Sunday, March 14, 2010

प्रायश्चित

अक्षित अपने माता-पिता का एकलौता बेटा था ! उसके पिता शहर के डिप्टी कमिश्नर थे ! एक आलिशान बंगला , गाड़ियाँ सब सुख- सुविधाएँ उनके पास थी ! लेकिन अक्षित के पिता बहुत ही सुलझे हुए व समझदार थे!उन्होंने कभी भी अक्षित की फिजूल जरूरतों को पूरा नहीं किया था ! वे उसे बहुत प्यार करते थे परन्तु वे नहीं चाहते थे की ज्यादा लाड -प्यार और अधिक जेब-खर्ची के कारण व बिगड़ जाये ! वे हमेशा उसे लगन से पढाई करने के लिए कहते ! लेकिन अक्षित का मन बिलकुल भी पढाई में नहीं लगता था ! वह हमेशा दिए गए गृह-कार्य से जी चुराता ! कई बार कार्य न होने के कारण उसे अध्यापकों की डांट खानी पड़ती लेकिन सभी उसके पिताजी का लिहाज कर चुप हो जाते ! अक्षित को बाजार की गन्दी चीजें खाने का बहुत शोंक था ! अपनी इस गन्दी आदत के कारण व कई बार बीमार हो चूका था ! इसलिए उसके माता-पिता उसे बहुत समझाते व फालतू पैसे भी नहीं देते थे ! घर में नौकर -चाकर होने के बावजूद व घर से स्कूल बस में जाता ! क्योंकि उसके पिताजी उससे कड़ी- मेहनत करवा लायक बनाना चाहते थे ! एक दिन वह घर से स्कूल बस में जा रहा था ! उसके पिताजी ने उसे किराए के लिए पांच रूपए दिए थे ! उस दिन बस में बहुत अधिक भीड़ थी ! वह काफी देर तक पैसे हाथ में लेकर कंडेक्टर का इंतज़ार करता रहा ! कुछ देर बाद कंडेक्टर सबकी टिकते काट अपनी सीट पर जाकर बैठ जाता है ! अक्षित जब यह देखता है तो उसके मन में यही ख्याल आता है की वह जाकर टिकट ले आये ! लेकिन तभी उसका लालची मन उसे कई तरह के पर्लोभ्नो में फ़सा देता है ! वह चुप- चाप वंही बैठ जाता है और सोचता है की इसमें मेरी क्या गलती ! वह कंडेक्टर भैया खुद ही मेरे पास नहीं आया ! इतने में बस रूकती है भीड़ के साथ वह भी जल्दी से उतर जाता है ! स्कूल पहुँच उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता ! वह अपने दोस्तों को भी अपनी समझदारी का किस्सा बड़े गौरवपूर्ण तरीके से सुनाता है ! वे उसे समझाने की बजाय और अधिक उकसाते हैं की अरे तुम प्रतिदिनं ऐसा कर कितने पैसे बच्चा सकते हो ! उस दिन वह अपने दोस्तों के साथ बड़े मजे से पकोड़े खता है ! अब तो उसे इसमें आनंद आने लगता है ! प्रतिदिन कभी चाट , कभी गोल-गप्पे, ऐसा करते - करते पांच दिन निकल आते है ! अब वह इतना अधिक आदि हो जाता है की उसे खुद पर शर्मिंदगी महसोस होती है की यह काम उसने पहले क्यों नहीं किया ! सुबह वह रोज की तरह तैयार हो जब बस में चदता है तो पहले की तरह ही टिकेट नहीं लेता ! वेसे ही बस रूकती है जेसे ही वह अपने स्टॉप पर उतरने लगता है बस में चेकर आ जाते हैं ! सबकी टिकटे देख जब वह अक्षित से टिकेट दिखने को कहते हें तब वह सर हिला मना कर देता है ! वे बस को रुकवा उसका नाम व पिताजी का नाम पूछते है जब उन्हें पता चलता है की वह डिप्टी कमिश्नर राजेश प्रसाद का बेटा है तब वह उसे प्यार से समझाते है की अगर हम तुमे अब पुलिस के हवाले करदे तो तुम्हारे पिताजी की इज्जत मिटटी में मिल जाएगी ! उनकी कितनी बदनामी होगी ! वह डर कर रोने लग जाता है की में आगे से कभी ऐसा कोई काम नहीं करूँगा ! में वायदा करता हूँ की कभी बिना टिकट लिए बस में सफ़र नहीं करूंगा ! उन अफसरों को अक्षित पर तरस आ जाता है वे कहते हैं की अगर तुम वायदा करते हो और तुमें अपने किये पर प्रायश्चित हें तो हमने तुमे माफ़ किया ! अत : हमें इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की कभी भी लालच में आकर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसके परिणाम नुकसानदायी हो !

7 comments:

  1. u r dng good job dear..keep it up!!its good.

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  2. आभार। प्रोत्साहन देने के लिए।

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  3. सार्थक ब्लॉगिंग...भविष्य उज्ज्वल होगा। हिन्दी में जितना योगदान दे सकते हैं, उतना योगदान अवश्य दें।

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  4. बहुत अच्छी कहानी ......लालच बुरी बला है ...

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  5. kulwant ji ke blog se aap tak aayi
    likhte rahiye!

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