Sunday, December 27, 2009

सरहद के पार

ज़ाने से पहले क्यों सलाम जरुरी हो जाता है
हर आखिरी लम्हा क्यों बेशकीमती हो जाता है ,
इन आँखों को तो नसीब भी न हुई तेरे चेहरे की एक झलक ... फिर भी
अगली मुलाकात का इंतज़ार शुरू हो जाता है .....
रहे खैरियत से तू अपने उस मुल्क में यही दुआ करते हैं ,
करे दीदार तेरे चेहरे का यही फरियाद करते है ,
ये कुछ कदमो की दूरी है ..पर सरहद पार नहीं होती ( बाघा बॉर्डर).
देख उस सरहदी रेखा को ये आंखे बड़ा है रोती..
दिल के इतने करीब है पर मीलों की दूरी तय नहीं कर पाते ,
याद करते हैं तन्हाई में पर कह नहीं पाते ,
रहना -सहना ,बोली पर मुल्कों के नाम अलग है ...
रिश्ते हैं वही पर बुलाने के नाम अलग है ,
मेरी मजबूरी वंहा आने नहीं देती ..तेरी बेरुखी कहे
या कुछ ऐसे मसले जो तुझे यंहा आने नहीं देते ,
यादें साथ हैं और हमेशा रहेगी ..कभी ताज़ी तो कभी मुरझाई ..
बगिया के उन फूलों की तरह जो पतझड़ के बाद बसंत का इंतज़ार करते
फिर से खिल जाने के लिए !

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्‍छा लिखा है पहले देश को सलाम फिर आपको सलाम

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  4. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

    ReplyDelete