Sunday, February 28, 2010

उम्र नहीं , सपने रहे जंवा



सेमीनार ख़त्म हो गया था ! सबका ध्यान अब कॉफ़ी- हाउस में हो रही चाय पार्टी की तरफ था ! इन में वो लड़का भी आये हुए कुछ मेहमानों के साथ उसी और बढ़ रहा था ! उसके चहेरे की बेशर्मी देख मुझे दुःख हो रहा था ! यह वही था जो शायद कुछ देर पहले किसी के सपनो का मजाक बनाकर आया था ! ऐसे शक्सियत का जिसने शायद इस सपने के लिए अपनी पूरी जिन्दगी लगा दी ! और खुद को मार कर भी इसे जिंदा रखा! अगर किसी नौजवान ने यह सब किया होता तो कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी! लेकिन एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग नौजवान को फुर्ती से कार्य करता देख कोई भी हैरान होगा ! में बात कर रही हूँ ''पी एन शाही '' जी की जिनकी पुस्तक '' युग वरतारा'' जो एक पंजाबी नाटक की किताब है उसकी ऑडियो सी' डी जो अब बन कर तैयार हुई है ! उसकी लौन्चिंग का ( माफ़ी चाहूंगी उचित शब्द खोज नहीं पाई )! मैंने यह नोवेल नहीं पड़ा लेकिन वंहा सभा में आये सभी महानुभव ने जो टिप्पणी की उसे से यही ज्ञात हुआ की यह आज की समस्याएँ , हमारे गिरते नैतिक मूल्य , विश्वास की कहानी है ! जिसमे कुल मिला कर छ पात्र है ! जिसमे एक दरवेश , खुसरा , एक चित्रगुप्त , राजनितिक , धर्मराज , व अब तक पीड़ा भोगती आ रही महिला को एक पवित्र रूह का किरदार दिया गया ! आज शाही जी का सम्मान बहुत ही मशहूर लेखिका दिलीप कौर टिवाणा जी ने किया ! में अब अपनी बात पर आना चाहूंगी सुबह जब हम क्लास लगा रहे थे तो सेमिनार हॉल को फूलों से सजाया जा रहा था ! एक इंसान बहुत ही तलीनता से इसमें जुड़ा था ! रूचि न होने के कारन एक झलक देख चले गए लेकिन हम हैरान थे जब देखा की उन्हें सम्मान दिया जा रहा है ! तभी एक आवाज आती है की अरे यह तो वही हैं जो सुबह खुद ओह गोड़ ही इस रियल स्टार ! किसी की आँखों से आंसू झर रहे थे कोई नमस्तक था ! तभी उनका परिचय दिया गया आजादी की जंग में सब खोया , दंगो में जवान बेटा , कैंसर के मरीज हुए ! उन्हें देखकर लगा की अगर सपनों को पूरा करने का हौसला है तो हर बाधा को हटाया जा सकता है ! हर बुद्धिजीवी चाहे गायक हो या लेखक हमेशा चाहेगा की मुझे प्रसिधी मिले लोग मेरे कार्य को जाने ! बात पैसे की नहीं मान -सम्मान की है ! कितने मजबूर होंगे जब उन्होंने खुद आकर कहा की मेरा किसी ने कभी सम्मान नहीं किया ! पर मुझे दिल से ख़ुशी है की डॉ हरजिंदर वालिया ने एक प्रयास किया ! उनके इस सपने को पूरा करने का इस सब में वो मेरे साथ बैठा लड़का उनके बारे में बहुत अपशब्द बोल गया ! जिसे सुनकर शायद बाकि बैठे लोगों को भी शर्म आई ! में सिर्फ उस एक लड़के की बात नहीं कर रही ऐसा बहुत बार होता है ! लेकिन हमेशा यह याद रखे की कमियां निकलना बहुत आसान है वंहा पहुंचना बहुत मुश्किल शायद वंहा अगर हमारे परिवार का कोई सदस्य होता तो हम पर क्या गुजरती ! किसी का दर्द ,लेकिन कंही बोरियत,कंही फुसफुसाहट तो कंही आंसू !किसी के अरमानो की डोली या जिन्दगी का पसीना लेकिन कंही एक हंसी ,या किसी के सपनों का मजाक़ ! लेकिन में कन्हुगी सीख यह है तू चलता जा मंजिल जरुर मिलेगी , न घबरा , डट कर सामना आने वाली मुश्किलों का चलता जा ...........बस

