Sunday, December 27, 2009
अधूरे सपने
माँ लो मिठाई खाओ , क्यों क्या हुआ बेटा ! अपनी छुटकी का एडमिशन दिल्ली यूनिवर्सिटी में हो गया है ! अरे ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है लेकिन बेटा वो इतनी दूर अकेली कैसे आया करेगी ! माँ आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट है वो सब मेनेज कर लेते है ! हाँ शायद तुम सही कह रहे हो और उसका एक क्लास- मेट भी है आ जाया करेंगे बच्चे साथ में ! हाँ बेटा सही कह रहा है बोल में अपने कमरे में आ गयी ! पता नहीं क्यों ये बातें मुझे २५ साल पीछे खींच लायी और मुझे अपनी सुमन के आंसू सुनाई देने लगे ! जब उसके इसी भाई ने सुमन की सारी किताबों को आग लगा दी क्योंकि वो आगे पढना चाहती वो भी लडको वाले कॉलेज में ! छुटकी दिल्ली चली गयी और माँ -बाप ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे ! कुछ दिन बाद अचानक आवाज आई देखा मेरी बेटी सुमन आई थी ! मिलने मेरे कमरे में आई बहुत दुःख - सुख सांझे किये मैंने छुटकी के बारे में बताया बहुत खुश हुई जाने लगी तो बाहर सुनील मिठाई का डिब्बा लेकर खड़ा था ! सुमन ने बधाई दी की बहुत ख़ुशी हुई अगर तब किसी ने मेरे सपनो के बारे में भी सोचा होता तो और चली गयी ! सुनील अब भी डिब्बा हाथ में लिए खड़ा था ! माँ खुश थी की एक बेटी के न सही लेकिन दूसरी के अधूरे सपने तो पूरे हुए !
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बढ़िया...प्रवाह और तारतम्य में कहीं कुछ टूटन है, ऐसा लगता है.
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