मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना , हिंदी हैं हम वतन है ये हिन्दुस्तान हमारा, अनायास ही शब्द मेरे मुख से निकले जब में माई नेम इस खान देख रही थी ! यह बात शायद बहुत पुरानी हो गयी है परन्तु देखने व लिखने का मौका अभी मिला ! मीडिया हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है यह हम सब भली- भांति जानते है ! मिटटी को सोना बना सकता है और आकाश के तारे को शायद एक आम इन्सान ! इस फिल्म के बारे में हर व्यक्ति की अपनी राय रही होगी लेकिन में यही कहना चाहूंगी की हमारी परवर्ती दुसरे को गलत सबित और गलतियाँ निकलने की बन चुकी है ! कभी हम राजनीती तो कभी पुरे सिस्टम को दोष देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं की ये लोग भी हमारे जैसे हैं ! क्यों न अब शुरुआत खुद से की जाये ! इस फिल्म को खासतौर से मीडिया से जुड़े लोगों को जरुर देखना चाहिए ! हम किसी भी गलत बात को बहुत जल्दी सीखते हैं! क्यों न इस बार प्रयास कुछ अच्छे से किया जाये ! लेखक ने सही कहा है की सिर्फ दो तरह के लोग हैं अच्छे और बुरे ! मजहब चाहे कोई भी हो सभी गुरुओं , पीर, पेंग्म्ब्रों ने सच्चाई व नेकी के राह पर चलने का सबक दिया है ! लेकिन आज धर्म के नाम पर इतने झगडे , दंगे -फसाद हो रहे है ! जिनका घर बर्बाद हो गया कोई उनसे पूछे , जिस घर का जवान लड़का कौमी लडाई में चला गया उस माँ के दिल का हाल बयाँ कोई नहीं कर सकता ! जब कुछ करने का जज्बा व् नीयत भली हो अगर लक्ष्य सिर्फ दूसरों की भलाई तो शायद कभी कोई यह न देखे की सामने वाला पीड़ित किस कौम का है ! हमारा देश तो एक फूलों का रंग- बिरंगा गुलदस्ता है , जंहा तरह- तरह के सुगन्धित फुल अपनी खुशबू , व सुन्दरता को बनाये हुए हैं ! जब भी देश पर विपति आई है पूरा भारत सर्वदा एक जुट हो सामने आया है लेकिन जब भाषा , धर्म और कभी मंदिर तो कभी मस्जिद के नाम पर खून - खराबा होता है तो मानवता भी शर्मसार हो जाती है ! मीडिया को भी चाहिए कभी टी. आर . पी. की दौड़ से बाहर आकर अपना फ़र्ज़ पहचाने ! जब दो भिन्न धर्मों के लोग एक साथ दिवाली मानते है वो कवर करना शायद मुश्किल हो लेकिन एक जलती बस का सीन सारा दिन टी. वी पर चलता है ! जिससे देश के बाकि हिस्सों में बैठे लोग कभी संपर्क ना हो पाने के कारण चिंता में जान दे देते है ! यह जानकारी के लिए है , सूचना के लिए है ताकि मीलों दूर बैठे होने पर भी हम इनसे जुड़े रहें ! वंही विपत्ति आने पर यही चैनल वाले सहायता भी करते हैं ! कई मुद्दे ऐसे हैं जो मीडिया के कारण प्रकाश में आये और उन्हें न्याय मिल सका ! में फिर वही बात दोहराना चाहूंगी अच्छाई और बुरे , हर स्थान , हर वस्तु में है परन्तु अति हर चीज की बुरी है ! अत : यही गुजारिश मीडिया से भी अपनी जिम्मेदारियों को और परिपक्वता , ईमानदारी से निभाए क्योंकि कमियां शायद कई अधिक होगी लेकिन आज हम कुछ शुरुआत अच्छाई से करेंगे ! जैसे जब एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग को पेड़ लगता देख उसका पोता पूछता है की दादाजी इसका क्या फायदा आप तो इसके फल नहीं खा पाएंगे ! उन्होंने हसकर कहा लेकिन तुम और आने वाली कई पीड़ियाँ तो खायेंगी व इसकी छाया में विश्राम करेंगी ! जैसे की हम अपने बुजुर्गों द्वारा लगाये गए वृक्षों का इस्तेमाल करते आये हैं ! वह बच्चा भी इससे सीख लेता है की हाँ में भी आगे चलकर यह नेक कार्य अवश्य करूँगा ! अत इंसान को उसकी मानवता से पहचे नाकि रंग , धर्म व जाति से !
yah kaam aap madarason se shuru karen...
ReplyDeleteaap ke liye shubhkaamnayen....
आपके परिपेक्षय में कहना चाहूंगा कि भ्रष्ट तो हम खूद ही होते है , आपकी बातों से बिल्कुल सहमत हूँ कि क्यो ना शुरुआत अपने से की जाए । आप बढ़िया लिखती हैं , निर्तरता बनाये रखिए ।
ReplyDeleteशुभ- कामनाओं के लिए बहुत शुक्रिया ! शुरुआत तो खुद से करनी है , और ब्लॉग के राही एक प्रयास किया है ! आप जैसे सहायक साथ रहे तो कामयाबी भी अवश्य मिलेगी !
ReplyDeleteApne aap se suru karna jyada better hai.
ReplyDeleteवृन्दा जी मजहब ही तो है सिखाता आपस में वैर रखना । पाकिस्तान के विचार का बिजारोपण करने वाले मोहम्मद इकबाल ने पहले तो भारत माता की अपनी प्रसिद्ध कविता " सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा " द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित किये लेकिन बाद में मजहब के प्रभाव में आकर अपनी कविता " मुस्लिम है हम वतन है सारा जहां हमारा " लिख दी और भारत विभाजन के बीज बो दिये ।
ReplyDeletewww.satyasamvad.blogspot.com
वृन्दा जी मजहब ही तो है सिखाता आपस में वैर रखना । पाकिस्तान के विचार का बिजारोपण करने वाले मोहम्मद इकबाल ने पहले तो भारत माता की अपनी प्रसिद्ध कविता " सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा " द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित किये लेकिन बाद में मजहब के प्रभाव में आकर अपनी कविता " मुस्लिम है हम वतन है सारा जहां हमारा " लिख दी और भारत विभाजन के बीज बो दिये ।
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