Saturday, February 27, 2010

छूटते जा रहे है होली के रंग


हमारे जीवन में रंगों का बहुत महत्व है ! हर रंग अपने आप में कुछ कहता है ! हर रंग से जिन्दगी का कोई न कोई पहलु जुड़ा है ! कोई शक्ति का प्रतीक है तो कोई शांति का ! इन रंगों से अलग- अलग कहानिया भी जुडी है ! कहा जाता है की सफ़ेद चाँद की चांदनी से चुराया है और गहरा काला रात के अँधेरे से , हरा लहलहाती हरियाली का प्रतीक है तो पीला सरसों व गेंदे के फूलों का वही गुलाबी को सुन्दरता का रंग माना गया है ! हमारे आस -पास कितने ही रंग बिखरे पड़े हैं ! इनका एहसास करने और यह कामना करने , की हमेशा ये सुंदर रंग जिन्दगी को इसी प्रकार खुशहाल बनाये यह होली का त्यौहार मनाया जाता है ! इसका इतिहास जितना पुराना है उतना ही शिक्षाप्रद है ! होली से पूर्व किया जाने वाला होलिका देहन बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देता है ! प्राचीन संस्कृत कवियों से लेकर आधुनिक कवियों ने होली का बहुत गुणगान किया है ! मथुरा , वृन्दावन ,व ब्रज की होली में आज भी कृष्ण भगवान की छवि को देखा जाता है ! कंही लट्ठ मार तो कंही फूलों की वर्षा की जाती है ! हमारी संस्कृति का प्रतीक है यह त्यौहार ! होली का त्यौहार साल में एक -बार आता है ! लेकिन आज इस उत्सव का अर्थ ही बदल गया है ! एक समय था जब सब गिले - शिकवे भुलाकर एक दुसरे के गले लग जाते थे ! दुश्मन भी दोस्ती का हाथ आगे कर पुराना वैर -विरोध छोड़ देते थे ! एक दुसरे पर रंग ढाल सब गुलाल के सप्त्रंगो में रंगीन हो जाते ! लेकिन आज इसी त्यौहार के नाम पर कीचड़ , कालिक मल इसे गन्दा किया जाता ! तेज आवाज में फूहड़ , द्विअर्थी गीत चला अश्लील हरकते की जाती है ! बुजुर्गों को जो परेशानी होती वह अलग स्त्रियाँ घर से बाहर नहीं निकल सकती ! नशे किये बिना यह पूर्ण नहीं होता व शराब , चरस इत्यादि पीकर लोग आपस में झगडे करते हैं व कईं बार कोई नव-विवाहित इस दिन बेरंग हो जाती है ! किसी माँ की गोद सुनी हो जाती है ! होली के रंग अगर सद्भावना, प्रेम उमंग के हो तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर साम्प्रदायिकता के हो तो कहर बरसा देते है ! आज जन्हा एक तरफ रोज बेगुनाह लोग मर रहे हैं कौन मनायेगा यह होली ! इसमें क्या दोष था उनका जो बम्ब विस्फोट में मारे गए या तालिबानियों के गुस्से का शिकार हुए या वे जो रोज गरीबी से पल- पल मर रहे हैं ! अंत में सबको होली की यही मुबारक बाद देना चाहूंगी की होली शालीनता के दायरे में मनाये जिसे किसी को परेशानी न हो ! क्योंकि कल को शायद आप भी उस मजबूर की जगह हो सकते हो ! पानी व्यर्थ न बहाएं व अपने टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने का प्रयास करे ! हर परिवार को खुशियों की होली नसीब हो लाल रंग ख़ुशी का हो ! हम खून की नहीं गुलाल की होली खेले ! क्योंकि दूसरों की जिन्दगी उजड़ने वाले शायद रंगों को भूल गए हैं ! जब रंग उनसे रुठेंगे तो वे बदरंग हो जायेंगे ! अब वक़्त है जिन्दगी के रंगों को समझने व जानने का !

