Friday, September 4, 2009

प्राथना

बाबा फसल पकने वाली है ! कितना मजा आयेगा न ? बाबा आप हमें नए कपडे लाकर दोगे न ! तभी मुन्नी बोली , और मुझे नयी गुडिया भी चाहिए ! बाबा मुस्कुराने लगे - की हाँ भगवान् की कृपा रही तो सब कुछ आ जायेगा ! बस तुम प्राथना करो की एक हलकी सी फुहार आ जाये ताकि खडी फसल पूरी तरह तैयार पक होकर जाये ! राजू तुंरत बोला ,'में प्राथना करता हूँ वह मेरी सुनता है "! माँ की आवाज आई , चलो अब सो जाओ , बहुत देर हो गयी है ! मुन्नी क्या अब हमें अच्छे - अच्छे पकवान भी मिलेंगे ! पता नहीं और दोनों भाई - बहन बाते करते सो गए ! सुबह का सूरज कुछ और ही लेकर आया था ! फसले पानी में तैर रही थी ! पानी , फसलों के साथ - साथ सपनो को भी ले गया था ! राजू अब भी पूछ रहा था की भगवान् को और क्या कहना है !

5 comments:

  1. त्रासदी का इतना मासूम वर्णन

    ReplyDelete
  2. Haan..ye nazare maine hamare khetme aankhon se dekhe hain..kabhee sookha to kabhee geela..akal to akal hee hota hai!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

    http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. Han yaar....... Is saal bhi bahut nuksaan hua tha fasal ka..... Aur bahut se sapne toot gaye the.........

    ReplyDelete