Tuesday, December 29, 2009

अधूरे सपने

ना जाने क्यों इन बाँवरे सपनो के पीछे भागता हे ये
चंचल मन ,
हर समय , या दिन के आठों पहर
करता है जुगत इन्हें हकीकत में बदलने की
चाहता है की इस दुनिया को अपने हिसाब से बदल दे,
पर मुमकिन नहीं ,
चाहता है की मरती इंसानियत को जिन्दा करदे
जो नहीं डरती एक बच्ची का जीवन खत्म करते
उसे नोचते ,वो भी बिना किसी कसूर के
सपना देखता है की नव वर्ष पर बहने वाले पैसे
से कोई किसी मासूम का पेट भर रहा है
अलमारी में लगे कपडे के ढेर को
किसी का तन ढकने के लिए बाँट रहा है ,
ढूँढती है आँखें रोज , सड़क के किनारे बेठे
की शायद कोई इस बार सर्दी से बचने का
कम्बल दे जाये ............
पर ये सपने -सपने ही रह जाते है , इतने में इक
सर्द रात में आँख खुल जाती है ........
आँख खुल जाती है !

Sunday, December 27, 2009

अधूरे सपने

माँ लो मिठाई खाओ , क्यों क्या हुआ बेटा ! अपनी छुटकी का एडमिशन दिल्ली यूनिवर्सिटी में हो गया है ! अरे ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है लेकिन बेटा वो इतनी दूर अकेली कैसे आया करेगी ! माँ आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट है वो सब मेनेज कर लेते है ! हाँ शायद तुम सही कह रहे हो और उसका एक क्लास- मेट भी है आ जाया करेंगे बच्चे साथ में ! हाँ बेटा सही कह रहा है बोल में अपने कमरे में आ गयी ! पता नहीं क्यों ये बातें मुझे २५ साल पीछे खींच लायी और मुझे अपनी सुमन के आंसू सुनाई देने लगे ! जब उसके इसी भाई ने सुमन की सारी किताबों को आग लगा दी क्योंकि वो आगे पढना चाहती वो भी लडको वाले कॉलेज में ! छुटकी दिल्ली चली गयी और माँ -बाप ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे ! कुछ दिन बाद अचानक आवाज आई देखा मेरी बेटी सुमन आई थी ! मिलने मेरे कमरे में आई बहुत दुःख - सुख सांझे किये मैंने छुटकी के बारे में बताया बहुत खुश हुई जाने लगी तो बाहर सुनील मिठाई का डिब्बा लेकर खड़ा था ! सुमन ने बधाई दी की बहुत ख़ुशी हुई अगर तब किसी ने मेरे सपनो के बारे में भी सोचा होता तो और चली गयी ! सुनील अब भी डिब्बा हाथ में लिए खड़ा था ! माँ खुश थी की एक बेटी के न सही लेकिन दूसरी के अधूरे सपने तो पूरे हुए !

सरहद के पार

ज़ाने से पहले क्यों सलाम जरुरी हो जाता है
हर आखिरी लम्हा क्यों बेशकीमती हो जाता है ,
इन आँखों को तो नसीब भी न हुई तेरे चेहरे की एक झलक ... फिर भी
अगली मुलाकात का इंतज़ार शुरू हो जाता है .....
रहे खैरियत से तू अपने उस मुल्क में यही दुआ करते हैं ,
करे दीदार तेरे चेहरे का यही फरियाद करते है ,
ये कुछ कदमो की दूरी है ..पर सरहद पार नहीं होती ( बाघा बॉर्डर).
देख उस सरहदी रेखा को ये आंखे बड़ा है रोती..
दिल के इतने करीब है पर मीलों की दूरी तय नहीं कर पाते ,
याद करते हैं तन्हाई में पर कह नहीं पाते ,
रहना -सहना ,बोली पर मुल्कों के नाम अलग है ...
रिश्ते हैं वही पर बुलाने के नाम अलग है ,
मेरी मजबूरी वंहा आने नहीं देती ..तेरी बेरुखी कहे
या कुछ ऐसे मसले जो तुझे यंहा आने नहीं देते ,
यादें साथ हैं और हमेशा रहेगी ..कभी ताज़ी तो कभी मुरझाई ..
बगिया के उन फूलों की तरह जो पतझड़ के बाद बसंत का इंतज़ार करते
फिर से खिल जाने के लिए !

बदलते रूप

रमेश फिर बहुत शराब पीकर आया था ! इसका कारण वही पुराना था ! दोस्तों के घर पार्टी थी या सहयोगियों व अफसरों के साथ मेलजोल बढाने का सबसे सरल उपाय ! घर आते ही कलेश शुरू हो गया ! वह किसी को कुछ नहीं कहता था ! परन्तु उसकी ये हालत परिवार वालों से देखी न जाती ! बूढ़े माँ -बाप उसे कोस रहे थे की उम्र का कुछ ख्याल कर ! इतनी शराब पीकर वाहन चलाने का भय हमें खाता रहता है ! बच्चे कसमे दे रहे थे की आप आगे से कभी शराब को हाथ नहीं लगायेंगे !पत्नी रो -रोकर सबको चुप करा रही थी ! काफी हो - हल्ला करने के बाद सब सो गए ! उस दिन के बाद पत्नी को छोड़ बाकि परिवार वालों ने उससे बात करनी बंद कर दी !
कुछ दिन बाद उसे बिजनेस में बहुत बड़ा फायदा हुआ ! घर में जशन का माहौल था ! माँ -बाप रमेश की बलाएं लेते नहीं थक रहे थे ! बच्चे घुमने का प्रोग्राम बना रहे थे ! घर में खुले आम शराब चल रही थी पर किसी के मुख पर कोई शिकन का भाव नहीं था !
पत्नी कोने में खड़ी सबके बदलते रूप का तमाशा देख रही थी !

