एक अस्पताल में बड़ा सा वार्ड था ! जंहा कई मरीज दाखिल थे ! उनमें एक मरीज का स्थान खिड़की के पास था ! हर रोज कई बार डॉक्टर व नर्से मरीजों की परिचर्या करते ! उनमें एक मरीज हर वक़्त उदास रहता ! वह जिन्दगी से लगभग हार मान चूका था ! वह सदा डॉक्टर से मायूसी भरी बातें करता ! खिड़की के पास बैठा मरीज भी उसकी बातें सुनता व समझाने का भरसक प्रयत्न करता ! डॉक्टर जब भी उसे देखने आते उसे समझाते की तुम्हारा रोग इतना गंभीर नहीं है ! हिम्मत से काम लो अगर तुम ही जीने की आशा छोड़ दोगे तो दवाइयां क्या कर लेंगी ! लेकिन उसकी समझ में कुछ न आता ! खिड़की वाला मरीज भी उससे बातें करता ! उनके बेड़ एक -दुसरे से बहुत दूर थे ! दूसरा मरीज अक्सर खिड़की वाले मरीज को पूछता की दूसरी और क्या है ! वह मरीज कहता यंहा से प्रक्रति की मनमोहक छटा दिखती है ! बाहर एक बहुत बड़ा पार्क है जंहा बच्चे खेल रहे हैं ! दूसरा मरीज भी यह सब बातें सुन ईर्ष्या महसूस करता की काश में यह सब देख पता ! दूसरा मरीज अक्सर कोई न कोई रोना रोता रहता की की परिवार वाले ज्यादा सम्मान नहीं देते ! पैसे की कमी है ! वंही दूसरी और खिड़की वाला मरीज कहता की पास ही बहती एक नदी में बतखे तैर रही हैं ! गुब्बारे वाले रंग- बिरंगे गुब्बारे बेच रहे हैं ! बच्चे झूले- झूल रहे हैं ! अब धीरे- धीरे दूसरा मरीज भी सकरात्मक सोचने लगा ! खिड़की वाला मरीज उसे समझाता जिन्दगी बहुत खुबसूरत है बस हम ही उसके रंग तलाश नहीं पते ! उत्तार -चदाव तो जीवन में आते ही रहते है ! इसका मतलब यह नहीं की हम जीवन से हार जाये ! अब यह बातें उस पर असर करती थी ! वह भी एक खुशहाल जिन्दगी व परिवार जोड़ने का सवप्न सजाने लगा ! एक दिन जब वह सुबह उठा तो देखा वह बिस्तर खाली था ! वार्ड बाय ने आकर उसे खिड़की वाली सीट पर जाने को कहा ! वह अंतर्मन बहुत प्रसन्न हुआ की वह दुनिया के रंगों को देखेगा ! उसके सवप्न चूर हो गए जब उसने देखा वंहा खिड़की के साथ एक दिवार थी ! जब डॉक्टर आये और उसे कहा की अब उसकी सेहत पहले से बहुत बेहतर है ! उसने अपने मित्र और खिड़की के पुराने मरीज के बारे में पूछा डॉक्टर ने बताना शुरू किया तो उसके होश उड़ गए ! वह कैंसर का मरीज था ! उसका दुनिया में कोई नहीं था और न आज तक कोई उसे देखने आया ! लेकिन वह एक जिंदादिल इंसान था ! रात को हार्ट अटेक के कारण उसकी म्रत्यु हो गयी ! वह बहुत उदास हुआ और बताने लगा की वह तो खिड़की से मुझे सारी दुनिया का हाल सुनाता था ! डॉक्टर ने कहा यह कैसे हो सकता है वह तो अँधा था ! उस पर तो जैसे वज्रपात हुआ था , डॉक्टर कहने लगा यह सब उन्होंने आपको जिन्दगी से जोड़ने व हिम्मत से आगे बदने के लिए कहा होगा ! अत कभी हम सफलता न मिलने के , कारण भी नहीं तलाशते और किस्मत , भाग्य को कोसने लगते हैं ! सदा सकरात्मक नजरिया रखे जिससे आप संव्य तो प्रसन्न रहेंगे ही दूसरों को भी नयी राह दिखा सकेंगे
Monday, June 21, 2010
Friday, June 18, 2010
कंहा गयी वो मासूमियत
