Thursday, February 4, 2010

विरह की रात

बारिश भरी रात भी एक , कितना कुछ है कह देती ...
वह शांत सा मौसम , वो ठंडी -ठंडी हवा ..
जसी प्रियतम को मिलने चली हो प्रिया
बिजली का कड़कना , अँधेरे का बढ़ना ..
जैसे रही हो ढूंड , मिलन की जगह ,
कितने समय से वो रही थी तरस .
आज कहता है मन दिल खोल कर बरस,
प्यास दिल की कभी न बुझ पायेगी ,
इस प्यारी , सुंदर रात को जी लो ये फिर
ना वापिस आएगी , कभी ना वापिस आएगी !!

7 comments:

  1. wah.. agar ye kavita july/august me likhti to aur maja aata..
    thank you for such a beautiful poem.

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  2. बहुत अच्छी रचना है बधाई

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  3. बहुत -बहुत धन्यवाद् आप सब ने इस रचना को इतना सराहा ! लिखी तो बहुत समय पूर्व सावन के मास में थी बस पोस्ट नहीं कर पाई ! ऐसे ही मेरे ब्लॉग को प्यार दीजियेगा !

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  4. स्थिति का खूब किया वर्णन।

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