ना जाने क्यों इन बाँवरे सपनो के पीछे भागता हे ये
चंचल मन ,
हर समय , या दिन के आठों पहर
करता है जुगत इन्हें हकीकत में बदलने की
चाहता है की इस दुनिया को अपने हिसाब से बदल दे,
पर मुमकिन नहीं ,
चाहता है की मरती इंसानियत को जिन्दा करदे
जो नहीं डरती एक बच्ची का जीवन खत्म करते
उसे नोचते ,वो भी बिना किसी कसूर के
सपना देखता है की नव वर्ष पर बहने वाले पैसे
से कोई किसी मासूम का पेट भर रहा है
अलमारी में लगे कपडे के ढेर को
किसी का तन ढकने के लिए बाँट रहा है ,
ढूँढती है आँखें रोज , सड़क के किनारे बेठे
की शायद कोई इस बार सर्दी से बचने का
कम्बल दे जाये ............
पर ये सपने -सपने ही रह जाते है , इतने में इक
सर्द रात में आँख खुल जाती है ........
आँख खुल जाती है !
सुंदर वृंदा जी.
ReplyDeletehey.It was really heart touching.. Its very good that yu took the point of people who live on the footpaths..its really wonderful to read your blog.. I just Hope that.. tumhaari kalam se likhte likhte hi logo ke sapne poore ho jaaye.. May the coming year Bless you and the People Of India.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteना जाने क्यों
इन बाँवरे सपनो के पीछे
भागता हे ये
चंचल मन ,
बहुत उम्दा प्रस्तुति!! बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
Yeh bahut hi achi kavita hai........
ReplyDeleteThis is really GooD.......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना । आभार
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