Friday, August 21, 2009

सुनहरी चिठ्ठी

अलमारी में कपड़े लगाते हुए मेरा हाथ अचानक रुक गया ! रेडियो पर पंकज उदास का गाना चल रहा था , वही मेरा पसंदीदा , चिट्ठी आई है , आई है चिठ्ठी !' हाय : ये कागज के टुकड़े जिसके लिए सारा ध्यान डाकिये की तरफ रहता था !वह किसी दूत से कम नही था , चाहे नौकरी , शादी , मरना ,जन्म सबका समाचार था उसके पास ! चिट्ठी में लिखा एक -एक अक्षर दिल का हाल तो ब्यान करता ही था लिखने वाले का चेहरा भी चिट्ठी में उकेर देता ! वो लंबा इंतज़ार पोस्ट करने की भीड़ !ऐसा नही की इन्बोक्स में गए की आ गया जवाब , वाह रे टेक्नोलॉजी अब खतम हुआ इंतज़ार ! इसमे कोई दोराय नहीं है की वे जरुरी संदेश जिनमे विलम्ब करना उचित नही था , आज पलक झपकते ही पहुँच जाते है , अपनी मंजिल पर , वो आत्मीयता, जुडाव , स्नेह धीरे - धीरे खतम हो रहे हैं !
में भी सोचते - सोचते यादों के सफर में चली गई ! यद् आने लगा वह बचपन में पिताजी की बॉर्डर से आती चिट्ठी और माँ का दिल घबराना , पड़ने से पहले भगवन को याद करना , खैरियत की खबर को देख कर कभी रोना तो कभी मुस्कुराना , बार -बार पड़ते रहना , उसे अपने दिल से लगाना , हर समय उनकी लम्बी दुआओं की कामना करना ! किसी अमूल्य अनमोल खजाना उनके अपने पास संजो के रखना आज भी उनका ये अनमोल खजाना आज भी उनके पास वेसे ही सुरक्षित है ! कभी कबूतरों , कभी डाकिये अब ये नेटवर्क कनेक्शन ,सन्देश भेजने का सरल और तुरंत तरीका है ! चिट्ठी जब देर से पहुँचती या एक जेसे नाम होने के कर्ण गलत घर में जाती तो वह हास्यपद स्थिति का अलग ही मजा होता ! शादी के बाद बेटी की पहली चिठ्ठी जिसका माँ को बेसब्री से इंतज़ार होता , जिसमे वह ससुराल का पूरा हाल लिखती ! वह इंतज़ार के पल , जो गर्मी के मौसम में पहली बारिश सा आनंद भर देते थे ! लैटर बॉक्स झाँकने पर कुछ मिला ! मेरी बेटी का कम्पनी में सिलेक्शन हो गया था उसका काल लैटर था ! उसका दिन -रात मेहनत करता चेहरा आँखों के सामने आना लगा ! चिट्ठी की ख़ुशी में बय्याँ नहीं कर सकती थी ! वह अपने ख्वाबों के आसमान में मंजिल को छूने के लिए तैयार थी ! मेरे दिल से निकल पडा की मेरी जिन्दगी की चिट्ठियों में इ खुशियाँ लेकर आने वाली सुनहरी चिट्ठी तेरा स्वागत है ! शायद आज भी तेरा असितत्व और गौरव कायम है , तेरी जगह कोई नहीं ले पाया है !

5 comments:

  1. सही कहा आपने चिट्ठी और उससे जुडा वो प्यार, स्नेह...भावना सब कहीं गम सा हो गया...अब ना चिट्ठी है और ना...

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  2. क्या बात है आपकी सुनहरी चिठ्ठी बहुत उम्दा लगी . धन्यवाद

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  3. वृन्दा जी ,मै तो अभी भी चिठ्ठियाँ लिखता हूँ ,हाथ से लिखी चिठ्ठी मे लिखने वाले के ज़िस्म की खुशबू होती है ऐसा लगता है कि उससे गले मिल रहे है .मैने अपने पिता और घर के लोगो कि चिठ्ठियों को पुस्तकाकार मे प्रकाशित भी किया है . मै अपने ब्लोग पर अपने दोस्तों की चिठ्ठियाँ दे रहा हूँ एक बार देख आइये http://sharadakokas.blogspot.com

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  4. boht wadhia likhi hai vrinda g.... sab kuch byian kar dyia hai ess chithi mai..... gud keep it up

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