Sunday, November 22, 2009

ਸਿਆਣਪ

ਸ਼ਹਿਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਜੰਗਲ ਸੀ ! ਔਸ ਜਗਾਹ ਤੇ ਕਯੀ ਛੋਟੇ ਪੰਛੀ ਆਪਨੇ ਘੋਸਲੇ ਬਣਾ ਕੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸੀ ! ਔਥੇ ਇਕ ਬੋਹੜ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਢਾ ਦਰਖਤ ਸੀ ! ਜਿਸ ਉੱਤੇ ਇਕ ਚਿੜੀ ਰਹਿੰਦੀ ਸੀ ! ਔਸ ਬੋਹੜ ਦਿਯਾ ਜੜਾ ਕੋਲ ਹੀ ਇਕ ਕਾਲਾ ਸਪ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ! ਔਹ ਸਾਰਿਯਾਂ ਨੂ ਬਹੁਤ ਤੰਗ ਕਰਦਾ ਸੀ ! ਕਾੱਦੀ ਕਿਸੀ ਚਿੜੀ ਦੇ ਅੰਡੇਆ ਨੂ ਖਾ ਜਾਂਦਾ ਕਦੀ ਆਂਦ੍ਯਾ ਚੋ ਨਿਕਲੇ ਨਵੇ ' ਚੁਚੁਈਆਂ ' ਨੂ ਡਰਾਉਂਦਾ ! ਔਹ ਇਸ ਗਲ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸ਼ਾਨ ਮੇਹ੍ਸੁਸ ਕਰਦਾ ਸੀ ਕੀ ਸਾਰੇ ਉਉਹ ਇਥੋ ਦਾ ਮਲਿਕ ਹੈ !ਉਸ ਜੰਗਲ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪੰਛੀ ਉਸਤੋ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਸੀ ਅਤ ਔਸ੍ਤੋ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਣ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਤਰਕੀਬ ਸੋਚਦੇ ਰਹੰਦੇ ! ਬੋਹੜ ਤੇ ਰਹਿੰਦੀ ਚਿੜੀ ਨੂ ਵੀ ਬਾਕਿਯਾਂ ਵਾਂਗ ਆਪਣੇ ਅਨ੍ਦਿਯਾ ਦੀ ਚਿੰਤਾ ਲਾਗੀ ਰਹਿੰਦੀ ਕੀ ਕਲਾ ਸਪ ਉਹਨਾ ਨੂ ਨਾ ਖਾ ਜਾਵੇ ! ਜਦੋਂ ਚਿੜੀ ਦੇ ਚੂਚੇ ਅਨ੍ਦੇਯਾ ਤੋ ਬਾਹਰ ਆ ਗਏ ਤਾ ਚਿੜੀ ਦੀ ਚਿੰਤਾ ਹੋਰ ਵਧ ਗਈ ਅਤ ਉਹ ਹਰ ਵੇਲੇ ਆਪਣੇ ਚੁਚਿਯਾਂ ਨੂ ਸ੍ਮ੍ਝੋਉਂਦੀ ਕੀ ਜਦੋ ਮੇਂ ਘਰ ਨਾ ਹੋੰਵਾ ਤਾਂ ਉਹ ਉੜ੍ਹਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਨਾ ਕਰਨ ਅਤੇ ਕਾਲੇ ਸਪ ਤੋ ਬਚ ਕੇ ਰਹਨ ਪਰ ਚੂਚੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ਰਾਰਤੀ ਸੀ ! ਇਕ ਦਿਨ ਚਿੜੀ ਦਾਨਾ ਲੇਨ ਗਈ ਤਾਂ ਬੱਚੇ ਉਡਣ ਦਿਯਾਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਕਰਨ ਲਾਗੇ ਤੇ ਦਰਖਤ ਤੋ ਥਲੇ ਆ ਗਏ ! ਉਹਨਾ ਨੂ ਓਥੇ ਕਿਸੇ ਦੇ ਲਮ੍ਹੇ-ਲਮੇ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ ਸੁਨਾਯੀ ਦਿਤੀ ! ਜਦੋ ਓਹਨਾ ਨੇ ਦੇਖਿਯਾ ਤਾਂ ਉਹ ਕਲਾ ਸਪ ਸੀ ! ਉਹ ਇਕ ਵਾਰੀ ਤਾ ਡਰ ਗਏ ਤੇ ਆਪਨੇ ਘੋਸਲੇ ਵਲ ਮੁੜ ਪਾਏ ! ਤਾਂ ਸਪ ਨੇ ਘੜੀ ਤਰਸਦੀ ਹੋਯੀ ਅਵਾਜ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਕੀ ਦਰਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀ ਮੇਰੀ ਮਦਦ ਕਰੋ !ਪਰ ਚੂਚੇ ਇਨ੍ਹਾ ਡਰ ਚੁਕੇ ਸੀ ਕੀ ਰੁਕੇ ਨਹੀ ! ਕਾਲੇ ਸਪ ਨੇ ਦੁਬਾਰਾ ਫੇਰ ਅਵਾਜ ਮਾਰੀ ਕੀ ਮੇਂ ਤੁਹਾਨੂ ਕੁਛ ਨਹੀ ਕਹਾਂਗਾ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਮੇਰੀ ਮਦਦ ਕਰੋ ੧ ਦੁਬਾਰਾ ਆਵਾਜ ਸੁਣਨ ਤੋ ਬਾਦ ਚੁਚਿਯਾਂ ਦਾ ਡਰ ਥੋੜਾ ਘਟ ਗਿਆ ! ਉਹ ਉਸ ਕੋਲ ਆਏ ਤੇ ਭੋਲੀ ਜੀ ਆਵਾਜ ਵਿਚ ਪੁਚਿਯਾ ਕੀ ਇਹ ਕਾਲੇ ਸਪ ਤੁਹਾਨੂ ਕੀ ਹੋਯਾ ਹੈ ! ਕਾਲੇ ਸਪ ਨੇ ਜਵਾਬ ਦਿਤਾ ਮੇਨੂ ਝਾੜਿਯਾ ਵਿਚੋਂ ਕੰਡੇ ਚੁਭ ਗਏ ਹਨ ਅਤੇ ਇਨਾ ਵਿਚੋਂ ਖੂਨ ਵੀ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ! ਇਹ ਗਲ ਸੁਣਕੇ ਚੁਚਿਯਾਂ ਨੂ ਸਪ ਤੇ ਬਹੁਤ ਤਰਸ ਆਯਾ ਤੇ ਉਹਨਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਅਸੀਂ ਕੰਡੇ ਕਢ ਦਈਏ! ਸਪ ਨੇ ਕਿਹਾ ਤੁਹਾਡਾ ਬਹੁਤ ਭਲਾ ਹੋਏਗਾ ਜੇ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੀ ਕੰਡੇ ਕਦਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਦਦ ਕਰੋਗੇ !ਚੂਚੇ ਕੰਡੇ ਕਢ ਕੇ ਆਪਣੀ ਮਾ ਦੇ ਆਔਨ ਤੋ ਪਹਲਾ ਹੀ ਦਰਖਤ ਤੇ ਚਲੇ ਗਏ ੧ ਉਹਨਾ ਦੇ ਜਾਣ ਤੋ ਬਾਅਦ ਸਪ ਨੂ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋਯਾ ਕੀ ਇਹ ਉਹ ਹੀ ਚੂਚੇ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾ ਦੀ ਉਹ ਜਾਨ ਲੈਣ ਬਾਰੇ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ ਅਤ ਅਜੇ ਉਹਨਾ ਨੇ ਹੀ ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਬਚਾਯੀ ! ਉਸਨੁ ਆਪਣੀ ਬੇਰਹਿਮੀ ਤੇ ਬਹੁਤ ਪਛਤਾਵਾ ਹੋਯਿਆ ! ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਪ ਬਦਲ ਗਿਆ ! ਹੁਣ ਸਪ ਵੀ ਸਾਰਿਯਾਂ ਦਾ ਸਾਥੀ ਸੀ !ਕੁਛ ਦਿਨਾ ਬਾਅਦ ਉਥੇ ਦੋ ਲਾਕਾਧਾਰੇ ਆਏ ਅਤ ਉਸ ਬੋਹੜ ਨੂ ਕੱਟਣ ਬਾਰੇ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨ ਲਾਗੇ ! ਇਹ ਸਭ ਦੇਖ ਕੇ ਚਿੜਿਯਾੰ ਤੇ ਚੂਚੇ ਡਰ ਗਏ ੧ ਹੁਣ ਜਦੋਂ ਸਪ ਉਹਨਾ ਦਾ ਸਾਥੀ ਸੀ , ਤਾਂ ਉਸਤੋਂ ਵੀ ਇਹ ਸਭ ਬਰਦਾਸ਼ ਨਹੀ ਹੋਯਿਆ !ਜਦੋਂ ਲਾਕਾਧਾਰੇ ਦਰਖਤ ਵਾਲ ਉਸਨੁ ਕੱਟਣ ਲਈ ਵਾਧੇ ਤਾਂ ਸਪ ਨੇ ਇਕ ਲਾਕਾਧਾਰੇ ਦੇ ਦੰਗ ਮਾਰ ਦਿਤੀ ! ਉਹ ਉਠੋ ਚਲੇ ਗਏ !ਸਾਰੇ ਪੰਚਿਯਾਂ ਨੇ ਸਪ ਦਾ ਧਨਵਾਦ ਕੀਤਾ !ਹੁਣ ਹਾਲਤ ਪਹਿਲਾ ਵਾਂਗ ਨਹੀਂ ਰਹੇ ! ਸਮਾਂ ਆਔਨ ਤੇ ਹਰ ਕੋਈ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ੧ਹੁਨ ਸਾਰੇ ਸਮਝ ਚੁਕੇ ਸੀ ਕੀ ਪਿਯਾਰ ਅਤੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਦੁਸ਼ਮਨ ਵੀ ਦੋਸਤ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਨੇ ਤੇ ਹਰ ਸਾਮਿਮ੍ਸ੍ਯਾ ਨੂ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਸੁਲਝਾਯਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ

