Tuesday, July 14, 2009
यादें
आज क्यों बार -बार हमें
तुम्हारी याद आ रही है ,
यह यादें ही हैं जो हमें इतना सता रही हैं ,
कैसे कोई दिल के
करीब आया है
साथ में जुदाई का गम भी लाया है
न चाहते ,या चाहते ,तुम्हारी यादों में खो जाते हैं ,
उन हसीं लम्हों को याद कर चेहरे पर ,
मुस्कुराहट लाते हैं ,
देखते है सपने ,बंद ही नही
खुली आंखों से भी ...............की
तुम्हारे करीब है हम , पर न जाने क्यों ......
ये सपने डरा जाते हैं ...कितनी दूर हो तुम ,
यह एहसास करवा जाते हैं .......
यह सोच ख़ुद को तसल्ली बख्शते हैं ॥
की चाँद के बहाने रोज मिलने तो हो आते ॥
कभी हवा के झोंके तो कभी सूरज की किरण
बन छूकर हो जाते ..........................
वंहा रहकर भी तुम .......यंहा हो .....
यंहा होकर भी .......में वंहा हूँ ,
फिर भी न जाने क्यों ,एक बेचेनी की वजह हो ,
यह बेचेनी बदती जाती है ....तुम्हारा
अक्स सामने लती है ......
उस अक्स को देख कर मेरी ॥
जान तुम्हे मिलने को हर दम निकलती जाती है ......
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bht acha likhka.. lekin ye to batao..kiske liye likha.. to fir bolg ka kyaa faiyda..?? heh hehe..
ReplyDeleteविरह गीत ओर वो भी सावन के महीने में??? बहुत प्रभावशाली शब्द संयोजन देखने को मिला
ReplyDeleteयह सोच ख़ुद को तसल्ली बख्शते हैं ॥
की चाँद के बहाने रोज मिलने तो हो आते ॥
सुन्दर बहुत सुन्दर कविता