Friday, January 29, 2010

समझदारी से मिली जीत

पुराने समय की बात है ! रामगढ नामक एक छोटा सा नगर था ! वंहा एक व्यवसायी रहता था ! उसका नाम रामलाल था ! वह बहुत ही ईमानदार व मेहनती था ! उसका व्यापर दूर-दराज के इलाकों में भी फैला हुआ था !वह हमेशा जरुरतमंदो की मदद करता व सबसे शालीनता पूर्वक व्यवहार करता ! सभी नगरवासी उसका बहुत आदर , सम्मान करते थे ! रामलाल के चार पुत्र थे ! वे चारों बहुत ही आलसी थे ! पिता के पैसों पर ऐश करते ! उनकी ये हालत देख रामलाल को बहुत चिंता होती ! रामलाल को यही डर सताए रहता की वे उसकी खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर देंगे ! इसी समस्या के बारे में सोचते रहने के कारण रामलाल बीमार रहने लगा था ! उसका छोटा बेटा पदाई -लिखाई में थोडा होशियार था पर बाकि तीनो कोई काम न करते ! एक दिन रामलाल के मन में आया की उसे अपनी जायदाद का बटवारा कर देना चाहिए ! अगर वह मर भी जाये तो उसके बेटो में कोई लडाई - झगडा न हो ! यही सोच कर एक दिन वह अपने चारो बेटो को अपने पास बुलाता है ! वह अपने मुंशी से सबको १००-१०० रूपए देने को कहता है ! वे चारों इस रहस्य को समझ नहीं पते ! उन्हें लगता है की ये पैसे भी पिताजी ने उन्हें खर्चने के लिए दिए हैं ! रामलाल उनके हाव -भाव को देखकर समझाता है की वह जमीन -जायदाद का हक किसी एक को देना चाहता है ! इसके लिए मेरी एक छोटी सी परीक्षा है जो उसे पास कर अपने आपको को सबसे बुद्धिमान साबित कर देगा ! सब कुछ उसका हो जायेगा ! चारों ने हाँ में सिर हिलाया और परीक्षा पूछने लगे ! रामलाल ने कहा की तुमें इन १०० रुपयों से कोई ऐसी चीज खरीद कर लानी है जिससे एक पूरा कमरा भर जाये ! तुमें एक दिन की मोहलत दी जाती है ! छोटे पुत्र को छोड़ बाकि सभी रामलाल का परिहास करने लगे की कितना आसन काम है !ये तो हम चुटकियों में पूरा कर देंगे !बाकि तीनों सामान लेने बाजार चले गए ! सबसे छोटा बैठ कर पूरी शर्त के बारें में गहराई से सोचने लगा ! अगले दिन का समय का भी आ जाता है ! रामलाल सबसे पहले बड़े -पुत्र के पास जाता है ! उसने सारा कमरा घास फूस से भरा होता है ! लेकिन कमरे में अभी भी बहुत सी जगह ख़ाली होती है ! वह बहुत निराश होकर दुखी मन से दुसरे पुत्र के कमरे में जाता है !वंहा का हाल इससे भी बुरा होता है ! सारा कमरा कागज व रद्दी के ढेर से भरा होता है ! कमरा अभी भी ख़ाली ! अब वह मंझले के कमरे में जाता है ! उसने सारा कमरा रुई से भरा होता है ! रामलाल दुखी ह्रदय से वही बैठ जाता है ! अब क्या होगा तभी चौथा पुत्र आवाज लगता है पिताजी यंहा आईये ! जब रामलाल कमरे में जाता है कमरा में घना अँधेरा होता है ! वह कहता है बेटा तुमने शर्त नहीं सुनी थी यह तो पूरा ख़ाली है ! वह कहता है रुकिए और जेब से मोमबती निकल माचिस से उसे जला देता है १ सारा कमरा प्रकाश से भर जाता है !रामलाल की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ जाते है ! वह अपने बेटे को गले से लगा लेता है ! तभी वह कहता है इस प्रकाश की कीमत सिर्फ एक रुपया है ये रहे बाकि के पैसे ! रामलाल को बहुत ख़ुशी होती की यह बेटा उसके कारोबार को नुक्सान नहीं पहुंचाएगा बल्कि और बदयेगा ! वह सारा कुछ चौथे बेटे के नाम कर देता ! बाकि अपनी गलती पर शर्मिंदा हो चले जाते हैं ! इस प्रकार वह अपनी समझदारी से सब कुछ प्राप्त कर लेता है !

2 comments:

  1. IS story me do baate samajhane layak hai, 1- buddhi aur 2- prakash , yadi buddhi hai to prakash hai aur prakash ahi to ujala hai. so , hume aur sarkar ko aaj siksha pe jyada dhyan dene ki jarurat hai.

    http://smsinhindi.com/

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