रिअलिटी की वास्तविकता

रविवार का दिन मतलब पूरी मौज -मस्ती कोई जल्दबाजी नहीं ! इस रविवार को भी हम सपरिवार नाश्ता कर रहे थे की पड़ोस वाले शर्मा अंकल अखबार मांगने आये ! वे बताने लगे की बिटिया के लिए रिश्ता देखना है कंही कोई बात जम नहीं रही तो सोचा अखबार का सहारा लिया जाये ! पढाई - लिखाई भी काफी हो चुकी है अब अच्छा सा वर तलाश इस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाये ! पापा भी उनकी हाँ में हाँ मिलने लगे की सही कह रहे हो आप सबसे बड़ी चिंता होती है ! पापा ने भी सरकार की तरह आश्वासन दे दिया की कोई लड़का हमें दिखा तो जरुर बताएँगे ! बहुत परेशान थे बेचारे क्योंकि लड़की संव्यवर की जिद पर अडी हुई है ! वे तो अखबार लेकर चले गए पर में सोचने लगी की प्रस्ताव बुरा नहीं है १ राष्ट्रीय चैनल पर न सही लोकल केबल पर भी दिखाया तब भी शादी का खर्चा आराम से निकल जायेगा और पब्लिसिटी मिलेगी वो अलग पर हमे किसी के निजी मामले में दखल देने का कोई हक नहीं है ! पर बुराई भी क्या है कभी माँ सीता का स्वंयवर था , तो अब राखी का कोई बड़ी बात नहीं ये तो आने वाले समय की तस्वीर है जिस प्रकार लड़कियों की संख्या रोज कम होती जा रही है ! आने वाले समय में संव्य्वर ही रचाए जायेंगे ! पर अगर राहुल महाजन जैसे लोगों को संव्य्वर की जरूरत पढ़ गयी तब क्या होगा ! अभी सोच में डूबी ही रही थी की मम्मी ने महाभारत लगा दी और दर्शय था हस्तिनापुर में बेठा संजय ' धृतराष्ट्र ' को कुरुक्षेत्र के युद्घ का लाइव दर्शय सुना रहा था वो भी केमरे, मंहगी लाइट्स, और मेक -अप के बिना में झट से बोल उठी इसे कहते हैं रियलिटी ! जिस प्रकार आज की मिसाइल , दवाइयाँ , कितना कुछ पुरातन युग की दें है उनमें रियलिटी शो का नाम भी जुड़ गया ! अंतर सिर्फ इतना रह गया की पोराणिक युग से कलयुग में आते -आते वास्तविकता गूम होती सी प्रतीत होती है ! दिन -प्रतिदिन संख्या में बढ़ते चैनलों व टी आर पी की होड़ ने सबको अँधा बना दिया है ! न परोसने वाला सोच -विचार कर रहा है न खाने वाला बस जो बिकता है वही दिखता है के जुमले को सब सिद्ध करने में लगे हैं ! कोई अपनी निजी जिन्दगी को परदे पर ला दिल का दुःख कुछ कम करना चाहता है ! रिश्तों को सार्वजनिक कर अपने अतरंग रिश्तों का प्रदर्शन कर कोन सा भार कम होता है अपितु घर तो जरुर टूटते हैं ! कंही सर्वश्रेष्ट दुल्हन तो कंही दुल्हों की तलाश है ! इन सभी महान लोगों को मेरा कोटि -कोटि प्रणाम है ! धन्य है वे माता -पिता जो अपने बच्चों को इन कार्यकमों में भाग लेने या कहे शोभा बढ़ने के लिए भेजते हैं ! क्या हुआ अगर कोई बच्चा जज की बातें सुनकर बेहोश हो गया या किसी को अस्पताल में भर्ती कराना पढा ! ये हमारे समाज का एक आधा - अधुरा चित्र है ! कहते हैं ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ! अगर कोई खायेगा ही नहीं तो कोई बनाएगा ही क्यों जब खरीददार ही नहीं तो बेचने किस के लिए ! ये तो बहुत बड़ी बातें है चलो में भी रिश्ता ढूँढने में उनकी मदद करती हूँ ! बचपन से सुना है बेटियाँ सबकी सांझी होती है !

