Friday, July 10, 2009

इंतज़ार है चांद को भी...



बादलों में छिपे ऐ धुंधले चांद
तेरी भी अपनी ही है एक कहानी
किसी को दिखता है तुझमें
रोटी का टुकड़ा तो किसी को खोई जवानी
किसी का सपना है चांद को छूना
तो कोई देखे इसमें महल चौबारे
न जाने कोई इस चांद की व्यथा
जाने इसे बस अंबर के तारे
दुनिया का साथी चांद
किसी का महबूब
तो किसी की लंबी जुदाई का सबब बन जाता है
खुद कितना अकेला है ये
बस अपनी आधी पूरी जिंदगी में ही बंट जाता है
एक बच्चा जब पूछे मां से कि
इसकी भी क्या है कहानी
कभी यह पूरा ख़ुशी में गोल
कभी गायब जैसे आंख से बहता पानी
मां बोलती ये ही है जिंदगानी
जिनके पास है एशो-आराम
उनकी रोज है ईद-दिवाली
चांद भी यह सुन कर हैरां परेशां है
क्यों निकलती हमेशा इन गरीबों की जान है
कभी-कभी वह भी देख तंग हो उठता है
कि क्या हो रहा है संसार में
पर खुद को मान अपाहिज
वह भी चुप हो जाता है
अपना दर्द वह भी कभी किसी को नहीं बतलाता है
काम अपना कर रहा है
दुनिया को देख-सुन रहा है
उम्मीद करता है वह उस दिन की
जब वह बच्चा भी चांद में अपने सपने को देख सकेगा
अब लगता है
उस दिन का चांद भी बेसब्री से इंतजार करेगा...

5 comments:

  1. its really very good.but you can write more better.all d best

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  2. im so happy for yu.. its really heart touching.. really wonderfull..

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  3. good yaar keep it up ...all d best

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  4. दिल को छू लेने वाली कविता
    जब वह बच्चा भी चांद में अपने सपने को देख सकेगा
    अब लगता है
    उस दिन का चांद भी बेसब्री से इंतजार करेगा...
    बड़ी शानदार पंक्तियाँ

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  5. चाँद का विश्लेषण बहुत खूब किया है। निरंतर बनाएं रखें। दिल खयालात को ब्लॉग की सलेट पर सजाए रखें।

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