Tuesday, November 30, 2010

ऊपर से नीचे

अगर सड़क टूटी दिखती है तो हम प्रशासन को दोष देते हैं और कर्मचारियों को कोसते हैं! लेकिन मुझे लगता है कि कहीं न कहीं गुनहगार हम भी है! याद आता है जब सड़क बनाने का कॉन्ट्रैक्ट निकलता है। सबसे पहले ठेकेदार सीमेंट में घटिया रेत और बजरी मिलाता है। नीचे से लेकर ऊपर तक हर कोई पैसे खाता है। जब जांच समिति बैठती है तो हर कोई भोलेपन से सिर हिलाता है और वही आज के समय में ईमानदार भी कहलाता है। लोग कहते हैं कि भ्रष्टाचार जड़ों को खोखला बनाता है। पहले यह तो बताइए की यह कहां से आता है! गरीब, जरूरतमंद को पेंशन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। गांव का नंबरदार आकर पहले अपना नाम लिखवाता है और हर महीने पेंशन का पैसा उसके बैंक खाते में जमा हो जाता है। गरीब बेचारा रोता रह जाता है। आखिर सरकार से यह स्थिति अनदेखा कैसे रह जाती है। जब बाढ़ या सूखे की वजह से हजारों लोग काल का ग्रास बन जाते हैं, एक पल में जिंदगियों के घरौंदे उजड़ जाते हैं, खाद्य सामग्री अफसर चट कर जाते हैं, राहत मद में गरीबों की मदद के लिए आए कंबल बाजारों में पहुंच जाते हैं, तो लोग भ्रष्ट नेताओं को गाली सुनाते हैं। लेकिन ऐसी स्थितियां भी देखने में आती हैं जब आपदाओं के वक्त लोग एकजुट होकर पीड़ितों की मदद करते हैं। उस मानवीयता और देश प्रेम के आगे भ्रष्टाचार हार जाता है।
लेकिन कई बार ऐसी खबरें भी देखने को मिलती हैं कि जिस इंसान के हाथ में लोगों की जान बचाने का जिम्मा होता है, वह उनकी जान और आबरू से खेल जाता है। अपनी लापरवाही से उसे मौत की नींद में सुला देता है या उसके शरीर के अंग बेच कर पैसे कमाता है। अगर कभी पकड़ा भी गया तो पैसे खर्च कर बाइज्जत बरी हो जाता है। कभी कोई विदेशी आ कर एक पल में हजारों लोगों की जिंदगी को अपाहिज बना डालता है और पच्चीस वर्ष के लंबे इंतजार के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ पाता है। हां, शिकार हुए लोगों के परिवार को मुआवजे के रूप में कुछ पैसे मिल जाने का भरोसा जरूर मिल जाता है। हमारे देश में एक तरफ रोज लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं और दूसरी ओर करोड़ों मन अनाज सड़ जाता है। ये बातें सोच कर किसी का कलेजा फटने लगता है है, लेकिन ज्यादातर लोग उसी व्यवस्था का अंग बन जाते हैं।
जब एक छोटा बच्चा स्कूल नहीं जा रहा होता है तो उसे टॉफी या चॉकलेट का लालच दिया जाता है। रिश्वत का पहला पाठ तो यहीं से शुरू हो जाता है। फिर हम कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार कहां से आता है। दरअसल, हम सब भी कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में लापरवाही बरतते हैं। भ्रष्टाचार हमारे लिए किसी भाषण प्रतियोगिता में लिखे जाने वाले लेख से ज्यादा कोई समस्या नहीं होता जिसे रट कर याद करना और भ्रष्टाचार के लिए जवाबदेह हालात से मुंह चुराना ही हमारा जीवन होता है।

2 comments:

  1. अच्छे ख्यालात. निश्चित ही लेखन में पहले से ज्यादा कसावट है, मगर मंजिलें अभी और बाकी हैं।

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  2. "जब एक छोटा बच्चा स्कूल नहीं जा रहा होता है तो उसे टॉफी या चॉकलेट का लालच दिया जाता है" - सीधा सच्चा और बहुत अच्छा आलेख

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