Tuesday, February 16, 2010

उड़ गयी सुनहरी चिड़िया


सुंदरवन एक छोटा सा राज्य था ! यंहा की प्राक्रतिक छटा बहुत ही मनमोहक थी ! इस राज्य में बड़े - बड़े चीड़, देवदार व अन्य कई तरह के वृक्ष थे ! जन्हा भिन्न - भिन्न प्रजातियों के पक्षी अपना घोसला बनाकर रहते थे ! वंहा एक हरिया नामक गडरिया भी रहता था ! उसे पशु -पक्षियों से बहुत लगाव था ! वह रोज अपनी भेड़ों को जंगल में चराने के लिए लेकर जाता था ! जंगल के पक्षियों को प्यार से बुलाता ! कोई न कोई खाने की वस्तु दाना इत्यादि उन्हें दाल देता !एक शाम जब हरिया अपनी भेड़ों व बकरियों को जंगल में चरा रहा था ! उसे बहुत ही मधुर संगीत सुनाई दिया ! वह इधर -उधर देखने लगा की यह आवाज कंहा से आ रही है ! सहसा उसकी नजर एक सुनहरे पक्षी पर पड़ी ! हरिया उसकी सुन्दरता देखकर हैरान हो गया ! वह समझ गया की यह सुनहरी चिड़िया ही यह मधुर गीत गा रही थी ! अब वह जब भी जंगल आता सुनहरी चिड़िया के लिए स्वादिष्ट पकवान लाता ! अब सुनहरी चिड़िया भी हरिया से स्नेह करने लगी थी ! उसके आने पर वह गाया करती ! उन दोनों को एक दुसरे से बहुत लगाव हो गया ! कुछ दिनों के बाद सुदूर देश से एक राजकुमार सुंदरवन घुमने आया ! यंहा के बाग़ , खलियान देखने के बाद उसने जंगल देखने की इच्छा व्यक्त की ! सब उसे समझाने लगे की जंगल में देखने लायक क्या है ! परन्तु वे नहीं माने और अकेले ही चल पड़े ! सुनहरी चिड़िया तब अन्य चिड़ियों के साथ दाना चुग रही थी ! राजा की नजर जब उस चमकती चिड़िया पर पड़ी वे उसकी सुन्दरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गए ! वे उसे झाड़ियों में छिपकर निहारते रहे ! कुछ देर बाद चिड़िया ने गाना शुरू कर दिया ! राजकुमार की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ! वे इस विचित्र पक्षी के बारे में सबको बताना चाहते थे ! वे उस सुनहरी चिड़िया से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने सुंदरवन के राजा वीरकुमार को एक पत्र लिखा ! उस पुरे पत्र में राजकुमार ने सुनहरी चिड़िया की बहुत तारीफ की ! अब तक राजा को ऐसी किसी चिड़िया की कोई जानकारी नहीं थी ! पत्र पढ़कर उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ ! उन्होंने साथ ही अपने सैनिको को जंगल में जाकर सुनहरी चिड़िया पकड़ने का आदेश दिया ! सैनिको ने उसे बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिली! एक दिन राजा अपने बगीचे में रानी के साथ सैर कर रहे थे की रानी की नजर किसी चमकती चीज पर पड़ी ! जब राजा ने पास आकर देखा यह वही सुनहरी चिड़िया थी ! राजा -रानी बहुत खुश हुए ! अब वह चिड़िया राजमहल में रहने लगी! उसके लिए सोने का पिंजरा बनवाया गया ! कभी वह बागों में विचरण करती रात को पिंजरे में आ सो जाती ! राजा व रानी उसके गाना सुनते और बहुत खुश होते ! ऐसे ही कितना समय निकल गया ! एक दिन दूर देश से एक जादूगर आया ! उसने राजमहल में कई तरह के जादुई करतब दिखाए ! उसने जाते समय राजा को एक खिलोना दिया जो नाचता व गाता था! राजा को वह खिलौना इतना अच्छा लगा की वे सुनहरी चिड़िया को बिलकुल भूल गए ! अब वह बहुत उदास रहने लगी थी ! उसे लगता की वह महत्वहीन हो गयी है ! एक दिन वह राजमहल से उड़ गयी ! कितना समय बीत गया वह किसी को भी दिखाई नहीं पड़ी ! एक दिन वह नाचने गाने वाले खिलौने ने कार्य करना बंद कर दिया ! राजा ने कई कारीगरों को बुलाया पर वह ठीक न हो सका ! अब राजा को ' सुनहरी चिड़िया ' याद आने लगी ! सैनिकों ने चिड़िया को बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिली ! अब राजा बहुत बीमार रहने लगा था ! अब उन्हें अपनी गलती पर बहुत पछतावा हो रहा था ! कहते हैं चिड़िया जन्हा से आई थी वही चली गयी ! ऐसा ही होता है जब समय रहते हम किसी चीज की कदर नहीं करते तो बाद में पछतावा ही रह जाता है ! अत : हमेशा हर चीज का महत्त्व समझना चाहिए चाहे व खेल कूद, पढाई व सबसे उपयोगी समय ही क्यों न हो !

