Wednesday, September 15, 2010

छोटे आम की बड़ी सीख


आकाश में बादलों को उमड़ता देख नंदन वन के सभी पेड़ ख़ुशी व्यक्त  करने लगे ! भीषण गर्मी  से उनके पते  व शाखाएं झुलस चुकी थी ! बादलों को देख उन्हें कुछ राहत मिलती नजर आई !  मुझे तो मिटटी की भिन्नी -भिन्नी खुशबु बहुत अच्छी लगती ! सभी पेड़ हैरानी से इधर -उधर देखने लगे की यह आवाज कंहा से आ रही है , इतने में नीम काका की नजर एक छोटे से पौधे पर पड़ी ! अरे यह तो छुटकू आम का पौधा कह रहा है ! जी हाँ कल रात की बारिश व सुबह सूरज की रौशनी पड़ने से ही में अस्तित्व में आ पाया हूँ ! लेकिन मैंने धरती माँ के गर्भ से आपकी सभी बातें सुनी हैं ! यह तो बड़ी अची बात है , तुम्हारा नंदन वन में स्वागत है , बरगद दादा ने कहा , जी धन्यवाद् ! वह सभी पेड़ इस वार्ता से हसने लगे ! सभी पेड़ -पौधे अपने अनुभव एक -दुसरे के साथ बाँट रहे थे , व साथ ही ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे ! अचानक बाबुल चाचा ने कहा , सावधान लगता है कुछ मानव जाति के प्राणी इसी और आ रहे हैं ! नहीं , में अभी मरना नहीं चाहता  , शीशम  के पेड़ ने कहा ! बेटा मरना तो कोई नहीं चाहता , लेकिन यह मानव जाति हमें ख़तम कर अपना ही नुकसान करने पर आतुर है ! कभी पेड़ , पह्धों , नदियों की आराधना करने वाले ये लोग आज प्रक्रति से दूर हो गए हैं ! इनकी जीवन -शैली  इतनी बदल गयी है की आज यह जीवन की अवहेलना करने लगे हैं १ वे अपनी बात अभी पूरी भी नहीं कर पाए थे की एक जोरदार आवाज आई १ यह सरे पेड़ हमें आज ही काटने हैं , कंही बारिश आ गयी तो गिल्ली लकड़ी को संभालना तो मुश्किल होगा ही , इसके दाम भी कम हो जायेंगे १ जी सरकार कह वह तीनों अपने काम में जुट गए ! एक -एक करके पेड़ कटते चले गए और जंगल वीरान होता चला गया !  किसी पक्षी का घोसला गिरा तो कंही उसमें रखे हुए अंड्डे पक्षी बेघर हो गए , पक्षी दाना लेने गए थे और कोई मानवीय  भूकंप उनके आशियानों को तेहस -नहस कर गया था ! वंही दूसरी और छुटकू आम का पौधा `डरा सहमा संव्य को कोस रहा था की काश वह आज भी बाहर न आता ! लेकिन किस्मत का लेखा कोई बदल नहीं सकता ...तभी एक लकडहारे की नजर उस पर पड़ी वह जैसे ही हाथ बढाने के लिए आगे बड़ा तो छुटकू आम विनती करता हुआ कहने लगा , मुझे छोड़ दो , मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ! लकडहारा उतने ही तीव्र सवार में कहने लगा की बिगाड़ा तो उन पेड़ों ने भी कुछ नहीं था , वे तो कुछ नहीं बोले तो गीठ बार का ज्यादा उछल  रहा है ! वे अपनी जिन्दगी का एक हिस्सा गुजार  चुके हैं ! में आज ही प्रकाश में आया हूँ ! मेरे कुछ सपने हैं , में जीना चाहता हूँ , फलना चाहता हूँ , में भी चाहता हूँ की मेरी डालियों पर कोयल कूके , बच्चे मेरे मिट्ठे फल खाएं ! आम का वह एक पौधा एक सांस में सभी दलीले दिए जा रहा था ! पता नहीं केसे लकडहारे को उसकी