़ गए ! वह कैंसर का मरीज था ! उसका दुनिया में कोई नहीं था और न आज तक कोई उसे देखने आया ! लेकिन वह एक जिंदादिल इंसान था ! रात को हार्ट अटेक के कारण उसकी म्रत्यु हो गयी ! वह बहुत उदास हुआ और बताने लगा की वह तो खिड़की से मुझे सारी दुनिया का हाल सुनाता था ! डॉक्टर ने कहा यह कैसे हो सकता है वह तो अँधा था ! उस पर तो जैसे वज्रपात हुआ था , डॉक्टर कहने लगा यह सब उन्होंने आपको जिन्दगी से जोड़ने व हिम्मत से आगे बदने के लिए कहा होगा ! अत कभी हम सफलता न मिलने के , कारण भी नहीं तलाशते और किस्मत , भाग्य को कोसने लगते हैं ! सदा सकरात्मक नजरिया रखे जिससे आप संव्य तो प्रसन्न रहेंगे ही दूसरों को भी नयी राह दिखा सकेंगे

Friday, June 18, 2010

कंहा गयी वो मासूमियत

आज एक बच्ची को टेडी बिअर की जिद करता देख मुझे अपना बचपन याद आने लगा ! वह वैसे ही जिद कर रही थी जैसे की कभी मैने मुनिया की शादी के बाद उसके दुल्हे को देख कर की थी ! माँ मुझे भी चाहिए ऐसा दूल्हा जैसा मुनिया को मिला है जो हर दम उसके साथ रहेगा ! मुनिया गयी अब मेरे साथ कौन खेलेगा ! माँ हँसती हुई चली गयी लेकिन मेरे लिए ये गहन चिंता का विषय था ! जब मैंने माँ का पल्लू नहीं छोड़ा तब न जाने कंहा से एक नील से लथपथ टूटा -फूटा एक गुड्डा ले आई की ये रहा तेरा साथी कहकर चली गयी ! लेकिन मुझे तो मानो दुनिया मिल गयी थी! माँ मुझे घर भी नहीं छोडना पड़ेगा वाह.. वाह मजा आ गया ! लेकिन माँ के पास कंहा समय था यह सब देखने का उन्हें ईटों के भट्टे पर जाने के लिए देर जो हो रही थी ! इतने भाई -बहनों में कंहा याद रहता की किस बच्चे ने क्या कहा पर में तो लाडली थी न सबकी दुलारी छुटकी! आज के बच्चे तो हसेंगे ये नाम सुनकर सो ( बेक्वोर्ड )!लेकिन हम तो अपनी ही मस्ती में गुम थे ! बहुत खुश की दुनिया हमारे क़दमों में जैसे, सच्ची दोस्ती प्यार ,लड़ना , मरना ! उपहार के रूप में अगर किसी साथी ने कोई टॉफी , या चाकलेट दे दिया तब हम खुद को किसी शेहनशाह से कम ना समझते ! एक छोटे से कमरे में माँ को चिपकने के लिए सभी भाई- बहनों में एक होड़ सी लगी रहती थी ! मुझे अलग कमरा चाहिए मम्मी में शेरिंग नहीं कर सकती ! ऐसे जुमले आम सुनने को मिलते हैं ! समय का आभाव तो उस वक़्त भी था और आज भी है लेकिन कंही ना कंही रिश्तों की गर्माहट में कमी आ गयी है ! माँ की ममता में कभी कमी ना आ सकती लेकिन आज वे उसे अपने बच्चों पर निछावर नहीं कर पति ! उनकी जीवन -शेल्ली व दैनिक समय सारणी का पालन करते -करते उनकी सूचि के अंत में बच्चों का नाम आता है ! एक दिन घर पर अकेली थी इसलिए सोचा की पार्क में जाकर थोड़ी सैर कर लू ! वही बच्ची पार्क में मिली ! खुद को रोक नहीं पायी और उसके पास चली गयी ! उसको खेलता देख , आँखें उसे अपलक निहारती रही ! आपका नाम क्या है बेटा! वह कुछ पल ठहरकर सोचती हुई बोली ;;आ आंटी स्नेहा ! जितना सुंदर नाम उतनी ही सुंदर स्नेहा गोल- मटोल प्यारी सी गुडिया ! कुछ देर बाद बातें करते -करते मुझे स्नेहा का वो टेडी याद आया और में पूछ बैठी की आपके उस टेडी का क्या हुआ! उसने बहुत हैरानी से मेरी और देखा , और कहा कौन सा टेडी आंटी? मैंने कहा वही जिसको लेने की आप बहुत जिद्द कर रहे थे ! उसने कहा वो तो फेंक दिया गन्दा हो गया था ! में हैरानी से उसे देखती रही उसके चेहरे के शुन्य भाव देखकर मन फिर भूतकाल में चला गया ! मेरा नीला गुडा तो सारा दिन मेरे साथ रहता! मेरे साथ स्कूल जाता , खेलता , खाना खाता! मेरा पक्का दोस्त जिससे में हर बात करती ! आप भी हसेंगे की एक गुड्डा लेकिन मेरा साथी ! एक बार रेखा से लडाई होने पर उसने मेरे नीले गुड्डे को छुपा दिया कितना रोई थी में खाना भी नहीं खाया था ! अंत में माँ ने रेखा को बहुत मारा और मुझे मेरा गुड्डा दिलाया ! कितना अनमोल था न वो मेरे लिए ! गल्ली में लुकन- मिच्ची , भागम -भाग ! आज की तरह न मंहगे खिलोने न विडियो - गेम , न कम्प्यूटर . ना इन्टरनेट ! कितना निश्चल प्रेम , एक दुसरे की मदद करना ! आज बच्चों के साथ माँ - बाप भी आगे बदने की रेस में लगे है ! असली प्रत्तिभा को कोई पहचान नहीं ! रोज न जाने कितनी आत्म -हत्याएं , कितनी मौतें सिर्फ अपने लक्ष्य तक न पहुँचने के कारण हो जाती हैं ! अगर शर्मा जी के बच्चे ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो हमारा चिंटू क्यों पीछे रह गया ! वे यह शायद भूल जाते हैं की हर इंसान भिन्न है शायद शर्मा जी का बेटा उतनी अच्छी चित्रकारी नहीं कर सकता जितनी चिंटू करता है ! पर यह बात पुराने ख्यालों की है ! इसे कोई नहीं समझना चाहता ! छोटे - छोटे बच्चे जिनके हाथ में कलम होनी चाहिए बन्दूक आ जाती है ! सरे आम विद्या घर में गोलियां चलती है ! कहते है बच्चों में भगवान् रहते हैं , क्यों लुप्त होती जा रही है वह मासूमियत ! इसके जिम्मेदार जाने -अनजाने हम खुद हैं ! कंही तन -उघाडू कपड़ों में वे अश्लील नाच तो कंही कॉमेडी करते नजर आते हैं ! वे न तो उन द्विर्थी गीतों का मतलब जानते हैं ! वे छोटे बच्चे उस प्रतिस्पर्धा में आगे बाद रहे हैं ! कभी न्यायाधीशों की कडवी बातें सुन कोई कौम्मा में जाता हे तो कभी वे जिन्दगी से ही हार जाते हैं ! हमारी परवरिश और निरंतर आगे बढ़ने की भूख जो बदती जा रही है ! काश हम उन्हें जिन्दगी जीने के सही राह दिखाए , हमेशा जीतने के नहीं ! मुश्किलों से लड़ना उन्हें सिखाएं ! ताकि हारने पर मौत को गले लगाने की बजाय वे हिम्मत से नाकामयाबी का कारण तलाशें ! ताकि अगली बार दुगनी मेहनत करे की सफलता उनसे दूर ही न जा पाए !इसमें हमारे और उनके माँ- बाप का भी उतना ही महत्वपूर्ण योगदान है ! ताकि हम उनकी निस्वार्थ मुस्कुराहट उनके चेहरे पर वापिस लौटा सके ! जो आज इस आप - धापी में कंही खो गयी ! यह शायद हमारा कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है ! मेरा नीला - गुड्डा तो मेरे जीवन साथी के रूप में बदल गया ! लेकिन आज भी कभी जब किसी खिल्लोने को देखू तब वो बहुत याद आता है !










