Thursday, February 4, 2010

खवाहिशें


काश, कोई इनको भी प्यार देता , या इनका दर्द समझ पता ...
कितना अच्छा होता , अगर हमारा समाज इन बच्चों को अपनाता
खून इनका भी है लाल............
दिल इनका भी है मासूम..........
पर इनकी ख्वाहिशों में सिर्फ ...
खाने और कपडे का है जूनून,
इनकी जिन्दगी इन दो चाहतों में
ही बट जाती है ,
और जिस धरती पर पले -बड़े
वंही किसी दुर्घटना में इनकी मौत हो जाती है ,
लाश , किसी मुन्सिप्ल कमेटी में फेंक दी जाती है ,
या लावारिस की चादर ओड जला दी जाती है ,
इनकी जिन्दगी जंहा शुरू हुए , वंही
रह जाती है .........
हम लोग जिनके पास है सब कुछ फिर भी इन्हें
देख ना जाने क्यों मुंह से गली निकल आती है !!

2 comments:

  1. जब देखता हूं
    पाँव में टूटे जूते,

    तन पर मैले

    फटे कपड़े,
    और खाब संजोती
    उनकी आँखों को
    रो जाता हूँ

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