विदाई का समय हो गया है ! अनीता को भेजो ! बस उसे कुछ समझा कर आई ! बेटी ससुरालवालों के आगे झुकना नही और गौरव को तो शुरुआत से ही अपने बस में कर लेना ! हमने सब सामान दिया है और तेरे साथ है , किसी भी बात की कोई चिंता करने की जरूरत नही है ! समझ गई ?
बेटी हाँ कहकर रोतीरोती चली गई ! आज जब बड़े चाव से अपनी बहु को लेकर आ रही थी तो मन में सोचने लगी की अब सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जांउगी ! तभी मेरी समधन की आवाज मेरे कानों में पड़ी , बेटी सास को हमेशा माँ समझना , जैसे में कुछ कह देती हूँ अगर व भी कह दे तो दिल से न लगाना ! उनकी सेवा में ही स्वर्ग है !
सहसा मुझे अपनी बेटी को दी हुई नसीहते याद आने लगी की अगर आज इन्होने भी अपनी बेटी को वही समझाया होता तो उसका घर भी बनने से पहले उजड़ जाता और हम सबका क्या हाल होता !
वृंदा जी
ReplyDeleteबहुत बड़ी सामाजिक समस्या को चन्द अल्फाजों से एक लघु कथा के माध्यम से आपने कितना सहज समाधान दर्शा दिया काश हर माँ अपनी बेटी को विदा करते समय अच्छी सलाह दे तो आज दहेज़ हत्या,सास बहु के झगडे,पारिवारिक बिखराव, जैसी विकराल समस्यों का सामना ही न करना पड़े,आपकी सामजिक बौधता को नमन