भोली बातो पर दया आ गयी , वह उसे छोड़ते हुए बोला हाँ मैंने तो तुम्हे छोड़ दिया , पर तुम्हारा अस्तित्त्व तो तेज हवा तक मिटता देगी ! यह मेरी किस्मत , आम ने द्र्द्ता से कहा ! अब तक शाम हो चुकी थी चारोँ लोग लकड़ी इकट्ठी कर जा चुके थे ! वह अकेला खड़ा वंहा आंसू बहता रहा की कुछ पल पहले जन्हा जिन्दगी बस्ती थी अब खामोशियत का साया है ! सब सोचते -सोचते न जाने कब वह गहरी निन्द्रा में चला गया ! रात को एक भयानक तूफान आया और उसे एक नयी मंजिल की और ले गया ! सुबह जब वह उठा तो एक नदी के किनारे उसका बसेरा था ! सुबह हुई बारिश व बाद में निकली धुप ने उसे वंही जमा दिया , अब उसे अपना भविष्य साफ़ दिख रहा था ! उस छुकू आम ने जड़ों को फैलाना शुरू कर दिया वह उतनी ही कसावट से धरती को पकड़ना शुरू कर दिया ! धीरे- धीरे वह बढता गया और उसके सभी सपने सच होते चले गए ! एक दिन वही फलदार वर्कश अपने पेड़ पर बैठे सभी पक्षियों को अपना यात्रा वृतांत सुना रहा था ! अचानक उसे किसी की कर्हाने   की आवाज आई देखो तो जरा कौन है , आम दादा ने चिड़िया को कहा , जी हाँ में अभी पता लगाती हूँ ! वह उध कर वंहा गयी तो देखा की एक आदमी लू से पीड़ित वंहा गिरा पड़ा था ! उसने यह बात जाकर आम दादा को बताई ! वे कहने लगे घबराओ नहीं हम उसकी मदद करेंगे ! उसके ऊपर पानी की छींटे मरो व नदी तक ले आओ १ उन्होंने वेसे ही किया , वह आया और आकर पानी पिया ,हाथ-मुह धोये व पेड़ की घनी छाया में बैठ गया ! उसके बैठते ही आम काका ने अपने फल गिराने शुरू कर दिए ! जब उस आदमी ने ऊपर उठ कर देखा तो वही छुटकू आम धन्यवाद् कहने लगा ! वह आदमी बोला शुक्रिया तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए और तुम मेरा ...तब आम ने कहा तुम्हरी ही दया से आज में यंहा विशालकाय  रूप में खड़ा हूँ ! अगर उस दिन तुम मुझे नहीं छोड़ते तो में भी वंही विलीन हो जाता ! वह उसे याद करने के लिए सारी कहानी दोहराते हैं ! उस आदमी को बहुत गलानी महसूस होती है , की हमसे कितनी बड़ी भूल हुई है ! हम अपनी इस अनमोल धरोहर को समाप्त  करने पर आतुर हैं ! अगर यह न होगी , हम तो संव्य मिट जायेंगे , जीवन की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! अगर आज यह पेड़ न होता तो में धुप में पड़ा मर जाता ! छोटा आम जो अब बहुत बड़ा हो चूका था समझाने लगा की आक्सीजन , फल- सब्जियां , वर्ष , छाया , जलने के लिए लकड़ी सब तुम्हे पेड़ों से प्राप्त होती है ! तुम उन्हें ही काटे जा रहे हो ,! मुझे माफ़ कर दो , में समझ गया , अब में संव्य व्रक्षारोपण करूँगा ! वह दूसरों को भी इसका महत्व बता , प्रोत्साहित करूँगा ! आपने अब मेरी जिन्दगी को नयी दिशा प्रदान कर दी है ! आपका बहुत - बहुत धन्यवाद् कहकर वह चला गया ! उसकी बातें सुनकर , छोटा आम भी एक नए नंदन वन के सपने सजाने लगा !
 

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