Tuesday, June 8, 2010

कंहा लगाये गुहार


इस इन्साफ से तो , वह इंतज़ार अच्छा था ,
एक उम्मीद की ,  शमा तो जलती थी ! 
काश ! थोड़ी सी गैस और नसीब हो जाती तो न यह जीवन रहता न लाचारी ! यह कहना है उस महिला का जिसने पच्चीस वर्ष पहले अपनी आँखों की रौशनी को खोया था ! इस देश में इंसान की जान के अतिरिक्त हर चीज की कीमत है ! उन चंद मुआवजों के टुकड़ों से अगर  किसी की तीसरी पीडी भी अपंग होने से बचती या परिवारों के बुझे चिराग जल उठते , तो शायद उन बूढी आँखों में ख़ुशी की नमी होती ! कितनी ही जिंदगियां पल- भर में म्रत्यु के आगोश में चली गयी !हमारा प्रशासन आराम की चादर  ओड  सोता रहा ! बच्चों को कैंसर , विकलांगता विरासत में मिली , अगर नहीं मिला , तो वह था न्याय ! यह पहला  मानव नरसंहार नहीं था , कभी गोधरा कांड , तो ८४ के दंगे , बाबरी मस्जिद , या उड़ीसा का धर्म के नाम पर झगडा उनमें एक नाम भोपाल त्रासदी का भी जुड़ गया !  जो अब तक यह उम्मीद में जी रहा था की उसे न्याय मिलेगा ! अब इस पर भी कोई टेलीफिल्म , फिल्म  बनकर ऑस्कर के लिए जाएगी ! वंहा रह जाएगी तो बस आंहे , कब हमारा प्रशासन नींद से जागेगा ! कब रक्षक के नाम पर बैठे राजनितिक भक्षकों पर कोई शिकंजा कसेगा ! अब समय आ गया है की कानून आँखों पर बंधी इस पट्टी को उतार दे ! कब तक न्याय और कानून व्यवस्थता   का परिहास बनता रहेगा ! वक़्त आ गया है , बदलाव का नयी सोच का ! इन पंक्तियों के माध्यम से कुछ कहना चाहूंगी !
उन आंसुओं  को देख , मन सोचता है ,
आकर कोई अमन भरा संसार बसा दे ,
अगर असंभव सा लगता है यह कार्य ,
आकर गुनेह्गारों को सजा दिलवादे ,
कानून प्रणाली  ऐसी हो जाये , की फिर  कोई एडरसन   भारत में न आ पाए !

Friday, June 4, 2010

धरती का दुःख

सहाए , दुखी , क्षीण हूँ ,
किसे सुनाऊँ अपनी व्यथा ,
कोई ना पीड़ा समझे मेरी , ना स्थिति जान पाए ,
आज यह मानव मुझे नोच- नोच कर खाए ,
कल -कल करती नदियाँ सूखी ,
वृक्षों को काट घरोंदे सजाये ,
बन गया है बोझ आज मेरी ही छाती पर ,
आज इस बोझ तले दबती जा रही हूँ ,
माँ , जननी इस खूबसूरती का नाम हूँ , लेकिन आज लुप्त होती जा रही हूँ,
करोगे खिलवाड़ प्रकोप तो दिखाउंगी , इंसान है शेतान ना बन ,
में तो मितुंगी   , साथ में तुझे भी नष्ट कर जांउगी!!

Saturday, May 1, 2010

लेबर डे

 अम्मा  जल्दी करो ना समारोह शुरू होने वाला है ! तुम्हे याद नहीं का  मालिक बोले थे सब वक़्त पर आ जाना क्योंकि  नेता जी आयेंगे ! अच्छा लगेगा का की हम सब से अंत में पहुंचे ! नेता जी कितना कुछ कहेंगे खाना भी समाप्त हो जायेगा ! हमें पूरा विश्वास है की अब हमारा रोजगार भत्ता भी बढेगा ! तुम देखना , मुन्ना के चेहरे पर जो  विश्वास था माँ वही देख डर रही  थी  की कंही  ये सपने  बिखर ना जाए !  तभी मुन्ना की अम्मा  दुखी स्वर में बोली , हाँ तुम चलो हम तुम्हारे बापू को दवाई देकर आते हैं ! अम्मा एक व्यंगात्मिक हंसी हँसते हुए कहने लगी कितना खुश है , पर यह का जाने की सच्चाई  क्या है ! अम्मा और मुन्ना  भी कारखाने के मैदान में पहुँच गये जंहा बस्ती के बाकि लोग भी मौजूद थे ! वही हुआ जो सब जानते थे इंतजार के बाद या कहे नियत समय से तीन घंटे बाद नेता जी पधारे , वही लेबर डे के उपलक्ष में भाषण दिया गया ! सब ने तालियाँ बजाई , नेता जी के वायदों ने मुन्ना जेसे कई बच्चों का दिल जीत लिया , सबको खाना खिलाया गया !  सभी बस्ती वाले चेहरे पर शुन्य भाव लिए जब घर की और आ रहे थे , लेकिन मुन्ना के मन में उत्साह था , उमंग की एक नयी लहर ! घर पहुँच कर उसने , बाबा को सारी बात बताई ! अगले दिन काम करने के बाद जब मजदूरी  लेने का वक़्त आया तो उसके होश उड़  गए , एक सो पचास रूपए में पचास रूपए कम थे ! उसने जब मुनीम से इसका कारण पूछा , तो वह खा जाने वाले स्वर में बोला चुप रह अंडे  से बाहर अभी निकला  नहीं , चला है सवाल जवाब करने कल जो मुफ्त का खाया था उसका पैसा तेरा बाप देगा ! मुन्ना कभी अपनी माँ का चेहरा , कभी नेता जी की बातें तो  कभी लेबर डे का लगा बोर्ड देख रहा था !

Friday, March 26, 2010

आशाओं के संग

निरंतर चल रहा है ये कारवां, गतिमान, उत्साहित आँखों में अरमान लिए,
जिन्दगी में कुछ हासिल करने,  स्वप्न सलोनों को पूरा करने,
अपनी ही उमंगों में चलता,  मुश्किलों को चुनौती समझ उनसे जूझता,
जैसे आगे बढ़ने की होड़ में नदियों या लहरों का टकराना, उनका छिन्न-भिन्न होना,
लेकिन फिर उसी उत्साह से आगे बढ़ना, पतझड़ में फूलों का एक-एक गिरता पत्ता,
लेकिन बसंत में खिलने वाली नई कोपलों की आस लिए,
यही जीवन के हैं रंग, आशा और निराशा संग -संग ,
अंत मुश्किलों का कर सामना, सपनों को न मरने दें,
भरता जा उनमें नित नए रंग, खुशियों व नई आशाओं के संग,
आशाओं के संग ...........