Monday, November 9, 2009

किसका दोष

फिलहाल मैं पटियाला शहर में पढाई कर रही हूँ ! एक दिन मेरी सहेलियों ने तय किया की इस शहर के प्रसिद्ध बाग़ बारादरी चल कर कुछ मौज -मस्ती की जाए ! यह जगह सचमुच खुबसुरत और सुकून देने वाली थी ! कोई चाहे तो कुदरत के रंगों में रंग कर शान्ति हासिल कर सकता है जो शहर की आपधापी में हमसे दूर हो गई है ! बारादरी को पुरा घूम कर हम सब एक जगह बेठ कर हँसी खेल कर रहे थे ! अचानक हमारा ध्यान फटे -पुराने कपड़े पहने एक लड़की की और गया ! जिसकी उम्र कोई सात -आठ साल रही होगी ! वह बहुत देर से हमे टकटकी लगाये देख रही थी ! कुछ बाद वह तरफ आई और पेसे मांगने लगी! आमतौर पर ऐसे समय में हमारे भीतर का मध्यमवर्ग जाग जाता है और या तो हम उसे कुछ सिक्के देकर पुण्य कमा लेते हैं या फिर उसे हिराक्त के साथ डपटते हुए भगा देते हैं ! कभी- कभी उसे मेहनत करने की सलाह दी जाती है ! ऐसे मौकों पर मुझे कभी समझ नहीं आता की क्या करना चाहिए! में कई बार पैसे दे देती हूँ या ऊहापोह में खड़ी रह जाती हूँ और फिर उस स्तिथि से निकलने के लिए थोडा हट कर खडी हो जाती हूँ ! थोडा हट कर खडा होना एक भाषा बन चुकी है जिसका मतलब होता है यंहा कुछ नहीं है ! मांगने वाला इस भाषा को समझ जाते जाते है और किसी दुसरे के पास किस्मत आजमाते चले जाते है ! लेकिन उस दिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ! इसकी एक वजह शायद यह थी की वह अकेली थी और देर से हम लोगों को देख रही थी ! मुझे लगा की में उसकी नजरों में बंध सी गयी हूँ ! में उससे बातें करती चली गयी जिसे देख मेरी सहेलियां मुस्कुरा दी ! वह किसी तोत्ते की तरह जवाब दे रही थी , जैसे ये सरे सवाल उससे कोई इसी जगह पहले भी पुच चूका है ! उसके जवाबों के तोतेपन ने मेरे अंदर यह एहसास जगा दिया था की उसे मेरे सवालों का दायरा पता है और अगर कुछ पैसे मिल जाये तो किसी खाते -पीते घर की लड़की ऐसे सहनुभूति वाले सवालों का जवाब देने में क्या हर्ज है ! शायद इस एहसास से निकलने के लिए सहसा में पूछ बेठी की क्या तुम्हारा कोई सपना है ! कुछ देर सोचने के बाद उसने कहा हाँ दीदी - में पढना चाहती हूँ , और आपकी तरह कुछ बनना चाहती हूँ ताकि मुझे और मेरे परिवार को बड़े आराम से पेट - भर खाना मिले ! उसके छोटे से सपने के लिए मेरे पास कोई दिलासा या सलाह के शब्द नहीं थे ! हमने उसे अपने पास से कुछ खाना दिया ! इस बारादरी से वापिस अपने हॉस्टल की और चल पड़े ! रास्ते भर में उसके बारे में सोचती रही ! सपने हमारे भी हैं डॉक्टर, इंजिनियर , अफसर बनने के ! हममे से बहुतों के सपने पुरे हो जाये जिनके पूरे नहीं होंगे , उनकी जिन्दगी के सुख आराम में बहुत जादा फर्क नहीं पड़ेगा ! उसके ये कहने पर में नहीं चौकी की वह पढना चाहती है ! मैं उम्मीद कर रही थी की वह शायद यह कहे ! मगर उसके यह कहने से की वह आराम से पेट भर खाना चाहती है , में विचलित हो गयी ! हम सभी अपने -अपने सपने के पीछे भागते हैं इस बात से बेखबर होकर की आसपास कुछ अलग किस्म के सपने तैर रहे हैं ! जिन्हें व्यवस्था आसानी से पूरा होने नहीं देगी ! दोष किसका है ? उसके माता -पिता , जिन्होंने उसे सड़क पर भीख मांगने के लिए छोडा या इस गरीबी का और गरीबी किसका दोष है ? अब भी ,मुझे कभी मंदिरों के बहर खड़े बच्चे दिखाई देते हैं तो मुझे वह लड़की याद आ जाती है ! इन बच्चों को दूसरो को देख लम्बी दुआएं देना सिखाया जाता है ! यह कैसा समाज है ! जंहा गरीब और बेबस लगातार पैसे वालों को दुआएं देते रहते हैं ! लेकिन कोई पैसे वाला इन्हें दुआएं देता नजर नहीं आया !