Thursday, February 4, 2010

यादों के सहारे

तेरी आवाज सुनकर जो मिली ख़ुशी ,
उसका अहसास ही कर सकते हैं....
गम तुझे ज्यादा है ,
हमारी जुदाई का .....पर
बयान नहीं कर सकते.....
तू दूर जाकर हमसे ...
हमें भूलना है चाहता........
पर ये यादें तेरा साथ नहीं छोडती,
जितना जाते हैं , दूर ये उतनी ही पास चली आती हैं ,
तेरी साँसे भी तेरे दिल का ,
हाल बयाँ कर जाती है .....
आवाज तेरी उन्ही यादों के झरोखों में लाकर ,
खड़ा कर जाती है ,
जंहा से निकलना तो है मुश्किल और रहना
मेरे गम का सबब बनता जा रहा है ,
जितना चाहते हैं भूलना , तू हमें उतना ही
याद आ रहा है ,
जानते हैं की , कभी मिल नहीं पाएंगे,
तेरी नज़रों को जाम हम कब ......
अपनी नज़रों के पिलायेंगे .............,
फिर भी ये बाजी खेलना चाहते हैं ,
सब जानकर भी हारना चाहते हैं ,
क्योंकि मजबूर है , तुझसे दूर हैं .....
किनारा एक जितना दुसरे किनारे से है ,
ना वो किनारे मिल पायेंगे ,
ऐसे ही तेरी यादों के एहसास से
हम जिन्दगी बिताएंगे !!

खवाहिशें


काश, कोई इनको भी प्यार देता , या इनका दर्द समझ पता ...
कितना अच्छा होता , अगर हमारा समाज इन बच्चों को अपनाता
खून इनका भी है लाल............
दिल इनका भी है मासूम..........
पर इनकी ख्वाहिशों में सिर्फ ...
खाने और कपडे का है जूनून,
इनकी जिन्दगी इन दो चाहतों में
ही बट जाती है ,
और जिस धरती पर पले -बड़े
वंही किसी दुर्घटना में इनकी मौत हो जाती है ,
लाश , किसी मुन्सिप्ल कमेटी में फेंक दी जाती है ,
या लावारिस की चादर ओड जला दी जाती है ,
इनकी जिन्दगी जंहा शुरू हुए , वंही
रह जाती है .........
हम लोग जिनके पास है सब कुछ फिर भी इन्हें
देख ना जाने क्यों मुंह से गली निकल आती है !!

विरह की रात

बारिश भरी रात भी एक , कितना कुछ है कह देती ...
वह शांत सा मौसम , वो ठंडी -ठंडी हवा ..
जसी प्रियतम को मिलने चली हो प्रिया
बिजली का कड़कना , अँधेरे का बढ़ना ..
जैसे रही हो ढूंड , मिलन की जगह ,
कितने समय से वो रही थी तरस .
आज कहता है मन दिल खोल कर बरस,
प्यास दिल की कभी न बुझ पायेगी ,
इस प्यारी , सुंदर रात को जी लो ये फिर
ना वापिस आएगी , कभी ना वापिस आएगी !!

