Sunday, November 22, 2009

रिअलिटी की वास्तविकता

रविवार का दिन मतलब पूरी मौज -मस्ती कोई जल्दबाजी नहीं ! इस रविवार को भी हम सपरिवार नाश्ता कर रहे थे की पड़ोस वाले शर्मा अंकल अखबार मांगने आये ! वे बताने लगे की बिटिया के लिए रिश्ता देखना है कंही कोई बात जम नहीं रही तो सोचा अखबार का सहारा लिया जाये ! पढाई - लिखाई भी काफी हो चुकी है अब अच्छा सा वर तलाश इस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाये ! पापा भी उनकी हाँ में हाँ मिलने लगे की सही कह रहे हो आप सबसे बड़ी चिंता होती है ! पापा ने भी सरकार की तरह आश्वासन दे दिया की कोई लड़का हमें दिखा तो जरुर बताएँगे ! बहुत परेशान थे बेचारे क्योंकि लड़की संव्यवर की जिद पर अडी हुई है ! वे तो अखबार लेकर चले गए पर में सोचने लगी की प्रस्ताव बुरा नहीं है १ राष्ट्रीय चैनल पर न सही लोकल केबल पर भी दिखाया तब भी शादी का खर्चा आराम से निकल जायेगा और पब्लिसिटी मिलेगी वो अलग पर हमे किसी के निजी मामले में दखल देने का कोई हक नहीं है ! पर बुराई भी क्या है कभी माँ सीता का स्वंयवर था , तो अब राखी का कोई बड़ी बात नहीं ये तो आने वाले समय की तस्वीर है जिस प्रकार लड़कियों की संख्या रोज कम होती जा रही है ! आने वाले समय में संव्य्वर ही रचाए जायेंगे ! पर अगर राहुल महाजन जैसे लोगों को संव्य्वर की जरूरत पढ़ गयी तब क्या होगा ! अभी सोच में डूबी ही रही थी की मम्मी ने महाभारत लगा दी और दर्शय था हस्तिनापुर में बेठा संजय ' धृतराष्ट्र ' को कुरुक्षेत्र के युद्घ का लाइव दर्शय सुना रहा था वो भी केमरे, मंहगी लाइट्स, और मेक -अप के बिना में झट से बोल उठी इसे कहते हैं रियलिटी ! जिस प्रकार आज की मिसाइल , दवाइयाँ , कितना कुछ पुरातन युग की दें है उनमें रियलिटी शो का नाम भी जुड़ गया ! अंतर सिर्फ इतना रह गया की पोराणिक युग से कलयुग में आते -आते वास्तविकता गूम होती सी प्रतीत होती है ! दिन -प्रतिदिन संख्या में बढ़ते चैनलों व टी आर पी की होड़ ने सबको अँधा बना दिया है ! न परोसने वाला सोच -विचार कर रहा है न खाने वाला बस जो बिकता है वही दिखता है के जुमले को सब सिद्ध करने में लगे हैं ! कोई अपनी निजी जिन्दगी को परदे पर ला दिल का दुःख कुछ कम करना चाहता है ! रिश्तों को सार्वजनिक कर अपने अतरंग रिश्तों का प्रदर्शन कर कोन सा भार कम होता है अपितु घर तो जरुर टूटते हैं ! कंही सर्वश्रेष्ट दुल्हन तो कंही दुल्हों की तलाश है ! इन सभी महान लोगों को मेरा कोटि -कोटि प्रणाम है ! धन्य है वे माता -पिता जो अपने बच्चों को इन कार्यकमों में भाग लेने या कहे शोभा बढ़ने के लिए भेजते हैं ! क्या हुआ अगर कोई बच्चा जज की बातें सुनकर बेहोश हो गया या किसी को अस्पताल में भर्ती कराना पढा ! ये हमारे समाज का एक आधा - अधुरा चित्र है ! कहते हैं ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ! अगर कोई खायेगा ही नहीं तो कोई बनाएगा ही क्यों जब खरीददार ही नहीं तो बेचने किस के लिए ! ये तो बहुत बड़ी बातें है चलो में भी रिश्ता ढूँढने में उनकी मदद करती हूँ ! बचपन से सुना है बेटियाँ सबकी सांझी होती है !

4 comments:

  1. सही बात है हम सब भी कहीं न कहीं इस समस्या के लिये जिम्मेदार हैं । सुन्दर आलेख बधाई

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  2. बस जो बिकता है वही दिखता है के जुमले को सब सिद्ध करने में लगे हैं !-यही हो रहा है!

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  3. this is too GooD Dear........
    Ur writing skills r far better thn I could hv thought.........

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  4. Ur writing skills r far better thn I ever imagined...... Keep it up Daer.........

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