Thursday, January 21, 2010

खंडर का दर्द

आज जर्जर अवस्था में देख मुझे , डर जाते हैं सभी ,
कभी में भी आबाद हुआ करता था ......
डालते थे झूले , कभी मेरी मजबूत शाखाओं में ,
आज एक पत्ते को भी तरस जाता हूँ ...
लगते थे मेले , मनाते थे जश्न आज अपनी ही पहचान ..
दूंदते फिरता हूँ ....
अगर सवांरा होता तो कोई अजूबा बन जाता ,
या किसी खोजी का विषय ...
पर अब संवय को पल - पल गिरता देख ,
अपने अस्तित्व के पतन पर अश्रु बहाता हूँ ..
अश्रु बहाता हूँ .!!

2 comments:

  1. waqt ke bahaav ke sath bahna niyati hai aur aisi avastha to aani hi hai koi bhi ho khandhar , manushya ya aur prani jagat .......hashra to yahi hona hai........behtreen bhav.

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  2. Khandhar kee peeda ko bahut saarthak abhivyakti di hai aapne...

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