Friday, November 6, 2009

सुनहरी परी

रूपनगर एक छोटा सा राज्य था ! यह राज्य पहाडों के बीच में बसा हुआ था ! यंहा रहने वाले लोग बहुत ही सीधे -साधे व भोले थे ! सब लोग मिल जुल कर कम करते व वक्त पड़ने पर एक - दुसरे की मदद करते ! वीरकुमार इस राज्य का राजा था ! वह अपनी प्रजा से बहुत प्यार करता था ! प्रजा भी उसे बहुत सम्मान देती थी ! पड़ोसी राज्य उनकी खुशहाली देख जलते थे ! राजा बहुत ही बहादुर था अत : वे कभी उसे युद्घ के लिए चुनौती नही देते थे ! उसी राज्य में एक बहुत विशाल नदी बहती थी ! उसके आसपास का वातावरण बहुत ही मनमोहक था ! वंहा रहने वाले लोग उस नदी के पानी का प्रयोग अपने खेतो में पानी देने के लिए करता थे! उसी राज्य में एक लड़की रहती थी जिसका नाम दयावती था ! दयावती अपने नाम के अनुसार दया की मूर्ति थी ! वह बहुत छोटी थी जब उसके माता-पिता उसे अकेले छोड़कर चले गए ! पड़ोस में रहने वाली चाची उसे खाना देती थी ! वह उसी नदी के पास बैठकर घंटो अपने माता -पिता की याद में रोती रहती थी ! वह घर का सारा काम करती फ़िर भी उसकी चाची कभी प्यार के दो बोल उसके साथ न बोलती ! एक दिन अचानक जब वह नदी के रास्ते से गुजर रही थी , एक बुदिया को कराहते हुए सुना ! वह दर्द से तडप रही थी ! उसके पाँव पर चोट लगी थी और खून बह रहा था ! वह उन्हें घर ले जाना चाहती थी पर चाची के ड़र से नहीं ले जा सकी ! थोडी देर बाद वह घर चली गयी पर घर जाकर भी वह उनके बारें में सोचती रही ! अगली शाम फिर वह बुढिया मिली , अब वह ठीक थी ! इस प्रकार उन दोनों की दोस्ती हो गयी ! अब दयावती उसे दादी कहकर बुलाने लगी थी ! दयावती उससे अपने दिल की हर बात कर लेती ! वह सब कुछ उन्हें बताती ! दादी उसे बहुत प्यार करने लगी थी ! वह रोज उसे खाने की नयी -नयी चीजें देती व प्यार करती !एक दिन दयावती जंगल से आ रही थी तो उसने देख दादी वंहा नहीं है ! वह न तो उनका घर जानती थी न ही नाम ! ४-५ दिन बीत जाने पर भी जब वह नहीं आई तो उसे ड़र लगने लगा और वह रोने लगी ! कुछ देर बाद वंहा गर्जना हुई और देखते ही देखते दादी एक बहुत सुंदर ' सुनहरी परी में बदल गयी ! दयावती को कुछ समझ नहीं आ रहा था ! सुनहरी परी ने उसे प्यार किया और खा की मुझे धरती पर रहने का दंड मिला था और अब वह ख़तम हो गया है ! दयावती रोने लगी तब सुनहरी परी ने कहा की तुम मेरा एक पंख ले लो जब भी कोई मुश्किल आये इसे देखकर मुझे याद कर लेना में तुमसे मिलने चली आयुंगी ! अब तुम्हारे साथ सब अच्छा होगा यह मेरा वायदा है ! हमेशा खुश रहना कहकर वह आसमान में उड़ गयी ! दयावती अब फिर पहले की तरह उदास हो गयी लेकिन अब उसकी चाची उसे बहुत प्यार करती थी ! कुछ दिन बाद बादलों की गर्जना व आसमानी बिजली से जब पूरा राज्य काँप रहा था , भरी बारिश से जल - थल एक हुआ पडा था की राज्य में खबर फ़ैल गयी की नदी का बांध टूट गया है ! कितने लोग बेघर हो गए ! बच्चे रो रहे थे ! किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था ! दयावती के चाचा भी कही नहीं मिल रहे थे अचानक दयावती को उस पंख की याद ई ! वह दिल से परी को पुकारने लगी ! कुछ देर बाद रौशनी हुई और परी सामने थी ! उसने पूरी बात परी को बताई ! परी के लिए ये काम तो चुटकियाँ बजाने के सामान था ! कुछ देर बाद बांध बन कर तैयार हो गया ! यह बात रजा के कानो तक भी पहुँच गयी ! सारा राज्य दयावती की तारीफ कर रहा था और परी ने राजा के सामने दयावती की तारीफ की और सब बता दिया ! राजा दयावती की समझदारी पर खुश था की उसके कारन पूरा देश इतने बड़े संकट से बच गया ! रजा ने अपने बेटे की शादी दयावती से तय कर दी ! अब वह रानी बनने वाली थी ! परी ने उसे बहुत तोहफे व प्यार दिया और फिर मिलने का वायदा कर चली गयी !

Thursday, November 5, 2009

सबक

राजू एक गरीब कुम्हार का लड़का था ! वह अपने चारों भाई - बहन में सबसे बडा था ! उसके पिता सारा दिन काम करने के बाद भी मुश्किल से ही तीन वक़्त का खाना जुटा पाते थे ! इसके अलावा बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में कभी -कभी वह खुद को असमर्थ पाते थे ! राजू बहुत ही समझदार व पढने में होशियार था ! अपने ही गाँव के विधालय में वह हर साल प्रथम आता ! उसी विधालय में कुछ बहुत ही अमीर घरों के बच्चे भी पदते थे ! पढाई में नालायक होने के कारण वे रोज अध्यापकों की डांट खाते ! वे सब राजू से बहुत चिढ़ते थे ! कभी उसके कपडों तो कभी गरीबी का मजाक बनाते ! राजू कभी ये बात अपने माता -पिता सा नहीं कहता था ! विधालय से आने के बाद अपने पिताजी के साथ काम में पूरी मदद करता ताकि उनकी कुछ मदद हो सके ! अब उसके छोटे भाई - बहन ने भी पढना शुरू कर दिया था ! राजू की आठवी की परीक्षा ख़त्म हो गयी थी ! उसे अब अपना आगे पढना नामुमकिन सा नजर आ रहा था क्योंकि इसके लिए शहर जाना पड़ता था ! उसके गरीब माँ -बाप के पास इतना पैसा नहीं था की उसे बहर भेज सके ! इस बार जब नतीजा आया तो राजू पुरे जिले की परीक्षा में मेरीट लेकर आया ! राजू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ! उसे सरकार की तरफ से आगे पढने के लिए वजीफा मिल गया ! उसके अध्यापकों ने भी राजू के माता - पिता को बहुत समझाया की आपका बच्चा बहुत लायक है और ये एक सुनहरी मौका इसे ऐसे जाने मत दीजिये ! राजू के माता - पिता मान गए ! अब वह रोज पढने के लिए शहर जाने लगा ! रोज पैदल आने - जाने के बावजूद व पिता के काम में उनकी मदद करता ! वंहा भी वे अमीर बच्चे उसे तंग करते ! धीरे - धीरे वह उनकी संगत में आने लगा ! घर से झूठा बहाना बनाकर कापी - किताबों के बहाने पैसा मांगने लगा ! उसके माता - पिता भी इस कारण परेशान रहने लगे !शरुआत में तो उन्होंने कुछ नहीं कहा पर अब उनका बोझ बदने लग गया था ! राजू न वंहा कक्षाएं लगाता और न घर आकार कोई काम करता ! शहर में उन लड़कों के साथ घूमता फिरता रहता ! एक दिन शाम को जब वह घर आया तो देखा की उसकी बहन रो रही थी ! घर पर खाना भी नहीं बना था ! उसने माँ से पूछा तो उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया ! वह और घबरा गया ! तभी उसकी नजर जा रहे डॉक्टर साहब पर पढ़ी ! वह भाग कर उनके पास गया की क्या हुआ तब उन्होंने बताया की वे आज अपना खून बेच कर आये हैं ! पहले ही कमजोर होने के कारण उनकी तबियत खराब हो गयी ! वे नहीं चाहते थे की तुम्हारी पढाई में कोई रुकावट आये ! उसकी आँखों से आंसू बहने लगे ! अपने किये पर उसे आज बहुत पछतावा हो रहा था ! वह जाकर अपने पिता के पांवों में गिर गया और उन्हें सब कुछ सच बता दिया ! अपनी गलती पर वह बहुत शर्मिंदा था ! दसवीं की परीक्षा में उसने बहुत मेहनत की और फिर जिले में नाम रोशन किया ! अब वह और लगन से पढने लगा व साथ ही बच्चों को भी पढ़ने लगा ! उसकी एक गलती ने उसे जीवन का सबसे बडा सबक सिखा दिया था !