माँ

बदलाव आवश्क है , इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं लेकिन कभी -कभी जाने अनजाने में , आगे निकलने की होड़ में , या बदलते  परिवेश के साथ अनायास ही ये शब्द मुख से निकल आते हैं , यह कुछ पंक्तिया उस महान शक्सियत के लिए जो कभी कुछ नहीं मांगती! जिसके मुख से हमारे लिए हमेशा दुआएं निकलती है ! एक बच्चा माँ की गोद  में आकर अपने सब दुःख भूल जाता है , हमारे जीवन में हमारी पहली गुरु , उसका कुरूप बालक भी उसे इस दुनिया में सबसे खूबसूरत  लगता है ! कहते हैं ना  जब परमात्मा ने इस दुनिया को बनाया  तो वे हर वक़्त हम सब के पास नहीं रह सकते थे तो एक ममता की ठंडी छांव लिए , मुख पर मधुर मुस्कान लिए, त्याग की मूर्त इस कायनात पर आई ! माँ जिसके इस शब्द में पूरी दुनिया समां जाती है ! माँ ये तुम्हारे लिए
समय बदल गया, कल जब छोटे थे कोई हमारी बात नहीं समझ पाता था ,
एक ' हस्ती ' थी जो हमारे रोने और टूटे - फूटे अल्फाजों को भी समझ जाया करती थी !
खाना बनाते वक़्त भी रस्सी हाथ में ले , झूला झुलाया करती थी,
हमारे साथ हर पल बड़ी हुई , हर मुश्किल में साथ खड़ी  हुई
आज आसानी से कह देते हैं , आप नहीं समझेंगी , रहने दीजिये ,
आज भी जब नाम तेरी बेटी का छपता है , ऐह माँ मुझे असर तेरी दुआओं का लगता है ,
आज भी अचानक उठ जाती है सोते -सोते  , जब कह दिया था माँ मुझे डर लगता है !!उस वात्सल्य मई को हमारा कोटि - कोटि अभिनन्दन ! आप सभी को माँ के लिए मनाये जाने वाले इस दिवस की  की बहुत बहुत शुभ कामनाएं ! महंगे तोहफों के साथ साथ क्यों न आज एक प्रण लिया जाये की इस माँ का आदर कर उचित सम्मान करेंगे ! इस माँ को जीवन के किसी भी क्षण  किसी का मोहताज नहीं करेंगे 

Wednesday, March 17, 2010

वो रोज मरती रही


र कर सवाल खुद से
वो रोज मरती रही,
अपने दर्द को
शब्दों के बर्तन भरती रही,

कुछ लोग आए
कहकर कलाकारी चले गए
और वो बूंद बूंद बन
बर्तन के इस पार झरती रही।

खुशियाँ खड़ी थी दो कदम दूर,
लेकिन दर्द के पर्दे ने आँखें खुलने न दी
वो मंजिल के पास पहुंच हौंसला हरती रही।

उसने दर्द को साथी बना लिया,
सुखों को देख, कर दिए दरवाजे बंद
फिर सिकवे दीवारों से करती रही।

रोज चढ़ता सूर्य उसके आंगन,
लेकिन अंधेरे से कर बैठी दोस्ती
वो पगली रोशनी से डरती रही।

इक दिन गली उसकी,
आया खुशियों का बनजारा,
बजाए इक तारा,
गाए प्यारा प्यारा,
बाहर जो ढूँढे तू पगली,
वो भीतर तेरे,
कृष्ण तेरा भीतर मीरा,
बैठा लगाए डेरे,

सुन गीत फकीर बनजारे का,
ऐसी लगन लगी,
रहने खुद में वो मगन लगी
देखते देखते दिन बदले,
रात भी सुबह हो चली,
हर पल खुशनुमा हो गया,
दर्द कहीं खुशियों की भीड़ में खो गया।

कई दिनों बाद फिर लौटा बनजारा,
लिए हाथ में इक तारा,
सुन धुन तारे की,
मस्त हुई,
उसके बाद न खुशी की सुबह
कभी अस्त हुई।

Sunday, March 14, 2010

प्रायश्चित

अक्षित अपने माता-पिता का एकलौता बेटा था ! उसके पिता शहर के डिप्टी कमिश्नर थे ! एक आलिशान बंगला , गाड़ियाँ सब सुख- सुविधाएँ उनके पास थी ! लेकिन अक्षित के पिता बहुत ही सुलझे हुए व समझदार थे!उन्होंने कभी भी अक्षित की फिजूल जरूरतों को पूरा नहीं किया था ! वे उसे बहुत प्यार करते थे परन्तु वे नहीं चाहते थे की ज्यादा लाड -प्यार और अधिक जेब-खर्ची के कारण व बिगड़ जाये ! वे हमेशा उसे लगन से पढाई करने के लिए कहते ! लेकिन अक्षित का मन बिलकुल भी पढाई में नहीं लगता था ! वह हमेशा दिए गए गृह-कार्य से जी चुराता ! कई बार कार्य न होने के कारण उसे अध्यापकों की डांट खानी पड़ती लेकिन सभी उसके पिताजी का लिहाज कर चुप हो जाते ! अक्षित को बाजार की गन्दी चीजें खाने का बहुत शोंक था ! अपनी इस गन्दी आदत के कारण व कई बार बीमार हो चूका था ! इसलिए उसके माता-पिता उसे बहुत समझाते व फालतू पैसे भी नहीं देते थे ! घर में नौकर -चाकर होने के बावजूद व घर से स्कूल बस में जाता ! क्योंकि उसके पिताजी उससे कड़ी- मेहनत करवा लायक बनाना चाहते थे ! एक दिन वह घर से स्कूल बस में जा रहा था ! उसके पिताजी ने उसे किराए के लिए पांच रूपए दिए थे ! उस दिन बस में बहुत अधिक भीड़ थी ! वह काफी देर तक पैसे हाथ में लेकर कंडेक्टर का इंतज़ार करता रहा ! कुछ देर बाद कंडेक्टर सबकी टिकते काट अपनी सीट पर जाकर बैठ जाता है ! अक्षित जब यह देखता है तो उसके मन में यही ख्याल आता है की वह जाकर टिकट ले आये ! लेकिन तभी उसका लालची मन उसे कई तरह के पर्लोभ्नो में फ़सा देता है ! वह चुप- चाप वंही बैठ जाता है और सोचता है की इसमें मेरी क्या गलती ! वह कंडेक्टर भैया खुद ही मेरे पास नहीं आया ! इतने में बस रूकती है भीड़ के साथ वह भी जल्दी से उतर जाता है ! स्कूल पहुँच उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता ! वह अपने दोस्तों को भी अपनी समझदारी का किस्सा बड़े गौरवपूर्ण तरीके से सुनाता है ! वे उसे समझाने की बजाय और अधिक उकसाते हैं की अरे तुम प्रतिदिनं ऐसा कर कितने पैसे बच्चा सकते हो ! उस दिन वह अपने दोस्तों के साथ बड़े मजे से पकोड़े खता है ! अब तो उसे इसमें आनंद आने लगता है ! प्रतिदिन कभी चाट , कभी गोल-गप्पे, ऐसा करते - करते पांच दिन निकल आते है ! अब वह इतना अधिक आदि हो जाता है की उसे खुद पर शर्मिंदगी महसोस होती है की यह काम उसने पहले क्यों नहीं किया ! सुबह वह रोज की तरह तैयार हो जब बस में चदता है तो पहले की तरह ही टिकेट नहीं लेता ! वेसे ही बस रूकती है जेसे ही वह अपने स्टॉप पर उतरने लगता है बस में चेकर आ जाते हैं ! सबकी टिकटे देख जब वह अक्षित से टिकेट दिखने को कहते हें तब वह सर हिला मना कर देता है ! वे बस को रुकवा उसका नाम व पिताजी का नाम पूछते है जब उन्हें पता चलता है की वह डिप्टी कमिश्नर राजेश प्रसाद का बेटा है तब वह उसे प्यार से समझाते है की अगर हम तुमे अब पुलिस के हवाले करदे तो तुम्हारे पिताजी की इज्जत मिटटी में मिल जाएगी ! उनकी कितनी बदनामी होगी ! वह डर कर रोने लग जाता है की में आगे से कभी ऐसा कोई काम नहीं करूँगा ! में वायदा करता हूँ की कभी बिना टिकट लिए बस में सफ़र नहीं करूंगा ! उन अफसरों को अक्षित पर तरस आ जाता है वे कहते हैं की अगर तुम वायदा करते हो और तुमें अपने किये पर प्रायश्चित हें तो हमने तुमे माफ़ किया ! अत : हमें इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की कभी भी लालच में आकर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसके परिणाम नुकसानदायी हो !

