सेमीनार ख़त्म हो गया था ! सबका ध्यान अब कॉफ़ी- हाउस में हो रही चाय पार्टी की तरफ था ! इन में वो लड़का भी आये हुए कुछ मेहमानों के साथ उसी और बढ़ रहा था ! उसके चहेरे की बेशर्मी देख मुझे दुःख हो रहा था ! यह वही था जो शायद कुछ देर पहले किसी के सपनो का मजाक बनाकर आया था ! ऐसे शक्सियत का जिसने शायद इस सपने के लिए अपनी पूरी जिन्दगी लगा दी ! और खुद को मार कर भी इसे जिंदा रखा! अगर किसी नौजवान ने यह सब किया होता तो कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी! लेकिन एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग नौजवान को फुर्ती से कार्य करता देख कोई भी हैरान होगा ! में बात कर रही हूँ ''पी एन शाही '' जी की जिनकी पुस्तक '' युग वरतारा'' जो एक पंजाबी नाटक की किताब है उसकी ऑडियो सी' डी जो अब बन कर तैयार हुई है ! उसकी लौन्चिंग का ( माफ़ी चाहूंगी उचित शब्द खोज नहीं पाई )! मैंने यह नोवेल नहीं पड़ा लेकिन वंहा सभा में आये सभी महानुभव ने जो टिप्पणी की उसे से यही ज्ञात हुआ की यह आज की समस्याएँ , हमारे गिरते नैतिक मूल्य , विश्वास की कहानी है ! जिसमे कुल मिला कर छ पात्र है ! जिसमे एक दरवेश , खुसरा , एक चित्रगुप्त , राजनितिक , धर्मराज , व अब तक पीड़ा भोगती आ रही महिला को एक पवित्र रूह का किरदार दिया गया ! आज शाही जी का सम्मान बहुत ही मशहूर लेखिका दिलीप कौर टिवाणा जी ने किया ! में अब अपनी बात पर आना चाहूंगी सुबह जब हम क्लास लगा रहे थे तो सेमिनार हॉल को फूलों से सजाया जा रहा था ! एक इंसान बहुत ही तलीनता से इसमें जुड़ा था ! रूचि न होने के कारन एक झलक देख चले गए लेकिन हम हैरान थे जब देखा की उन्हें सम्मान दिया जा रहा है ! तभी एक आवाज आती है की अरे यह तो वही हैं जो सुबह खुद ओह गोड़ ही इस रियल स्टार ! किसी की आँखों से आंसू झर रहे थे कोई नमस्तक था ! तभी उनका परिचय दिया गया आजादी की जंग में सब खोया , दंगो में जवान बेटा , कैंसर के मरीज हुए ! उन्हें देखकर लगा की अगर सपनों को पूरा करने का हौसला है तो हर बाधा को हटाया जा सकता है ! हर बुद्धिजीवी चाहे गायक हो या लेखक हमेशा चाहेगा की मुझे प्रसिधी मिले लोग मेरे कार्य को जाने ! बात पैसे की नहीं मान -सम्मान की है ! कितने मजबूर होंगे जब उन्होंने खुद आकर कहा की मेरा किसी ने कभी सम्मान नहीं किया ! पर मुझे दिल से ख़ुशी है की डॉ हरजिंदर वालिया ने एक प्रयास किया ! उनके इस सपने को पूरा करने का इस सब में वो मेरे साथ बैठा लड़का उनके बारे में बहुत अपशब्द बोल गया ! जिसे सुनकर शायद बाकि बैठे लोगों को भी शर्म आई ! में सिर्फ उस एक लड़के की बात नहीं कर रही ऐसा बहुत बार होता है ! लेकिन हमेशा यह याद रखे की कमियां निकलना बहुत आसान है वंहा पहुंचना बहुत मुश्किल शायद वंहा अगर हमारे परिवार का कोई सदस्य होता तो हम पर क्या गुजरती ! किसी का दर्द ,लेकिन कंही बोरियत,कंही फुसफुसाहट तो कंही आंसू !किसी के अरमानो की डोली या जिन्दगी का पसीना लेकिन कंही एक हंसी ,या किसी के सपनों का मजाक़ ! लेकिन में कन्हुगी सीख यह है तू चलता जा मंजिल जरुर मिलेगी , न घबरा , डट कर सामना आने वाली मुश्किलों का चलता जा ...........बस
Sunday, February 28, 2010
उम्र नहीं , सपने रहे जंवा
Saturday, February 27, 2010
छूटते जा रहे है होली के रंग
Tuesday, February 16, 2010
उड़ गयी सुनहरी चिड़िया
Thursday, February 4, 2010
यादों के सहारे
उसका अहसास ही कर सकते हैं....
गम तुझे ज्यादा है ,
हमारी जुदाई का .....पर
बयान नहीं कर सकते.....
तू दूर जाकर हमसे ...
हमें भूलना है चाहता........
पर ये यादें तेरा साथ नहीं छोडती,
जितना जाते हैं , दूर ये उतनी ही पास चली आती हैं ,
तेरी साँसे भी तेरे दिल का ,
हाल बयाँ कर जाती है .....
आवाज तेरी उन्ही यादों के झरोखों में लाकर ,
खड़ा कर जाती है ,
जंहा से निकलना तो है मुश्किल और रहना
मेरे गम का सबब बनता जा रहा है ,
जितना चाहते हैं भूलना , तू हमें उतना ही
याद आ रहा है ,
जानते हैं की , कभी मिल नहीं पाएंगे,
तेरी नज़रों को जाम हम कब ......