Tuesday, October 20, 2009

याद

कभी दिल को रुला कर तड़पा कर जाती हैं ,
रेगिस्तान में तपती उस गर्म रेत की तरह ,
कभी बर्फ की तरह शरीर को अंदर तक ठंडक पहुंचाती ...................
तेरी याद
जो छुए -अनछुए पलों का एहसास कराती ,
तेरी याद को लगाकर सीने से सितम दुनिया के सहते हैं ,
आँखें रोती है , तेरी जुदाई में लेकिन लब कुछ न कहते हैं ,
तेरी यादों के झरोखों से निकलना हम न चाहेंगे ,
गाहे -बगाहे दोस्तों इन्ही लम्हों के सहारे जिन्दगी बिताएंगे !

जन्मी का धर्म

आज भी राखी बहुत उदास थी ! मोहल्ले के बच्चों को पार्क में खेलता देख यही सोच रही थी की ..... शायद उसकी औलाद होती तो वह भी इतनी ही बडी होती और ऐसे ही खेल रही होती ! लेकिन किस्मत को ये मंजूर नही था ! शादी के इतने सालों बाद भी वह संतान सुख से वंचित थी ! संदीप के घर आते ही वह कहने लगी की मैंने सुना है की शहर के बाहर वाले इलाके में जो मन्दिर है वंहा हर मुराद पूरी होती है ! संदीप के कहने पर की फ़िर कभी वंहा चलेंगे वह झट से तैयार हो गई की क्यों न आज ही चला जाए ! संदीप उसकी तड़प को समझता था इसलिए न - नुकुर करने के बाद वह जाने के लिए तैयार हो गया ! वह जानता था की राखी जाए बिना नही मानेगी ! मन्दिर जाकर फ़िर वही मन्नते - मुरादों का किस्सा शुरू हो गया की शायद इस बार भगवान् उसकी सुन ले ! मन्दिर के बाहर निकलने पर उन्हें एक बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी ! राखी भागकर वंहा गई की शायद उसकी प्राथना भगवान् ने सुन ली है ! उसने झट से बच्ची को उठा सिने से लगा लिया ! संदीप भी उसे प्यार करने लगा की सहसा उसकी नजर बच्चे के गले में पहनाये हुए लोकेट पर पड़ी ! उसने राखी के हाथ से बच्ची को लेकर जमीन पर रख दिया की वह हमारे धर्म की नही है ! राखी बहुत रोई , पर तब तक संदीप गाड़ी में बेठ चुका था ! वह बच्ची अभी भी रोते हुए अपने धर्म के लोगों का इंतजार कर रही थी !

Saturday, September 5, 2009

अनजाने रिश्ते

ना खोने का , ना पाने का ...
जब कुछ पास ही नहीं तो डर कैसा ...
न जुदाई का .न मिलन का
कोई है ही नही तो सितम कैसा ...
इस कशमश में जिए जायेंगे ....
है इंतज़ार ,
किसी के आने का ...............
इसी उम्मीद में ख़ुद को जलाएंगे ....
पर न मेरे जले का होगा कोई असर ......
जब कोई असर ही नहीं तो दर्द कैसा ......
फ़िर भी बना रहेगा एक अनजाना रिश्ता ,
जिसका नाम ही नहीं वो रिश्ता कैसा ,
कुछ कहे -अनकहे पल । वो मीठी सी चुभन
एक चुभन ही तो है ,अब इंतज़ार कैसा

Friday, September 4, 2009

प्राथना

बाबा फसल पकने वाली है ! कितना मजा आयेगा न ? बाबा आप हमें नए कपडे लाकर दोगे न ! तभी मुन्नी बोली , और मुझे नयी गुडिया भी चाहिए ! बाबा मुस्कुराने लगे - की हाँ भगवान् की कृपा रही तो सब कुछ आ जायेगा ! बस तुम प्राथना करो की एक हलकी सी फुहार आ जाये ताकि खडी फसल पूरी तरह तैयार पक होकर जाये ! राजू तुंरत बोला ,'में प्राथना करता हूँ वह मेरी सुनता है "! माँ की आवाज आई , चलो अब सो जाओ , बहुत देर हो गयी है ! मुन्नी क्या अब हमें अच्छे - अच्छे पकवान भी मिलेंगे ! पता नहीं और दोनों भाई - बहन बाते करते सो गए ! सुबह का सूरज कुछ और ही लेकर आया था ! फसले पानी में तैर रही थी ! पानी , फसलों के साथ - साथ सपनो को भी ले गया था ! राजू अब भी पूछ रहा था की भगवान् को और क्या कहना है !

Friday, August 21, 2009

सुनहरी चिठ्ठी

अलमारी में कपड़े लगाते हुए मेरा हाथ अचानक रुक गया ! रेडियो पर पंकज उदास का गाना चल रहा था , वही मेरा पसंदीदा , चिट्ठी आई है , आई है चिठ्ठी !' हाय : ये कागज के टुकड़े जिसके लिए सारा ध्यान डाकिये की तरफ रहता था !वह किसी दूत से कम नही था , चाहे नौकरी , शादी , मरना ,जन्म सबका समाचार था उसके पास ! चिट्ठी में लिखा एक -एक अक्षर दिल का हाल तो ब्यान करता ही था लिखने वाले का चेहरा भी चिट्ठी में उकेर देता ! वो लंबा इंतज़ार पोस्ट करने की भीड़ !ऐसा नही की इन्बोक्स में गए की आ गया जवाब , वाह रे टेक्नोलॉजी अब खतम हुआ इंतज़ार ! इसमे कोई दोराय नहीं है की वे जरुरी संदेश जिनमे विलम्ब करना उचित नही था , आज पलक झपकते ही पहुँच जाते है , अपनी मंजिल पर , वो आत्मीयता, जुडाव , स्नेह धीरे - धीरे खतम हो रहे हैं !
में भी सोचते - सोचते यादों के सफर में चली गई ! यद् आने लगा वह बचपन में पिताजी की बॉर्डर से आती चिट्ठी और माँ का दिल घबराना , पड़ने से पहले भगवन को याद करना , खैरियत की खबर को देख कर कभी रोना तो कभी मुस्कुराना , बार -बार पड़ते रहना , उसे अपने दिल से लगाना , हर समय उनकी लम्बी दुआओं की कामना करना ! किसी अमूल्य अनमोल खजाना उनके अपने पास संजो के रखना आज भी उनका ये अनमोल खजाना आज भी उनके पास वेसे ही सुरक्षित है ! कभी कबूतरों , कभी डाकिये अब ये नेटवर्क कनेक्शन ,सन्देश भेजने का सरल और तुरंत तरीका है ! चिट्ठी जब देर से पहुँचती या एक जेसे नाम होने के कर्ण गलत घर में जाती तो वह हास्यपद स्थिति का अलग ही मजा होता ! शादी के बाद बेटी की पहली चिठ्ठी जिसका माँ को बेसब्री से इंतज़ार होता , जिसमे वह ससुराल का पूरा हाल लिखती ! वह इंतज़ार के पल , जो गर्मी के मौसम में पहली बारिश सा आनंद भर देते थे ! लैटर बॉक्स झाँकने पर कुछ मिला ! मेरी बेटी का कम्पनी में सिलेक्शन हो गया था उसका काल लैटर था ! उसका दिन -रात मेहनत करता चेहरा आँखों के सामने आना लगा ! चिट्ठी की ख़ुशी में बय्याँ नहीं कर सकती थी ! वह अपने ख्वाबों के आसमान में मंजिल को छूने के लिए तैयार थी ! मेरे दिल से निकल पडा की मेरी जिन्दगी की चिट्ठियों में इ खुशियाँ लेकर आने वाली सुनहरी चिट्ठी तेरा स्वागत है ! शायद आज भी तेरा असितत्व और गौरव कायम है , तेरी जगह कोई नहीं ले पाया है !