Tuesday, March 9, 2010

गुलिस्तान हमारा

मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना , हिंदी हैं हम वतन है ये हिन्दुस्तान हमारा, अनायास ही शब्द मेरे मुख से निकले जब में माई नेम इस खान देख रही थी ! यह बात शायद बहुत पुरानी हो गयी है परन्तु देखने व लिखने का मौका अभी मिला ! मीडिया हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है यह हम सब भली- भांति जानते है ! मिटटी को सोना बना सकता है और आकाश के तारे को शायद एक आम इन्सान ! इस फिल्म के बारे में हर व्यक्ति की अपनी राय रही होगी लेकिन में यही कहना चाहूंगी की हमारी परवर्ती दुसरे को गलत सबित और गलतियाँ निकलने की बन चुकी है ! कभी हम राजनीती तो कभी पुरे सिस्टम को दोष देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं की ये लोग भी हमारे जैसे हैं ! क्यों न अब शुरुआत खुद से की जाये ! इस फिल्म को खासतौर से मीडिया से जुड़े लोगों को जरुर देखना चाहिए ! हम किसी भी गलत बात को बहुत जल्दी सीखते हैं! क्यों न इस बार प्रयास कुछ अच्छे से किया जाये ! लेखक ने सही कहा है की सिर्फ दो तरह के लोग हैं अच्छे और बुरे ! मजहब चाहे कोई भी हो सभी गुरुओं , पीर, पेंग्म्ब्रों ने सच्चाई व नेकी के राह पर चलने का सबक दिया है ! लेकिन आज धर्म के नाम पर इतने झगडे , दंगे -फसाद हो रहे है ! जिनका घर बर्बाद हो गया कोई उनसे पूछे , जिस घर का जवान लड़का कौमी लडाई में चला गया उस माँ के दिल का हाल बयाँ कोई नहीं कर सकता ! जब कुछ करने का जज्बा व् नीयत भली हो अगर लक्ष्य सिर्फ दूसरों की भलाई तो शायद कभी कोई यह न देखे की सामने वाला पीड़ित किस कौम का है ! हमारा देश तो एक फूलों का रंग- बिरंगा गुलदस्ता है , जंहा तरह- तरह के सुगन्धित फुल अपनी खुशबू , व सुन्दरता को बनाये हुए हैं ! जब भी देश पर विपति आई है पूरा भारत सर्वदा एक जुट हो सामने आया है लेकिन जब भाषा , धर्म और कभी मंदिर तो कभी मस्जिद के नाम पर खून - खराबा होता है तो मानवता भी शर्मसार हो जाती है ! मीडिया को भी चाहिए कभी टी. आर . पी. की दौड़ से बाहर आकर अपना फ़र्ज़ पहचाने ! जब दो भिन्न धर्मों के लोग एक साथ दिवाली मानते है वो कवर करना शायद मुश्किल हो लेकिन एक जलती बस का सीन सारा दिन टी. वी पर चलता है ! जिससे देश के बाकि हिस्सों में बैठे लोग कभी संपर्क ना हो पाने के कारण चिंता में जान दे देते है ! यह जानकारी के लिए है , सूचना के लिए है ताकि मीलों दूर बैठे होने पर भी हम इनसे जुड़े रहें ! वंही विपत्ति आने पर यही चैनल वाले सहायता भी करते हैं ! कई मुद्दे ऐसे हैं जो मीडिया के कारण प्रकाश में आये और उन्हें न्याय मिल सका ! में फिर वही बात दोहराना चाहूंगी अच्छाई और बुरे , हर स्थान , हर वस्तु में है परन्तु अति हर चीज की बुरी है ! अत : यही गुजारिश मीडिया से भी अपनी जिम्मेदारियों को और परिपक्वता , ईमानदारी से निभाए क्योंकि कमियां शायद कई अधिक होगी लेकिन आज हम कुछ शुरुआत अच्छाई से करेंगे ! जैसे जब एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग को पेड़ लगता देख उसका पोता पूछता है की दादाजी इसका क्या फायदा आप तो इसके फल नहीं खा पाएंगे ! उन्होंने हसकर कहा लेकिन तुम और आने वाली कई पीड़ियाँ तो खायेंगी व इसकी छाया में विश्राम करेंगी ! जैसे की हम अपने बुजुर्गों द्वारा लगाये गए वृक्षों का इस्तेमाल करते आये हैं ! वह बच्चा भी इससे सीख लेता है की हाँ में भी आगे चलकर यह नेक कार्य अवश्य करूँगा ! अत इंसान को उसकी मानवता से पहचे नाकि रंग , धर्म व जाति से !




Sunday, February 28, 2010

उम्र नहीं , सपने रहे जंवा



सेमीनार ख़त्म हो गया था ! सबका ध्यान अब कॉफ़ी- हाउस में हो रही चाय पार्टी की तरफ था ! इन में वो लड़का भी आये हुए कुछ मेहमानों के साथ उसी और बढ़ रहा था ! उसके चहेरे की बेशर्मी देख मुझे दुःख हो रहा था ! यह वही था जो शायद कुछ देर पहले किसी के सपनो का मजाक बनाकर आया था ! ऐसे शक्सियत का जिसने शायद इस सपने के लिए अपनी पूरी जिन्दगी लगा दी ! और खुद को मार कर भी इसे जिंदा रखा! अगर किसी नौजवान ने यह सब किया होता तो कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी! लेकिन एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग नौजवान को फुर्ती से कार्य करता देख कोई भी हैरान होगा ! में बात कर रही हूँ ''पी एन शाही '' जी की जिनकी पुस्तक '' युग वरतारा'' जो एक पंजाबी नाटक की किताब है उसकी ऑडियो सी' डी जो अब बन कर तैयार हुई है ! उसकी लौन्चिंग का ( माफ़ी चाहूंगी उचित शब्द खोज नहीं पाई )! मैंने यह नोवेल नहीं पड़ा लेकिन वंहा सभा में आये सभी महानुभव ने जो टिप्पणी की उसे से यही ज्ञात हुआ की यह आज की समस्याएँ , हमारे गिरते नैतिक मूल्य , विश्वास की कहानी है ! जिसमे कुल मिला कर छ पात्र है ! जिसमे एक दरवेश , खुसरा , एक चित्रगुप्त , राजनितिक , धर्मराज , व अब तक पीड़ा भोगती आ रही महिला को एक पवित्र रूह का किरदार दिया गया ! आज शाही जी का सम्मान बहुत ही मशहूर लेखिका दिलीप कौर टिवाणा जी ने किया ! में अब अपनी बात पर आना चाहूंगी सुबह जब हम क्लास लगा रहे थे तो सेमिनार हॉल को फूलों से सजाया जा रहा था ! एक इंसान बहुत ही तलीनता से इसमें जुड़ा था ! रूचि न होने के कारन एक झलक देख चले गए लेकिन हम हैरान थे जब देखा की उन्हें सम्मान दिया जा रहा है ! तभी एक आवाज आती है की अरे यह तो वही हैं जो सुबह खुद ओह गोड़ ही इस रियल स्टार ! किसी की आँखों से आंसू झर रहे थे कोई नमस्तक था ! तभी उनका परिचय दिया गया आजादी की जंग में सब खोया , दंगो में जवान बेटा , कैंसर के मरीज हुए ! उन्हें देखकर लगा की अगर सपनों को पूरा करने का हौसला है तो हर बाधा को हटाया जा सकता है ! हर बुद्धिजीवी चाहे गायक हो या लेखक हमेशा चाहेगा की मुझे प्रसिधी मिले लोग मेरे कार्य को जाने ! बात पैसे की नहीं मान -सम्मान की है ! कितने मजबूर होंगे जब उन्होंने खुद आकर कहा की मेरा किसी ने कभी सम्मान नहीं किया ! पर मुझे दिल से ख़ुशी है की डॉ हरजिंदर वालिया ने एक प्रयास किया ! उनके इस सपने को पूरा करने का इस सब में वो मेरे साथ बैठा लड़का उनके बारे में बहुत अपशब्द बोल गया ! जिसे सुनकर शायद बाकि बैठे लोगों को भी शर्म आई ! में सिर्फ उस एक लड़के की बात नहीं कर रही ऐसा बहुत बार होता है ! लेकिन हमेशा यह याद रखे की कमियां निकलना बहुत आसान है वंहा पहुंचना बहुत मुश्किल शायद वंहा अगर हमारे परिवार का कोई सदस्य होता तो हम पर क्या गुजरती ! किसी का दर्द ,लेकिन कंही बोरियत,कंही फुसफुसाहट तो कंही आंसू !किसी के अरमानो की डोली या जिन्दगी का पसीना लेकिन कंही एक हंसी ,या किसी के सपनों का मजाक़ ! लेकिन में कन्हुगी सीख यह है तू चलता जा मंजिल जरुर मिलेगी , न घबरा , डट कर सामना आने वाली मुश्किलों का चलता जा ...........बस