आज एक बच्ची को टेडी बिअर की जिद करता देख मुझे अपना बचपन याद आने लगा ! वह वैसे ही जिद कर रही थी जैसे की कभी मैने मुनिया की शादी के बाद उसके दुल्हे को देख कर की थी ! माँ मुझे भी चाहिए ऐसा दूल्हा जैसा मुनिया को मिला है जो हर दम उसके साथ रहेगा ! मुनिया गयी अब मेरे साथ कौन खेलेगा ! माँ हँसती हुई चली गयी लेकिन मेरे लिए ये गहन चिंता का विषय था ! जब मैंने माँ का पल्लू नहीं छोड़ा तब न जाने कंहा से एक नील से लथपथ टूटा -फूटा एक गुड्डा ले आई की ये रहा तेरा साथी कहकर चली गयी ! लेकिन मुझे तो मानो दुनिया मिल गयी थी! माँ मुझे घर भी नहीं छोडना पड़ेगा वाह.. वाह मजा आ गया ! लेकिन माँ के पास कंहा समय था यह सब देखने का उन्हें ईटों के भट्टे पर जाने के लिए देर जो हो रही थी ! इतने भाई -बहनों में कंहा याद रहता की किस बच्चे ने क्या कहा पर में तो लाडली थी न सबकी दुलारी छुटकी! आज के बच्चे तो हसेंगे ये नाम सुनकर सो ( बेक्वोर्ड )!लेकिन हम तो अपनी ही मस्ती में गुम थे ! बहुत खुश की दुनिया हमारे क़दमों में जैसे, सच्ची दोस्ती प्यार ,लड़ना , मरना ! उपहार के रूप में अगर किसी साथी ने कोई टॉफी , या चाकलेट दे दिया तब हम खुद को किसी शेहनशाह से कम ना समझते ! एक छोटे से कमरे में माँ को चिपकने के लिए सभी भाई- बहनों में एक होड़ सी लगी रहती थी ! मुझे अलग कमरा चाहिए मम्मी में शेरिंग नहीं कर सकती ! ऐसे जुमले आम सुनने को मिलते हैं ! समय का आभाव तो उस वक़्त भी था और आज भी है लेकिन कंही ना कंही रिश्तों की गर्माहट में कमी आ गयी है ! माँ की ममता में कभी कमी ना आ सकती लेकिन आज वे उसे अपने बच्चों पर निछावर नहीं कर पति ! उनकी जीवन -शेल्ली व दैनिक समय सारणी का पालन करते -करते उनकी सूचि के अंत में बच्चों का नाम आता है ! एक दिन घर पर अकेली थी इसलिए सोचा की पार्क में जाकर थोड़ी सैर कर लू ! वही बच्ची पार्क में मिली ! खुद को रोक नहीं पायी और उसके पास चली गयी ! उसको खेलता देख , आँखें उसे अपलक निहारती रही ! आपका नाम क्या है बेटा! वह कुछ पल ठहरकर सोचती हुई बोली ;;आ आंटी स्नेहा ! जितना सुंदर नाम उतनी ही सुंदर स्नेहा गोल- मटोल प्यारी सी गुडिया ! कुछ देर बाद बातें करते -करते मुझे स्नेहा का वो टेडी याद आया और में पूछ बैठी की आपके उस टेडी का क्या हुआ! उसने बहुत हैरानी से मेरी और देखा , और कहा कौन सा टेडी आंटी? मैंने कहा वही जिसको लेने की आप बहुत जिद्द कर रहे थे ! उसने कहा वो तो फेंक दिया गन्दा हो गया था ! में हैरानी से उसे देखती रही उसके चेहरे के शुन्य भाव देखकर मन फिर भूतकाल में चला गया ! मेरा नीला गुडा तो सारा दिन मेरे साथ रहता! मेरे साथ स्कूल जाता , खेलता , खाना खाता! मेरा पक्का दोस्त जिससे में हर बात करती ! आप भी हसेंगे की एक गुड्डा लेकिन मेरा साथी ! एक बार रेखा से लडाई होने पर उसने मेरे नीले गुड्डे को छुपा दिया कितना रोई थी में खाना भी नहीं खाया था ! अंत में माँ ने रेखा को बहुत मारा और मुझे मेरा गुड्डा दिलाया ! कितना अनमोल था न वो मेरे लिए ! गल्ली में लुकन- मिच्ची , भागम -भाग ! आज की तरह न मंहगे खिलोने न विडियो - गेम , न कम्प्यूटर . ना इन्टरनेट ! कितना निश्चल प्रेम , एक दुसरे की मदद करना ! आज बच्चों के साथ माँ - बाप भी आगे बदने की रेस में लगे है ! असली प्रत्तिभा को कोई पहचान नहीं ! रोज न जाने कितनी आत्म -हत्याएं , कितनी मौतें सिर्फ अपने लक्ष्य तक न पहुँचने के कारण हो जाती हैं ! अगर शर्मा