जुदाई का एहसास

तेरी आवाज सुनकर जो मिली ख़ुशी ,
उसका एहसास नहीं कर सकते .......
गम तुझे ज्यादा है ,हमारी जुदाई का .....
पर ब्यान नहीं कर सकते ......
तू दूर जाकर हमसे हमे भूलना है चाहता ,
पर ..........................
ये यादें तेरा साथ नहीं छोड़ती , जितना जाते हैं
दूर ये उतनी ही पास चली आती हैं .......
तेरी साँसे भी दिल का हाल बया कर जाती है ,
आवाज तेरी उन्ही यादों के झरोंखो में लाकर ,
ठहरा देती है , जहाँ से निकलना तो है नामुमकीन ,
और रहना मेरे गम का सबब बनता जा रहा है .........
जितना चाहते हैं भूलना , तू हमें उतना ही याद आ रहा है
जानते हुए की कभी ..........
मिल न पाएंगे ,
तेरी नज़रों को जाम हम कब अपनी नज़रों के पिलायंगे ,
फिर भी ये बाजी खेलना चाहते हैं ,
सब जानकर भी हारना चाहते हैं .....क्योंकि
मजबूर हैं , तुझसे दूर हैं ......
किनारा एक जितना दुसरे किनारे से हैं ,
न वो किनारे कभी मिल पाएंगे ....ऐसे ही हम
तेरी यादों के सहारे जिन्दगी बिताना चाहेंगे !

Thursday, August 13, 2009

बाढ़ से फायदा

अरे ,निधि बेटा आ गई ! टीवी पर देखा तुमने जो बाढ़ आई है , उससे कितना नुक्सान हुआ है ! कितने लोग बेघर हो गए हैं ! बच्चे भूख से मर रहे हैं ! हाँ माँ में जानती हूँ ! हमारे यंहा भी कुछ लोग विद्यार्थियों को शिविर लगाने व स्वास्थय सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित करने आए थे ! बहुत दुःख होता है की हर साल न जाने कितने बेगुनाह ,बेमौत मारे जाते हैं !में भी उनके लिए कुछ करना चाहती हूँ ! सरकार की सेवाएं उन तक पहुँच ही नही पाती ! हाँ ,वो तो है चलो इससे हमारा तो फायदा ही है ! मंत्री जी का फोन आया था , तुम्हारे पापा से उनकी अच्छी जान -पहचान है ! वे कह रहे थे बाकि जगह राहत सामग्री पहुंचाने का अनुबंध तुम्हारे पापा को ही मिला है ! तुम स्कूटर के लिए कह रही थी न अब तो कार ले लेना ! माँ की बात पूरी होने तक वह कमरे में जाकर अपना समान बाँध चुकी थी !

नजारे

कई दिल को लुभाने ,तो कंही दहलाने वाले नज़ारे थे ,
नजारों का क्या है ,नजारे तो नजारे थे !
कंही प्रक्रति की मनमोहक छटा ,तो कंही बाढ़ से पीड़ित लोग थे
कंही मासूम मुस्कान ....................तो कंही ........
भूख से बिलबिलाता बच्चा था !
नजारों का क्या है ,नज़ारे तो नज़ारे थे ......
कंही सात फेरे लेता नवविवाहित जोड़ा ....
कंही पति का शोक मनाती ....या दहेज़ की
आग में झुलसी दुल्हन ......
किसी की आँख में खुशी के मोत्ती .....
कंही दर्द की पुकार है ..........
कोई लड़ता हक़ की लड़ाई ......
तो कोई बेबस और लाचार है .....
नज़ारे तो नजारे ...कंही प्यारे ,
कंही अन्धकार है !

Saturday, July 25, 2009

छिपा हुआ चाँद

आज चाँद पर हमें , बहुत प्यार है आया
क्योंकि ....चाँद में उनका दीदार है आया
जब उस चाँद को देखने हम छत पर आये ,
तो देखा की चाँद को भी है बादलों ने छुपाया ..........
एक तो उनकी याद में , पहले ही उदास थे हम ,
ऊपर से चाँद ने भी कर दिए , हम पर कितने सितम ....
की एक चाँद को देखने , चाँद के पास आये थे ...
सोचा की तेरी यादों के खजाने को लेंगे बाँट ........
लेकिन ये चाँद तो खुद अपने चकोर से मिलने को रहा ,था तरस .....................
जिसे बादलों ने खुद में छुपाया था।,
तब चाँद ने भी हवा को अपना संदेश सुनाया था ।
की जाकर छु ले मेरे दोस्त को तू सरहद के पार
और कह दे उसे की तेरा दोस्त कर रहा .........है तेरा इंतज़ार !

Friday, July 17, 2009

कैसा होगा इनका भविष्य


अपनी हैरानी में छिपा नही पाई , जब उस सात -आठ साल की बच्ची ने मुझे बताया की उसका सपना है की उसे पेट भर खाना खाने को मिले ! इस तरह की घटनाएँ यह सोचने पर मजबूर करती है की आज भी भारत में न जाने कितने बच्चे ऐसे हैं , जो भुखमरी और अशिक्षा के शिकार हैं ! ये बच्चे भारत का भविष्य हैं और निश्चित तौर पर स्वयं इनका भविष्य उज्जवल नही है ! उनके भविष्य को सवारने वाला कोई नही है !