Saturday, February 27, 2010

छूटते जा रहे है होली के रंग


हमारे जीवन में रंगों का बहुत महत्व है ! हर रंग अपने आप में कुछ कहता है ! हर रंग से जिन्दगी का कोई न कोई पहलु जुड़ा है ! कोई शक्ति का प्रतीक है तो कोई शांति का ! इन रंगों से अलग- अलग कहानिया भी जुडी है ! कहा जाता है की सफ़ेद चाँद की चांदनी से चुराया है और गहरा काला रात के अँधेरे से , हरा लहलहाती हरियाली का प्रतीक है तो पीला सरसों व गेंदे के फूलों का वही गुलाबी को सुन्दरता का रंग माना गया है ! हमारे आस -पास कितने ही रंग बिखरे पड़े हैं ! इनका एहसास करने और यह कामना करने , की हमेशा ये सुंदर रंग जिन्दगी को इसी प्रकार खुशहाल बनाये यह होली का त्यौहार मनाया जाता है ! इसका इतिहास जितना पुराना है उतना ही शिक्षाप्रद है ! होली से पूर्व किया जाने वाला होलिका देहन बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देता है ! प्राचीन संस्कृत कवियों से लेकर आधुनिक कवियों ने होली का बहुत गुणगान किया है ! मथुरा , वृन्दावन ,व ब्रज की होली में आज भी कृष्ण भगवान की छवि को देखा जाता है ! कंही लट्ठ मार तो कंही फूलों की वर्षा की जाती है ! हमारी संस्कृति का प्रतीक है यह त्यौहार ! होली का त्यौहार साल में एक -बार आता है ! लेकिन आज इस उत्सव का अर्थ ही बदल गया है ! एक समय था जब सब गिले - शिकवे भुलाकर एक दुसरे के गले लग जाते थे ! दुश्मन भी दोस्ती का हाथ आगे कर पुराना वैर -विरोध छोड़ देते थे ! एक दुसरे पर रंग ढाल सब गुलाल के सप्त्रंगो में रंगीन हो जाते ! लेकिन आज इसी त्यौहार के नाम पर कीचड़ , कालिक मल इसे गन्दा किया जाता ! तेज आवाज में फूहड़ , द्विअर्थी गीत चला अश्लील हरकते की जाती है ! बुजुर्गों को जो परेशानी होती वह अलग स्त्रियाँ घर से बाहर नहीं निकल सकती ! नशे किये बिना यह पूर्ण नहीं होता व शराब , चरस इत्यादि पीकर लोग आपस में झगडे करते हैं व कईं बार कोई नव-विवाहित इस दिन बेरंग हो जाती है ! किसी माँ की गोद सुनी हो जाती है ! होली के रंग अगर सद्भावना, प्रेम उमंग के हो तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर साम्प्रदायिकता के हो तो कहर बरसा देते है ! आज जन्हा एक तरफ रोज बेगुनाह लोग मर रहे हैं कौन मनायेगा यह होली ! इसमें क्या दोष था उनका जो बम्ब विस्फोट में मारे गए या तालिबानियों के गुस्से का शिकार हुए या वे जो रोज गरीबी से पल- पल मर रहे हैं ! अंत में सबको होली की यही मुबारक बाद देना चाहूंगी की होली शालीनता के दायरे में मनाये जिसे किसी को परेशानी न हो ! क्योंकि कल को शायद आप भी उस मजबूर की जगह हो सकते हो ! पानी व्यर्थ न बहाएं व अपने टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने का प्रयास करे ! हर परिवार को खुशियों की होली नसीब हो लाल रंग ख़ुशी का हो ! हम खून की नहीं गुलाल की होली खेले ! क्योंकि दूसरों की जिन्दगी उजड़ने वाले शायद रंगों को भूल गए हैं ! जब रंग उनसे रुठेंगे तो वे बदरंग हो जायेंगे ! अब वक़्त है जिन्दगी के रंगों को समझने व जानने का !

Tuesday, February 16, 2010

उड़ गयी सुनहरी चिड़िया


सुंदरवन एक छोटा सा राज्य था ! यंहा की प्राक्रतिक छटा बहुत ही मनमोहक थी ! इस राज्य में बड़े - बड़े चीड़, देवदार व अन्य कई तरह के वृक्ष थे ! जन्हा भिन्न - भिन्न प्रजातियों के पक्षी अपना घोसला बनाकर रहते थे ! वंहा एक हरिया नामक गडरिया भी रहता था ! उसे पशु -पक्षियों से बहुत लगाव था ! वह रोज अपनी भेड़ों को जंगल में चराने के लिए लेकर जाता था ! जंगल के पक्षियों को प्यार से बुलाता ! कोई न कोई खाने की वस्तु दाना इत्यादि उन्हें दाल देता !एक शाम जब हरिया अपनी भेड़ों व बकरियों को जंगल में चरा रहा था ! उसे बहुत ही मधुर संगीत सुनाई दिया ! वह इधर -उधर देखने लगा की यह आवाज कंहा से आ रही है ! सहसा उसकी नजर एक सुनहरे पक्षी पर पड़ी ! हरिया उसकी सुन्दरता देखकर हैरान हो गया ! वह समझ गया की यह सुनहरी चिड़िया ही यह मधुर गीत गा रही थी ! अब वह जब भी जंगल आता सुनहरी चिड़िया के लिए स्वादिष्ट पकवान लाता ! अब सुनहरी चिड़िया भी हरिया से स्नेह करने लगी थी ! उसके आने पर वह गाया करती ! उन दोनों को एक दुसरे से बहुत लगाव हो गया ! कुछ दिनों के बाद सुदूर देश से एक राजकुमार सुंदरवन घुमने आया ! यंहा के बाग़ , खलियान देखने के बाद उसने जंगल देखने की इच्छा व्यक्त की ! सब उसे समझाने लगे की जंगल में देखने लायक क्या है ! परन्तु वे नहीं माने और अकेले ही चल पड़े ! सुनहरी चिड़िया तब अन्य चिड़ियों के साथ दाना चुग रही थी ! राजा की नजर जब उस चमकती चिड़िया पर पड़ी वे उसकी सुन्दरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गए ! वे उसे झाड़ियों में छिपकर निहारते रहे ! कुछ देर बाद चिड़िया ने गाना शुरू कर दिया ! राजकुमार की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ! वे इस विचित्र पक्षी के बारे में सबको बताना चाहते थे ! वे उस सुनहरी चिड़िया से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने सुंदरवन के राजा वीरकुमार को एक पत्र लिखा ! उस पुरे पत्र में राजकुमार ने सुनहरी चिड़िया की बहुत तारीफ की ! अब तक राजा को ऐसी किसी चिड़िया की कोई जानकारी नहीं थी ! पत्र पढ़कर उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ ! उन्होंने साथ ही अपने सैनिको को जंगल में जाकर सुनहरी चिड़िया पकड़ने का आदेश दिया ! सैनिको ने उसे बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिली! एक दिन राजा अपने बगीचे में रानी के साथ सैर कर रहे थे की रानी की नजर किसी चमकती चीज पर पड़ी ! जब राजा ने पास आकर देखा यह वही सुनहरी चिड़िया थी ! राजा -रानी बहुत खुश हुए ! अब वह चिड़िया राजमहल में रहने लगी! उसके लिए सोने का पिंजरा बनवाया गया ! कभी वह बागों में विचरण करती रात को पिंजरे में आ सो जाती ! राजा व रानी उसके गाना सुनते और बहुत खुश होते ! ऐसे ही कितना समय निकल गया ! एक दिन दूर देश से एक जादूगर आया ! उसने राजमहल में कई तरह के जादुई करतब दिखाए ! उसने जाते समय राजा को एक खिलोना दिया जो नाचता व गाता था! राजा को वह खिलौना इतना अच्छा लगा की वे सुनहरी चिड़िया को बिलकुल भूल गए ! अब वह बहुत उदास रहने लगी थी ! उसे लगता की वह महत्वहीन हो गयी है ! एक दिन वह राजमहल से उड़ गयी ! कितना समय बीत गया वह किसी को भी दिखाई नहीं पड़ी ! एक दिन वह नाचने गाने वाले खिलौने ने कार्य करना बंद कर दिया ! राजा ने कई कारीगरों को बुलाया पर वह ठीक न हो सका ! अब राजा को ' सुनहरी चिड़िया ' याद आने लगी ! सैनिकों ने चिड़िया को बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिली ! अब राजा बहुत बीमार रहने लगा था ! अब उन्हें अपनी गलती पर बहुत पछतावा हो रहा था ! कहते हैं चिड़िया जन्हा से आई थी वही चली गयी ! ऐसा ही होता है जब समय रहते हम किसी चीज की कदर नहीं करते तो बाद में पछतावा ही रह जाता है ! अत : हमेशा हर चीज का महत्त्व समझना चाहिए चाहे व खेल कूद, पढाई व सबसे उपयोगी समय ही क्यों न हो !