अपनी नज़रों के पिलायेंगे .............,
फिर भी ये बाजी खेलना चाहते हैं ,
सब जानकर भी हारना चाहते हैं ,
क्योंकि मजबूर है , तुझसे दूर हैं .....
किनारा एक जितना दुसरे किनारे से है ,
ना वो किनारे मिल पायेंगे ,
ऐसे ही तेरी यादों के एहसास से
हम जिन्दगी बिताएंगे !!
खवाहिशें
कितना अच्छा होता , अगर हमारा समाज इन बच्चों को अपनाता
खून इनका भी है लाल............
दिल इनका भी है मासूम..........
पर इनकी ख्वाहिशों में सिर्फ ...
खाने और कपडे का है जूनून,
इनकी जिन्दगी इन दो चाहतों में
ही बट जाती है ,
और जिस धरती पर पले -बड़े
वंही किसी दुर्घटना में इनकी मौत हो जाती है ,
लाश , किसी मुन्सिप्ल कमेटी में फेंक दी जाती है ,
या लावारिस की चादर ओड जला दी जाती है ,
इनकी जिन्दगी जंहा शुरू हुए , वंही
रह जाती है .........
हम लोग जिनके पास है सब कुछ फिर भी इन्हें
देख ना जाने क्यों मुंह से गली निकल आती है !!
विरह की रात
बारिश भरी रात भी एक , कितना कुछ है कह देती ...
वह शांत सा मौसम , वो ठंडी -ठंडी हवा ..
जसी प्रियतम को मिलने चली हो प्रिया
बिजली का कड़कना , अँधेरे का बढ़ना ..
जैसे रही हो ढूंड , मिलन की जगह ,
कितने समय से वो रही थी तरस .
आज कहता है मन दिल खोल कर बरस,
प्यास दिल की कभी न बुझ पायेगी ,
इस प्यारी , सुंदर रात को जी लो ये फिर
ना वापिस आएगी , कभी ना वापिस आएगी !!
Monday, February 1, 2010
अनजाने रिश्ते
खचा-खच भरी हुई एक प्राइवेट बस में में अपने भाई के साथ बैठी हुई अपने गाँव से शहर जा रही थी ! पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखते हुए सिर्फ बड़े -बड़े धूल के गुबार नजर आ रहे थे और सड़क के नाम पर गड्ढे ! कभी अपने प्रदेश की तरक्की के बारे में सोचती की उसे नंबर एक का दर्जा क्यों दिया गया है और कभी भीड़ में खड़े लोगों के चेहरों को ! सब सोच ही रही थी की वो धीरे -धीरे चलती बस रुक गयी और एक करीबन सत्तर वर्षीय वृद्ध व उनके साथ दो महिलाएं बस में चढ़ गयी ! उन बाबा जी की तबियत बहुत खराब थी ! उसे देख मेरे साथ बैठा मेरा चौदह वर्षीय भाई खड़ा हो गया और वो मेरे साथ बैठ गए ! उनको पथरी का दर्द हो रहा था ! वह उनकी पीड़ा अवस्था असहनीय थी ! वे न बैठ पा रहे थे और न खड़े ! पूरे रास्ते मैंने अपनी बाजू से उनको पकडे रखा ! वे आँखें जेसे कुछ कह रही थी पर शायद जुबान साथ न दे रही हो ! एक अनजाना रिश्ता सा जुड़ गया था , शायद दर्द का रिश्ता ! मैंने उनके साथ आई महिला से पूछा की आप इन्हें कंहा लेकर जा रही है ! वे कहने लगी ये मेरे ससुर है इन्हें पथरी थी कुछ दवाइयां खायी तो ठीक हो गयी पर पानी भर गया ,सरकारी अस्पताल लेकर जाते हैं ! में सोचने लगी वाह से इंसान , शायद इस दर्द से बड़ा दर्द गरीबत का है ! मेरा भाई कहने लगा आप किसी बड़े अस्पताल ले जाईये लेकिन उनकी हालत सब कुछ बयाँ कर रही थी जो वो बच्चा नहीं समझ पाया ! सब तमाशबीन बने देख रहे थे और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ! गुस्सा आ रहा था की कितने लाचार हैं हम चाँद पर तो पहुँच गए पर एक बीमार को अस्पताल ले जाने तक की व्यवस्था न कर पाए ! उनका चेहरा देख मुझे बड़े - बड़े मंत्रियो की याद आ रहे थी और उनके झूठे वादों की जो इन्ही पांवो को छूकर जीतने के आशीर्वाद लेते हैं ! आज यही पैर चलने को भी मोहताज हो जाते हैं !आगे जाकर बस खराब हो गयी उनकी हालत बिगडती जा रही थी ! पहले ही बहुत देर हो चुकी थी ! मैंने कहा आप रिक्शा कर लीजिये वह अन्दर तक छोड़ देगा ! लेकिन उनकी बेबसी ने उन्हें मजबूर कर रखा था ! तभी एक व्यक्ति को मैंने कहा आप जाकर ले आइये ! कुछ देर बाद रिक्शा आया व हमने बहुत मुश्किल से उन्हें बिठा दिया ! उनका चेहरा बहुत कुछ कह रहा था ! हम आगे आये मैंने भैया से पैसे पूछे और उन्हें नमस्ते कर चली गयी ! उनकी आँखों ने बिना कहे कंही हज़ार शब्द कह दिए ! हमने ऑटो पकड़ा ! मेरा भाई पूछता रहा दीदी वो उन्हें कार में क्यों नहीं लाये ! अपने पैसे क्यों दिए ! पर मेरा दिल सिर्फ यही दुआ कर रहा था की आज कंही से कोई फ़रिश्ता आ जाये और उनका इलाज करदे !