Monday, February 1, 2010

अनजाने रिश्ते

खचा-खच भरी हुई एक प्राइवेट बस में में अपने भाई के साथ बैठी हुई अपने गाँव से शहर जा रही थी ! पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखते हुए सिर्फ बड़े -बड़े धूल के गुबार नजर आ रहे थे और सड़क के नाम पर गड्ढे ! कभी अपने प्रदेश की तरक्की के बारे में सोचती की उसे नंबर एक का दर्जा क्यों दिया गया है और कभी भीड़ में खड़े लोगों के चेहरों को ! सब सोच ही रही थी की वो धीरे -धीरे चलती बस रुक गयी और एक करीबन सत्तर वर्षीय वृद्ध व उनके साथ दो महिलाएं बस में चढ़ गयी ! उन बाबा जी की तबियत बहुत खराब थी ! उसे देख मेरे साथ बैठा मेरा चौदह वर्षीय भाई खड़ा हो गया और वो मेरे साथ बैठ गए ! उनको पथरी का दर्द हो रहा था ! वह उनकी पीड़ा अवस्था असहनीय थी ! वे न बैठ पा रहे थे और न खड़े ! पूरे रास्ते मैंने अपनी बाजू से उनको पकडे रखा ! वे आँखें जेसे कुछ कह रही थी पर शायद जुबान साथ न दे रही हो ! एक अनजाना रिश्ता सा जुड़ गया था , शायद दर्द का रिश्ता ! मैंने उनके साथ आई महिला से पूछा की आप इन्हें कंहा लेकर जा रही है ! वे कहने लगी ये मेरे ससुर है इन्हें पथरी थी कुछ दवाइयां खायी तो ठीक हो गयी पर पानी भर गया ,सरकारी अस्पताल लेकर जाते हैं ! में सोचने लगी वाह से इंसान , शायद इस दर्द से बड़ा दर्द गरीबत का है ! मेरा भाई कहने लगा आप किसी बड़े अस्पताल ले जाईये लेकिन उनकी हालत सब कुछ बयाँ कर रही थी जो वो बच्चा नहीं समझ पाया ! सब तमाशबीन बने देख रहे थे और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ! गुस्सा आ रहा था की कितने लाचार हैं हम चाँद पर तो पहुँच गए पर एक बीमार को अस्पताल ले जाने तक की व्यवस्था न कर पाए ! उनका चेहरा देख मुझे बड़े - बड़े मंत्रियो की याद आ रहे थी और उनके झूठे वादों की जो इन्ही पांवो को छूकर जीतने के आशीर्वाद लेते हैं ! आज यही पैर चलने को भी मोहताज हो जाते हैं !आगे जाकर बस खराब हो गयी उनकी हालत बिगडती जा रही थी ! पहले ही बहुत देर हो चुकी थी ! मैंने कहा आप रिक्शा कर लीजिये वह अन्दर तक छोड़ देगा ! लेकिन उनकी बेबसी ने उन्हें मजबूर कर रखा था ! तभी एक व्यक्ति को मैंने कहा आप जाकर ले आइये ! कुछ देर बाद रिक्शा आया व हमने बहुत मुश्किल से उन्हें बिठा दिया ! उनका चेहरा बहुत कुछ कह रहा था ! हम आगे आये मैंने भैया से पैसे पूछे और उन्हें नमस्ते कर चली गयी ! उनकी आँखों ने बिना कहे कंही हज़ार शब्द कह दिए ! हमने ऑटो पकड़ा ! मेरा भाई पूछता रहा दीदी वो उन्हें कार में क्यों नहीं लाये ! अपने पैसे क्यों दिए ! पर मेरा दिल सिर्फ यही दुआ कर रहा था की आज कंही से कोई फ़रिश्ता आ जाये और उनका इलाज करदे !