Thursday, February 4, 2010

यादों के सहारे

तेरी आवाज सुनकर जो मिली ख़ुशी ,
उसका अहसास ही कर सकते हैं....
गम तुझे ज्यादा है ,
हमारी जुदाई का .....पर
बयान नहीं कर सकते.....
तू दूर जाकर हमसे ...
हमें भूलना है चाहता........
पर ये यादें तेरा साथ नहीं छोडती,
जितना जाते हैं , दूर ये उतनी ही पास चली आती हैं ,
तेरी साँसे भी तेरे दिल का ,
हाल बयाँ कर जाती है .....
आवाज तेरी उन्ही यादों के झरोखों में लाकर ,
खड़ा कर जाती है ,
जंहा से निकलना तो है मुश्किल और रहना
मेरे गम का सबब बनता जा रहा है ,
जितना चाहते हैं भूलना , तू हमें उतना ही
याद आ रहा है ,
जानते हैं की , कभी मिल नहीं पाएंगे,
तेरी नज़रों को जाम हम कब ......
अपनी नज़रों के पिलायेंगे .............,
फिर भी ये बाजी खेलना चाहते हैं ,
सब जानकर भी हारना चाहते हैं ,
क्योंकि मजबूर है , तुझसे दूर हैं .....
किनारा एक जितना दुसरे किनारे से है ,
ना वो किनारे मिल पायेंगे ,
ऐसे ही तेरी यादों के एहसास से
हम जिन्दगी बिताएंगे !!

खवाहिशें


काश, कोई इनको भी प्यार देता , या इनका दर्द समझ पता ...
कितना अच्छा होता , अगर हमारा समाज इन बच्चों को अपनाता
खून इनका भी है लाल............
दिल इनका भी है मासूम..........
पर इनकी ख्वाहिशों में सिर्फ ...
खाने और कपडे का है जूनून,
इनकी जिन्दगी इन दो चाहतों में
ही बट जाती है ,
और जिस धरती पर पले -बड़े
वंही किसी दुर्घटना में इनकी मौत हो जाती है ,
लाश , किसी मुन्सिप्ल कमेटी में फेंक दी जाती है ,
या लावारिस की चादर ओड जला दी जाती है ,
इनकी जिन्दगी जंहा शुरू हुए , वंही
रह जाती है .........
हम लोग जिनके पास है सब कुछ फिर भी इन्हें
देख ना जाने क्यों मुंह से गली निकल आती है !!

विरह की रात

बारिश भरी रात भी एक , कितना कुछ है कह देती ...
वह शांत सा मौसम , वो ठंडी -ठंडी हवा ..
जसी प्रियतम को मिलने चली हो प्रिया
बिजली का कड़कना , अँधेरे का बढ़ना ..
जैसे रही हो ढूंड , मिलन की जगह ,
कितने समय से वो रही थी तरस .
आज कहता है मन दिल खोल कर बरस,
प्यास दिल की कभी न बुझ पायेगी ,
इस प्यारी , सुंदर रात को जी लो ये फिर
ना वापिस आएगी , कभी ना वापिस आएगी !!

Monday, February 1, 2010

अनजाने रिश्ते

खचा-खच भरी हुई एक प्राइवेट बस में में अपने भाई के साथ बैठी हुई अपने गाँव से शहर जा रही थी ! पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखते हुए सिर्फ बड़े -बड़े धूल के गुबार नजर आ रहे थे और सड़क के नाम पर गड्ढे ! कभी अपने प्रदेश की तरक्की के बारे में सोचती की उसे नंबर एक का दर्जा क्यों दिया गया है और कभी भीड़ में खड़े लोगों के चेहरों को ! सब सोच ही रही थी की वो धीरे -धीरे चलती बस रुक गयी और एक करीबन सत्तर वर्षीय वृद्ध व उनके साथ दो महिलाएं बस में चढ़ गयी ! उन बाबा जी की तबियत बहुत खराब थी ! उसे देख मेरे साथ बैठा मेरा चौदह वर्षीय भाई खड़ा हो गया और वो मेरे साथ बैठ गए ! उनको पथरी का दर्द हो रहा था ! वह उनकी पीड़ा अवस्था असहनीय थी ! वे न बैठ पा रहे थे और न खड़े ! पूरे रास्ते मैंने अपनी बाजू से उनको पकडे रखा ! वे आँखें जेसे कुछ कह रही थी पर शायद जुबान साथ न दे रही हो ! एक अनजाना रिश्ता सा जुड़ गया था , शायद दर्द का रिश्ता ! मैंने उनके साथ आई महिला से पूछा की आप इन्हें कंहा लेकर जा रही है ! वे कहने लगी ये मेरे ससुर है इन्हें पथरी थी कुछ दवाइयां खायी तो ठीक हो गयी पर पानी भर गया ,सरकारी अस्पताल लेकर जाते हैं ! में सोचने लगी वाह से इंसान , शायद इस दर्द से बड़ा दर्द गरीबत का है ! मेरा भाई कहने लगा आप किसी बड़े अस्पताल ले जाईये लेकिन उनकी हालत सब कुछ बयाँ कर रही थी जो वो बच्चा नहीं समझ पाया ! सब तमाशबीन बने देख रहे थे और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ! गुस्सा आ रहा था की कितने लाचार हैं हम चाँद पर तो पहुँच गए पर एक बीमार को अस्पताल ले जाने तक की व्यवस्था न कर पाए ! उनका चेहरा देख मुझे बड़े - बड़े मंत्रियो की याद आ रहे थी और उनके झूठे वादों की जो इन्ही पांवो को छूकर जीतने के आशीर्वाद लेते हैं ! आज यही पैर चलने को भी मोहताज हो जाते हैं !आगे जाकर बस खराब हो गयी उनकी हालत बिगडती जा रही थी ! पहले ही बहुत देर हो चुकी थी ! मैंने कहा आप रिक्शा कर लीजिये वह अन्दर तक छोड़ देगा ! लेकिन उनकी बेबसी ने उन्हें मजबूर कर रखा था ! तभी एक व्यक्ति को मैंने कहा आप जाकर ले आइये ! कुछ देर बाद रिक्शा आया व हमने बहुत मुश्किल से उन्हें बिठा दिया ! उनका चेहरा बहुत कुछ कह रहा था ! हम आगे आये मैंने भैया से पैसे पूछे और उन्हें नमस्ते कर चली गयी ! उनकी आँखों ने बिना कहे कंही हज़ार शब्द कह दिए ! हमने ऑटो पकड़ा ! मेरा भाई पूछता रहा दीदी वो उन्हें कार में क्यों नहीं लाये ! अपने पैसे क्यों दिए ! पर मेरा दिल सिर्फ यही दुआ कर रहा था की आज कंही से कोई फ़रिश्ता आ जाये और उनका इलाज करदे !