पन्द्र्वी लोकसभा का चुनाव , और बजट कुछ दिन पहले ही सब ख़त्म हुआ है ! सभी राजनितिक दलों और नेताओं ने बडी-बडी बातें की ,पर किसी का ध्यान ऐसे बच्चों और उनकी जरूरतों की और नही गया ! किसी ने इस तरह के मुद्दे को एक बार भी अपने भाषण में शामिल नही किया ! जगह -जगह महिलाएं छोटे -छोटे दुधमुहे बच्चों को गोद में लेकर भीख मांगती हुई आसानी से नजर आ जाती हैं ! कभी इन बच्चों पर दया आती है , तो कभी घृणा भी होती है की अगर इन्हे अच्छी परवरिश नही दे सकते थे , फिर इन्हे पैदा ही क्यों किया !

सरकार को भीख मांगने पर पुरी तरह से पाबंदी लगनी चाहिए और भीख मांगकर अपना गुजरा करने वालों के लिए रोजगार योजनायें लागू करनी चाहियें ! खासतौर पर बच्चों के द्वारा भीख मांगने पर पूरी तरह से पाबंदी लगनी चाहिए !यही बच्चे बडे होकर चोरी , नशाखोरी व् ग़लत काम करते हैं !क्यों न बच्चपन में ही इतनी शिक्षा दी जाए की इन बच्चों को एक बेहतर भविष्य मिल सके !देश का सारा भार इनके कंधो पर हैं , अगर इन्हे मजबूत न किया गया तो देश का भविष्य कैसा होगा ?

Thursday, July 16, 2009

नसीहत

विदाई का समय हो गया है ! अनीता को भेजो ! बस उसे कुछ समझा कर आई ! बेटी ससुरालवालों के आगे झुकना नही और गौरव को तो शुरुआत से ही अपने बस में कर लेना ! हमने सब सामान दिया है और तेरे साथ है , किसी भी बात की कोई चिंता करने की जरूरत नही है ! समझ गई ?

बेटी हाँ कहकर रोतीरोती चली गई ! आज जब बड़े चाव से अपनी बहु को लेकर आ रही थी तो मन में सोचने लगी की अब सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जांउगी ! तभी मेरी समधन की आवाज मेरे कानों में पड़ी , बेटी सास को हमेशा माँ समझना , जैसे में कुछ कह देती हूँ अगर व भी कह दे तो दिल से न लगाना ! उनकी सेवा में ही स्वर्ग है !

सहसा मुझे अपनी बेटी को दी हुई नसीहते याद आने लगी की अगर आज इन्होने भी अपनी बेटी को वही समझाया होता तो उसका घर भी बनने से पहले उजड़ जाता और हम सबका क्या हाल होता !

Tuesday, July 14, 2009

यादें


आज क्यों बार -बार हमें
तुम्हारी याद आ रही है ,
यह यादें ही हैं जो हमें इतना सता रही हैं ,
कैसे कोई दिल के
करीब आया है
साथ में जुदाई का गम भी लाया है
न चाहते ,या चाहते ,तुम्हारी यादों में खो जाते हैं ,
उन हसीं लम्हों को याद कर चेहरे पर ,
मुस्कुराहट लाते हैं ,
देखते है सपने ,बंद ही नही
खुली आंखों से भी ...............की
तुम्हारे करीब है हम , पर न जाने क्यों ......
ये सपने डरा जाते हैं ...कितनी दूर हो तुम ,
यह एहसास करवा जाते हैं .......
यह सोच ख़ुद को तसल्ली बख्शते हैं ॥
की चाँद के बहाने रोज मिलने तो हो आते ॥
कभी हवा के झोंके तो कभी सूरज की किरण
बन छूकर हो जाते ..........................
वंहा रहकर भी तुम .......यंहा हो .....
यंहा होकर भी .......में वंहा हूँ ,
फिर भी न जाने क्यों ,एक बेचेनी की वजह हो ,
यह बेचेनी बदती जाती है ....तुम्हारा
अक्स सामने लती है ......
उस अक्स को देख कर मेरी ॥
जान तुम्हे मिलने को हर दम निकलती जाती है ......

Saturday, July 11, 2009

ओ मां...


ऐ खुदा,
तूने मां के रूप में एक फ़रिश्ता है दिया
जिसने कभी अपने बच्चों से कुछ न लिया
कितनी ही गलती करे वह या करे नादानियां
तेरी ममता की झोली भुला दे सारी परेशानियां
जब पास होती हैं तो तुझे जान नहीं पाते
क्या है कीमत तेरी पहचान नहीं पाते
तुझसे दूर होकर जाना
आज तू बड़ी याद आ रही है
क्यों करती है इतना प्यार अपने बच्चों से
कि तेरी दूरी इस कमी का एहसास करवा रही है
ये ममता का आंचल
हमेशा खुशियां ही निछावर करता है
जब करते है गुस्ताखी तो मां
तुझसे ये दिल डरता है
आ मां मेरे पास
तेरी यादें सता रही हैं
तेरी बातें आज बहुत रुला रही हैं...

Friday, July 10, 2009

इंतज़ार है चांद को भी...



बादलों में छिपे ऐ धुंधले चांद
तेरी भी अपनी ही है एक कहानी
किसी को दिखता है तुझमें
रोटी का टुकड़ा तो किसी को खोई जवानी
किसी का सपना है चांद को छूना
तो कोई देखे इसमें महल चौबारे
न जाने कोई इस चांद की व्यथा
जाने इसे बस अंबर के तारे
दुनिया का साथी चांद
किसी का महबूब
तो किसी की लंबी जुदाई का सबब बन जाता है
खुद कितना अकेला है ये
बस अपनी आधी पूरी जिंदगी में ही बंट जाता है
एक बच्चा जब पूछे मां से कि
इसकी भी क्या है कहानी
कभी यह पूरा ख़ुशी में गोल
कभी गायब जैसे आंख से बहता पानी
मां बोलती ये ही है जिंदगानी
जिनके पास है एशो-आराम
उनकी रोज है ईद-दिवाली
चांद भी यह सुन कर हैरां परेशां है
क्यों निकलती हमेशा इन गरीबों की जान है
कभी-कभी वह भी देख तंग हो उठता है
कि क्या हो रहा है संसार में
पर खुद को मान अपाहिज
वह भी चुप हो जाता है
अपना दर्द वह भी कभी किसी को नहीं बतलाता है
काम अपना कर रहा है
दुनिया को देख-सुन रहा है
उम्मीद करता है वह उस दिन की
जब वह बच्चा भी चांद में अपने सपने को देख सकेगा
अब लगता है
उस दिन का चांद भी बेसब्री से इंतजार करेगा...