Friday, June 18, 2010

कंहा गयी वो मासूमियत

आज एक बच्ची को टेडी बिअर की जिद करता देख मुझे अपना बचपन याद आने लगा ! वह वैसे ही जिद कर रही थी जैसे की कभी मैने मुनिया की शादी के बाद उसके दुल्हे को देख कर की थी ! माँ मुझे भी चाहिए ऐसा दूल्हा जैसा मुनिया को मिला है जो हर दम उसके साथ रहेगा ! मुनिया गयी अब मेरे साथ कौन खेलेगा ! माँ हँसती हुई चली गयी लेकिन मेरे लिए ये गहन चिंता का विषय था ! जब मैंने माँ का पल्लू नहीं छोड़ा तब न जाने कंहा से एक नील से लथपथ टूटा -फूटा एक गुड्डा ले आई की ये रहा तेरा साथी कहकर चली गयी ! लेकिन मुझे तो मानो दुनिया मिल गयी थी! माँ मुझे घर भी नहीं छोडना पड़ेगा वाह.. वाह मजा आ गया ! लेकिन माँ के पास कंहा समय था यह सब देखने का उन्हें ईटों के भट्टे पर जाने के लिए देर जो हो रही थी ! इतने भाई -बहनों में कंहा याद रहता की किस बच्चे ने क्या कहा पर में तो लाडली थी न सबकी दुलारी छुटकी! आज के बच्चे तो हसेंगे ये नाम सुनकर सो ( बेक्वोर्ड )!लेकिन हम तो अपनी ही मस्ती में गुम थे ! बहुत खुश की दुनिया हमारे क़दमों में जैसे, सच्ची दोस्ती प्यार ,लड़ना , मरना ! उपहार के रूप में अगर किसी साथी ने कोई टॉफी , या चाकलेट दे दिया तब हम खुद को किसी शेहनशाह से कम ना समझते ! एक छोटे से कमरे में माँ को चिपकने के लिए सभी भाई- बहनों में एक होड़ सी लगी रहती थी ! मुझे अलग कमरा चाहिए मम्मी में शेरिंग नहीं कर सकती ! ऐसे जुमले आम सुनने को मिलते हैं ! समय का आभाव तो उस वक़्त भी था और आज भी है लेकिन कंही ना कंही रिश्तों की गर्माहट में कमी आ गयी है ! माँ की ममता में कभी कमी ना आ सकती लेकिन आज वे उसे अपने बच्चों पर निछावर नहीं कर पति ! उनकी जीवन -शेल्ली व दैनिक समय सारणी का पालन करते -करते उनकी सूचि के अंत में बच्चों का नाम आता है ! एक दिन घर पर अकेली थी इसलिए सोचा की पार्क में जाकर थोड़ी सैर कर लू ! वही बच्ची पार्क में मिली ! खुद को रोक नहीं पायी और उसके पास चली गयी ! उसको खेलता देख , आँखें उसे अपलक निहारती रही ! आपका नाम क्या है बेटा! वह कुछ पल ठहरकर सोचती हुई बोली ;;आ आंटी स्नेहा ! जितना सुंदर नाम उतनी ही सुंदर स्नेहा गोल- मटोल प्यारी सी गुडिया ! कुछ देर बाद बातें करते -करते मुझे स्नेहा का वो टेडी याद आया और में पूछ बैठी की आपके उस टेडी का क्या हुआ! उसने बहुत हैरानी से मेरी और देखा , और कहा कौन सा टेडी आंटी? मैंने कहा वही जिसको लेने की आप बहुत जिद्द कर रहे थे ! उसने कहा वो तो फेंक दिया गन्दा हो गया था ! में हैरानी से उसे देखती रही उसके चेहरे के शुन्य भाव देखकर मन फिर भूतकाल में चला गया ! मेरा नीला गुडा तो सारा दिन मेरे साथ रहता! मेरे साथ स्कूल जाता , खेलता , खाना खाता! मेरा पक्का दोस्त जिससे में हर बात करती ! आप भी हसेंगे की एक गुड्डा लेकिन मेरा साथी ! एक बार रेखा से लडाई होने पर उसने मेरे नीले गुड्डे को छुपा दिया कितना रोई थी में खाना भी नहीं खाया था ! अंत में माँ ने रेखा को बहुत मारा और मुझे मेरा गुड्डा दिलाया ! कितना अनमोल था न वो मेरे लिए ! गल्ली में लुकन- मिच्ची , भागम -भाग ! आज की तरह न मंहगे खिलोने न विडियो - गेम , न कम्प्यूटर . ना इन्टरनेट ! कितना निश्चल प्रेम , एक दुसरे की मदद करना ! आज बच्चों के साथ माँ - बाप भी आगे बदने की रेस में लगे है ! असली प्रत्तिभा को कोई पहचान नहीं ! रोज न जाने कितनी आत्म -हत्याएं , कितनी मौतें सिर्फ अपने लक्ष्य तक न पहुँचने के कारण हो जाती हैं ! अगर शर्मा जी के बच्चे ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो हमारा चिंटू क्यों पीछे रह गया ! वे यह शायद भूल जाते हैं की हर इंसान भिन्न है शायद शर्मा जी का बेटा उतनी अच्छी चित्रकारी नहीं कर सकता जितनी चिंटू करता है ! पर यह बात पुराने ख्यालों की है ! इसे कोई नहीं समझना चाहता ! छोटे - छोटे बच्चे जिनके हाथ में कलम होनी चाहिए बन्दूक आ जाती है ! सरे आम विद्या घर में गोलियां चलती है ! कहते है बच्चों में भगवान् रहते हैं , क्यों लुप्त होती जा रही है वह मासूमियत ! इसके जिम्मेदार जाने -अनजाने हम खुद हैं ! कंही तन -उघाडू कपड़ों में वे अश्लील नाच तो कंही कॉमेडी करते नजर आते हैं ! वे न तो उन द्विर्थी गीतों का मतलब जानते हैं ! वे छोटे बच्चे उस प्रतिस्पर्धा में आगे बाद रहे हैं ! कभी न्यायाधीशों की कडवी बातें सुन कोई कौम्मा में जाता हे तो कभी वे जिन्दगी से ही हार जाते हैं ! हमारी परवरिश और निरंतर आगे बढ़ने की भूख जो बदती जा रही है ! काश हम उन्हें जिन्दगी जीने के सही राह दिखाए , हमेशा जीतने के नहीं ! मुश्किलों से लड़ना उन्हें सिखाएं ! ताकि हारने पर मौत को गले लगाने की बजाय वे हिम्मत से नाकामयाबी का कारण तलाशें ! ताकि अगली बार दुगनी मेहनत करे की सफलता उनसे दूर ही न जा पाए !इसमें हमारे और उनके माँ- बाप का भी उतना ही महत्वपूर्ण योगदान है ! ताकि हम उनकी निस्वार्थ मुस्कुराहट उनके चेहरे पर वापिस लौटा सके ! जो आज इस आप - धापी में कंही खो गयी ! यह शायद हमारा कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है ! मेरा नीला - गुड्डा तो मेरे जीवन साथी के रूप में बदल गया ! लेकिन आज भी कभी जब किसी खिल्लोने को देखू तब वो बहुत याद आता है !










1 comment:

  1. वाह!!.....मन के भावों को बहुत अच्छी तरह व्यक्त किया है आपने ....आज बदलते वक्त के साथ समाज में बहुत से बदलाव आ गये है .

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