Friday, January 29, 2010

दहेज़

माँ यह दहेज़ क्या होता है ? नेहा ने हैरानी से पूछा ! क्या हुआ बेटा आपने कहा सुन लिया सुनीता ने पूछा, नहीं माँ वो श्रेया कह रही थी, उसकी मम्मी तो अभी से घर की हर चीज उसके दहेज़ के लिए जोड़ रही हैं ! आप बताओ ना , ओह मेरी बिटिया की शादी में अभी बहुत समय है ! आपके पापा तो वैसे ही दहेज़ के सख्त खिलाफ है ! परन्तु माँ ये होता क्या है ! यह वो राक्षस है जो रोज ना जाने कितनी ही लड़कियों को निगल रहा है ! बिना किसी कसूर के ! शादी के समय दी जाने वाली वो प्यारी सौगात जो आज इस समाज के कारण लोगों की परतिष्ठा व दिखावे का प्रतीक बन गयी है ! जो यह दिखावा नहीं कर पाते उसकी सजा उन मासूमों को अपनी जान देकर ...............! क्या मम्मी कैसे बातें कर रहे हो ! बेटा शादी के समय घर का सामान फ्रिज, टी;वी , इत्यादि जो दिया जाता है उसे ही दहेज़ कहते हैं ! ओके माँ ! आप इस बात को छोडो और जाकर पढाई करो ! कुछ दिन बाद अरे मिसेज शर्मा हद हो गयी ! अपने ही पड़ोस में ऐसी घटना , शर्म क्यों नहीं आती लोगों को ऐसा करते ! वे क्यों भूल जाते हैं की अगर उनकी बेटी के साथ कोई ऐसा करे ! अरे नेहा बेटा आप आ गए , कैसा रहा स्कूल में आपका दिन ! माँ एक बात कहू आप मानोगे हाँ बेटा बोलो , प्लीज़ आप मुझे मेरी शादी में दहेज़ जरुर देना लेकिन क्या हुआ ? मुझे आरती आंटी की तरह जल कर नहीं मरना ! गली में सब कह रहे थे की देखो कैसे पापी है , दहेज़ के लिए बहु को जला दिया ! सुनीता बिना कुछ कहे खाना लेने चली गयी !

जिद्द की सजा

सजल अपने माता -पिता की एकलौती संतान थी ! सजल के पिता एक बैंक में सरकारी कर्मचारी थे ! बचपन मे सजल जिस चीज की फरमाइश करता वह पूरी होती इस कारण वह अब मनमानी करने लगा था ! वह जिद्दी व अकडू होता जा रहा था ! इस कारण उसके माता -पिता परेशान रहने लगे थे ! सजल अब १०वि कक्षा में हो गया था ! इस बार उसके बोर्ड के पेपर थे पर उसका पढाई में बिलकुल ध्यान नहीं था ! एक दिन जब वह स्कूल से आया तो अपने कमरे में उदास होकर बैठ गया ! उसकी माँ को इसका कारण समझ में नहीं आया ! वे सजल को बुलाने उसके कमरे में गये तो सजल रोने लगा और मोबाइल फोन की जिद्द करने लगा ! सजल की माँ गुस्से में कमरे से बाहर आ गयी ! वह सारा दिन अपने कमरे में ही उदास बैठा रहा ! शाम को उसने विकास को सजल की सारी बात बताई ! सजल के पिताजी को उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया ! वे सजल के कमरे में गये और प्यार से समझाया की ऐसे खाने पर गुस्सा नहीं करते हम तुम्हारे पेपर हो जाने के बाद तुम्हे फोन ले देंगे ! लेकिन सजल पर कोई असर नहीं हुआ ! अंत में सजल की माँ ने उसके पापा को कहा की सजल आगे से पढाई करेगा आप इसे फोन ले दीजिये ! सजल ने स्कूल जाने से भी मना कर दिया की बच्चे मेरा मजाक बनाते की तुम्हारे पास फोन भी नहीं है ! अत: विकास सजल को बाजार ले गया और उसे फोन ले दिया ! अब सजल बहुत खुश था ! घर आने पर वह माँ को भी फोन दिखने लगा कितना प्यारा है में इसे अपने दोस्तों को दिखा कर आया ! निशा भी हसने लगी की कितना खुश है न पर विकास को चिंता हो रही थी की कंही सजल इसका दुरपयोग न करे ! निशा ने विश्वास दिलाया की सजल ऐसा कुछ भी नहीं करेगा ! सजल सिर्फ स्कूल जाते वक़्त इसे घर रखता और आते ही सारा दिन फोन पर लगा रहता ! वही हुआ जिसका विकास को डर था वह पढाई से जी चुराता ! सारा दिन फोन पर गाने सुनना, मेसज करना यही उसकी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया था ! स्कूल में अध्यापक की डांट पड़ती पर वह कोई भी बात घर तक न पंहुचने देता ! निशा उसे बहुत समझाती वह हर बार बहाना बनाता की अगली बार से ऐसा नहीं करूँगा ! उसके परीक्षा के दिन आने वाले थे ! वह टयुशनं से घर फोन पर गाने सुनता हुआ आ रहा था ! कानो में ईअरफोन लगे होने के कारण उसे पीछे आती गाड़ी का होर्न सुनाई नहीं दिया ! उसे गहरी चौटे आई ,उसके बाजू की हड्डी भी टूट गयी थी ! डॉक्टर ने साफ़ कह दिया की वह २ महीने तक बिस्तर पर रहेगा ! निशा का रो -रोकर बुरा हाल था ! विकास डॉक्टरों के चक्र लगा रहा था !अब वह पछता रही थी की काश उस दिन वह सजल का साथ न देती तो यह दिन देखना न पड़ता लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था ! सजल का पूरा साल ख़राब हो चूका था उसकी एक गलती की सजा अब सबको भुगतनी पद रही थी