जी के बच्चे ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो हमारा चिंटू क्यों पीछे रह गया ! वे यह शायद भूल जाते हैं की हर इंसान भिन्न है शायद शर्मा जी का बेटा उतनी अच्छी चित्रकारी नहीं कर सकता जितनी चिंटू करता है ! पर यह बात पुराने ख्यालों की है ! इसे कोई नहीं समझना चाहता ! छोटे - छोटे बच्चे जिनके हाथ में कलम होनी चाहिए बन्दूक आ जाती है ! सरे आम विद्या घर में गोलियां चलती है ! कहते है बच्चों में भगवान् रहते हैं , क्यों लुप्त होती जा रही है वह मासूमियत ! इसके जिम्मेदार जाने -अनजाने हम खुद हैं ! कंही तन -उघाडू कपड़ों में वे अश्लील नाच तो कंही कॉमेडी करते नजर आते हैं ! वे न तो उन द्विर्थी गीतों का मतलब जानते हैं ! वे छोटे बच्चे उस प्रतिस्पर्धा में आगे बाद रहे हैं ! कभी न्यायाधीशों की कडवी बातें सुन कोई कौम्मा में जाता हे तो कभी वे जिन्दगी से ही हार जाते हैं ! हमारी परवरिश और निरंतर आगे बढ़ने की भूख जो बदती जा रही है ! काश हम उन्हें जिन्दगी जीने के सही राह दिखाए , हमेशा जीतने के नहीं ! मुश्किलों से लड़ना उन्हें सिखाएं ! ताकि हारने पर मौत को गले लगाने की बजाय वे हिम्मत से नाकामयाबी का कारण तलाशें ! ताकि अगली बार दुगनी मेहनत करे की सफलता उनसे दूर ही न जा पाए !इसमें हमारे और उनके माँ- बाप का भी उतना ही महत्वपूर्ण योगदान है ! ताकि हम उनकी निस्वार्थ मुस्कुराहट उनके चेहरे पर वापिस लौटा सके ! जो आज इस आप - धापी में कंही खो गयी ! यह शायद हमारा कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है ! मेरा नीला - गुड्डा तो मेरे जीवन साथी के रूप में बदल गया ! लेकिन आज भी कभी जब किसी खिल्लोने को देखू तब वो बहुत याद आता है !
Tuesday, June 8, 2010
कंहा लगाये गुहार
इस इन्साफ से तो , वह इंतज़ार अच्छा था ,
एक उम्मीद की , शमा तो जलती थी !
काश ! थोड़ी सी गैस और नसीब हो जाती तो न यह जीवन रहता न लाचारी ! यह कहना है उस महिला का जिसने पच्चीस वर्ष पहले अपनी आँखों की रौशनी को खोया था ! इस देश में इंसान की जान के अतिरिक्त हर चीज की कीमत है ! उन चंद मुआवजों के टुकड़ों से अगर किसी की तीसरी पीडी भी अपंग होने से बचती या परिवारों के बुझे चिराग जल उठते , तो शायद उन बूढी आँखों में ख़ुशी की नमी होती ! कितनी ही जिंदगियां पल- भर में म्रत्यु के आगोश में चली गयी !हमारा प्रशासन आराम की चादर ओड सोता रहा ! बच्चों को कैंसर , विकलांगता विरासत में मिली , अगर नहीं मिला , तो वह था न्याय ! यह पहला मानव नरसंहार नहीं था , कभी गोधरा कांड , तो ८४ के दंगे , बाबरी मस्जिद , या उड़ीसा का धर्म के नाम पर झगडा उनमें एक नाम भोपाल त्रासदी का भी जुड़ गया ! जो अब तक यह उम्मीद में जी रहा था की उसे न्याय मिलेगा ! अब इस पर भी कोई टेलीफिल्म , फिल्म बनकर ऑस्कर के लिए जाएगी ! वंहा रह जाएगी तो बस आंहे , कब हमारा प्रशासन नींद से जागेगा ! कब रक्षक के नाम पर बैठे राजनितिक भक्षकों पर कोई शिकंजा कसेगा ! अब समय आ गया है की कानून आँखों पर बंधी इस पट्टी को उतार दे ! कब तक न्याय और कानून व्यवस्थता का परिहास बनता रहेगा ! वक़्त आ गया है , बदलाव का नयी सोच का ! इन पंक्तियों के माध्यम से कुछ कहना चाहूंगी !
उन आंसुओं को देख , मन सोचता है ,
आकर कोई अमन भरा संसार बसा दे ,
अगर असंभव सा लगता है यह कार्य ,
आकर गुनेह्गारों को सजा दिलवादे ,
कानून प्रणाली ऐसी हो जाये , की फिर कोई एडरसन भारत में न आ पाए !
Friday, June 4, 2010
धरती का दुःख
असहाए , दुखी , क्षीण हूँ ,
किसे सुनाऊँ अपनी व्यथा ,
कोई ना पीड़ा समझे मेरी , ना स्थिति जान पाए ,
आज यह मानव मुझे नोच- नोच कर खाए ,
कल -कल करती नदियाँ सूखी ,
किसे सुनाऊँ अपनी व्यथा ,
कोई ना पीड़ा समझे मेरी , ना स्थिति जान पाए ,
आज यह मानव मुझे नोच- नोच कर खाए ,
कल -कल करती नदियाँ सूखी ,
वृक्षों को काट घरोंदे सजाये ,
बन गया है बोझ आज मेरी ही छाती पर ,
आज इस बोझ तले दबती जा रही हूँ ,
माँ , जननी इस खूबसूरती का नाम हूँ , लेकिन आज लुप्त होती जा रही हूँ,
करोगे खिलवाड़ प्रकोप तो दिखाउंगी , इंसान है शेतान ना बन ,
में तो मितुंगी , साथ में तुझे भी नष्ट कर जांउगी!!
Saturday, May 1, 2010
लेबर डे
अम्मा जल्दी करो ना समारोह शुरू होने वाला है ! तुम्हे याद नहीं का मालिक बोले थे सब वक़्त पर आ जाना क्योंकि नेता जी आयेंगे ! अच्छा लगेगा का की हम सब से अंत में पहुंचे ! नेता जी कितना कुछ कहेंगे खाना भी समाप्त हो जायेगा ! हमें पूरा विश्वास है की अब हमारा रोजगार भत्ता भी बढेगा ! तुम देखना , मुन्ना के चेहरे पर जो विश्वास था माँ वही देख डर रही थी की कंही ये सपने बिखर ना जाए ! तभी मुन्ना की अम्मा दुखी स्वर में बोली , हाँ तुम चलो हम तुम्हारे बापू को दवाई देकर आते हैं ! अम्मा एक व्यंगात्मिक हंसी हँसते हुए कहने लगी कितना खुश है , पर यह का जाने की सच्चाई क्या है ! अम्मा और मुन्ना भी कारखाने के मैदान में पहुँच गये जंहा बस्ती के बाकि लोग भी मौजूद थे ! वही हुआ जो सब जानते थे इंतजार के बाद या कहे नियत समय से तीन घंटे बाद नेता जी पधारे , वही लेबर डे के उपलक्ष में भाषण दिया गया ! सब ने तालियाँ बजाई , नेता जी के वायदों ने मुन्ना जेसे कई बच्चों का दिल जीत लिया , सबको खाना खिलाया गया ! सभी बस्ती वाले चेहरे पर शुन्य भाव लिए जब घर की और आ रहे थे , लेकिन मुन्ना के मन में उत्साह था , उमंग की एक नयी लहर ! घर पहुँच कर उसने , बाबा को सारी बात बताई ! अगले दिन काम करने के बाद जब मजदूरी लेने का वक़्त आया तो उसके होश उड़ गए , एक सो पचास रूपए में पचास रूपए कम थे ! उसने जब मुनीम से इसका कारण पूछा , तो वह खा जाने वाले स्वर में बोला चुप रह अंडे से बाहर अभी निकला नहीं , चला है सवाल जवाब करने कल जो मुफ्त का खाया था उसका पैसा तेरा बाप देगा ! मुन्ना कभी अपनी माँ का चेहरा , कभी नेता जी की बातें तो कभी लेबर डे का लगा बोर्ड देख रहा था !
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