समझदारी से मिली जीत

पुराने समय की बात है ! रामगढ नामक एक छोटा सा नगर था ! वंहा एक व्यवसायी रहता था ! उसका नाम रामलाल था ! वह बहुत ही ईमानदार व मेहनती था ! उसका व्यापर दूर-दराज के इलाकों में भी फैला हुआ था !वह हमेशा जरुरतमंदो की मदद करता व सबसे शालीनता पूर्वक व्यवहार करता ! सभी नगरवासी उसका बहुत आदर , सम्मान करते थे ! रामलाल के चार पुत्र थे ! वे चारों बहुत ही आलसी थे ! पिता के पैसों पर ऐश करते ! उनकी ये हालत देख रामलाल को बहुत चिंता होती ! रामलाल को यही डर सताए रहता की वे उसकी खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर देंगे ! इसी समस्या के बारे में सोचते रहने के कारण रामलाल बीमार रहने लगा था ! उसका छोटा बेटा पदाई -लिखाई में थोडा होशियार था पर बाकि तीनो कोई काम न करते ! एक दिन रामलाल के मन में आया की उसे अपनी जायदाद का बटवारा कर देना चाहिए ! अगर वह मर भी जाये तो उसके बेटो में कोई लडाई - झगडा न हो ! यही सोच कर एक दिन वह अपने चारो बेटो को अपने पास बुलाता है ! वह अपने मुंशी से सबको १००-१०० रूपए देने को कहता है ! वे चारों इस रहस्य को समझ नहीं पते ! उन्हें लगता है की ये पैसे भी पिताजी ने उन्हें खर्चने के लिए दिए हैं ! रामलाल उनके हाव -भाव को देखकर समझाता है की वह जमीन -जायदाद का हक किसी एक को देना चाहता है ! इसके लिए मेरी एक छोटी सी परीक्षा है जो उसे पास कर अपने आपको को सबसे बुद्धिमान साबित कर देगा ! सब कुछ उसका हो जायेगा ! चारों ने हाँ में सिर हिलाया और परीक्षा पूछने लगे ! रामलाल ने कहा की तुमें इन १०० रुपयों से कोई ऐसी चीज खरीद कर लानी है जिससे एक पूरा कमरा भर जाये ! तुमें एक दिन की मोहलत दी जाती है ! छोटे पुत्र को छोड़ बाकि सभी रामलाल का परिहास करने लगे की कितना आसन काम है !ये तो हम चुटकियों में पूरा कर देंगे !बाकि तीनों सामान लेने बाजार चले गए ! सबसे छोटा बैठ कर पूरी शर्त के बारें में गहराई से सोचने लगा ! अगले दिन का समय का भी आ जाता है ! रामलाल सबसे पहले बड़े -पुत्र के पास जाता है ! उसने सारा कमरा घास फूस से भरा होता है ! लेकिन कमरे में अभी भी बहुत सी जगह ख़ाली होती है ! वह बहुत निराश होकर दुखी मन से दुसरे पुत्र के कमरे में जाता है !वंहा का हाल इससे भी बुरा होता है ! सारा कमरा कागज व रद्दी के ढेर से भरा होता है ! कमरा अभी भी ख़ाली ! अब वह मंझले के कमरे में जाता है ! उसने सारा कमरा रुई से भरा होता है ! रामलाल दुखी ह्रदय से वही बैठ जाता है ! अब क्या होगा तभी चौथा पुत्र आवाज लगता है पिताजी यंहा आईये ! जब रामलाल कमरे में जाता है कमरा में घना अँधेरा होता है ! वह कहता है बेटा तुमने शर्त नहीं सुनी थी यह तो पूरा ख़ाली है ! वह कहता है रुकिए और जेब से मोमबती निकल माचिस से उसे जला देता है १ सारा कमरा प्रकाश से भर जाता है !रामलाल की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ जाते है ! वह अपने बेटे को गले से लगा लेता है ! तभी वह कहता है इस प्रकाश की कीमत सिर्फ एक रुपया है ये रहे बाकि के पैसे ! रामलाल को बहुत ख़ुशी होती की यह बेटा उसके कारोबार को नुक्सान नहीं पहुंचाएगा बल्कि और बदयेगा ! वह सारा कुछ चौथे बेटे के नाम कर देता ! बाकि अपनी गलती पर शर्मिंदा हो चले जाते हैं ! इस प्रकार वह अपनी समझदारी से सब कुछ प्राप्त कर लेता है !

Thursday, January 21, 2010

खंडर का दर्द

आज जर्जर अवस्था में देख मुझे , डर जाते हैं सभी ,
कभी में भी आबाद हुआ करता था ......
डालते थे झूले , कभी मेरी मजबूत शाखाओं में ,
आज एक पत्ते को भी तरस जाता हूँ ...
लगते थे मेले , मनाते थे जश्न आज अपनी ही पहचान ..
दूंदते फिरता हूँ ....
अगर सवांरा होता तो कोई अजूबा बन जाता ,
या किसी खोजी का विषय ...
पर अब संवय को पल - पल गिरता देख ,
अपने अस्तित्व के पतन पर अश्रु बहाता हूँ ..
अश्रु बहाता हूँ .!!

Thursday, January 14, 2010

मकर सक्रांति की बधाई

मेरी तरफ से सभी साथियों को लोहड़ी , व मकर सक्रांति की बहुत -बहुत शुभ कामनाएं ! आने वाला वर्ष जीवन को नयी ऊचाइयों के शिखर तक ले जाये ! हमारे मन में सकरात्मक उर्जा का आगमन हो ! उत्तरायण को धूम -धाम से मनाएं ! विश्व में सुख शांति रहे ! इसी मकर सक्रांति के पावन उपलक्ष पर हमारी ऑन- लाइन पत्रिका साईं गुरु भी शुरू हो गयी ! मुझे आशा है आप सब उसे भी जरुर पसंद करेंगे व प्यार देंगे !
शुभ कामनायों सहित
वृंदा गाँधी

Monday, January 4, 2010

सरहदी रिश्तों का खून

ना जाने कैसे इतने बरसों बाद ,
उन्हें हमारे ख्याल आया ........हम तो उन्हें भुलाये बैठे थे,
अपनी यादों के...
झरोखों में .........
ना जाने कैसे आज सरहद पार,
उनका पैगाम आया ,
पैगाम उनका वही मजबूरियों की...
कहानी कह रहा था ....
कह रहा था की दिल तुम्हे बहुत याद करता है
तुम्हारी सलामती की हर दम दुआ करता है ..
चाहता है मिलना पर ..
दूरियां बहुत है ..या यूँ कहो
दुनिया ने बनाई मजबूरियां बहुत है .
यह एक सरहदी रेखा पार नहीं होती
अब तो दिल के दर्द में साथ देना आँखों ने भी
छोड़ दिया है ..
और हमेशा उसके पैगाम ने दिल मेरा तोड़ दिया है
काश में कोई परिंदा होती ..
तो उड़ कर उसके पास चली जाती ..या हवा
होती तो उसकी साँसों में घुल जाती..
पर में तो एक मजबूर इंसान हूँ , जो हालातों और सरहदों का
मोहताज है , जिसके लिए इंसानी रिश्तों से बढ़ कर
ये इमारतें , और जमीन जायदाद है .
खून के रिश्तों का ही खून करने पर
आमदा है ....
या खुदा क्यों?
कब इन्हें इस गलती का एहसास हो पायेगा
शायद तब तक बेगुनाहों के लहू से ये संसार
लाल हो जायेगा ! लाल हो जायेगा

Friday, January 1, 2010

नव वर्ष की बधाई

नव वर्ष का आगमन हो चुका है ! इस नवीन आगमन की प्रात: वेला पर मेरी तरफ से , सभी मित्रो व साथियो को नया साल बहुत - बहुत मुबारक हो ! ईश्वर करे यह नया साल हमारे लिए बहुत खुशियाँ लेकर आये व हम सबको अपने -अपने क्षेत्र में सफलता मिले ! हम और अधिक मेहनत करे व अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करे ! में आशा करती हूँ की इस वर्ष आप लोगो के साथ - साथ कुछ नए लोगों को भी इस ब्लॉग से जोड़ सकू ! आप मुझे इसी स्नेह से मेरी कमियों के बारे में बताते रहे ! में कोशिश करुँगी की संवेदनहीन हो रहे लोगों में कुछ भाव जाग्रत कर सकू ! साथ ही कुछ बेहतर लिखने का भी प्रयास करुँगी !अंत में फिर आपके और आपके पूरे परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत बधाई !
वृंदा गाँधी